दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा पर्व मनाया जाता है. गोवर्धन पर्वत की पूजा और अन्‍नकूट का यह पर्व कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाते हैं.

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इस साल गोवर्धन पूजा 22 अक्‍टूबर, बुधवार को है. गोवर्धन पूजा वैसे तो उत्‍तर भारत समेत देश के कई राज्‍यों में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं. लेकिन इसकी सबसे अधिक रौनक मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव में देखने को मिलती है.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं. गाय-बैलों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण की विशेष लीला से जुड़ा यह पर्व प्रकृति की पूजा का पर्व है. गोवर्धन पूजा करने और इसकी कथा पढ़ने से घर में कभी अन्‍न की कमी नहीं होती है. यहां पढ़ें गोवर्धन पूजा की कथा.

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

धार्मिक मान्यता के अनुसार, ”एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था. इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने एक विशेष लीला रची. एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे. यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं. तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?

यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है. माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, ऐसे तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है.

भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए. तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए.

भगवान इंद्र ने 7 दिनों तक लगातार बारिश की और 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा. भगवान कृष्ण ने एक भी गोकुल वासी और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचने दिया, ना ही बारिश में भीगने दिया. तब भगवान इंद्र को अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता है. जब उन्हें यह बात पता चली कि मुकाबला करने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं तो उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना मांगी और मुरलीधर की पूजा करके उन्हें 56 भोग लगाए. तब से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है.”


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