
रुद्रपुर सहित पूरे उधम सिंह नगर जिले में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व का उल्लास देखते ही बन रहा है। मंदिरों में जहां भगवान श्री राधे-कृष्ण की झांकियों की तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं बाजारों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। लड्डू गोपाल की प्रतिमा, श्री राधे कृष्ण की मूर्तियां, बच्चों के लिए कृष्ण-राधा की पोशाकें, मोर पंख, बांसुरी, मुकुट, बाजूबंद, मोतियों की माला और लड्डू गोपाल की पगड़ियां इस बार ग्राहकों की पहली पसंद बनी हुई हैं। यहां तक कि चांदी की प्रतिमाएं, झूले और पूजा सामग्री की बिक्री भी खासा बढ़ी है।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
व्यापारियों के चेहरे भी इन दिनों खिल उठे हैं। व्यापारीयो का कहना है कि जन्माष्टमी व्यापारियों के लिए सबसे बड़ा अवसर होता है और इस बार ग्राहकों की संख्या पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है। वहीं व्यापारी अमित कालड़ा ने बताया कि बच्चों के लिए तैयार की गई श्री कृष्ण-राधा की ड्रेस और पूजा सामग्री की जबरदस्त मांग है। स्वर्णकारो ने कहा कि चांदी की प्रतिमा और झूले की बिक्री इस बार विशेष आकर्षण बने हुए हैं।


रुद्रपुर के बाजारों—ट्रांजिट कैंप, मेट्रोपोलिस मॉल, आवास विकास क्षेत्र और शिव शक्ति मंदिर के आसपास खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है। व्यापार मंडल अध्यक्षसंजय जुनेजा एने कहा कि जन्माष्टमी केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। इस अवसर पर व्यापारियों ने भी शहरवासियों के लिए बेहतर व्यवस्थाएं की हैं।
रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा ने कहा कि “श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हम सबको धर्म, नीति और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह पर्व सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।”
महापौर विकास शर्मा ने कहा कि “जन्माष्टमी का पर्व हमें सेवा, त्याग और प्रेम का संदेश देता है। नगर निगम ने भी सभी प्रमुख मंदिरों और मार्गों पर स्वच्छता एवं प्रकाश की विशेष व्यवस्था की है।”
आयोजन समिति ने 15 अगस्त को निकली भाग्य शोभायात्रा में शामिल सभी भक्तों, समाजसेवियों और व्यापारियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “आप सबके सहयोग से ही यह शोभायात्रा भव्य रूप में संपन्न हो सकी। यह पर्व हमारी आस्था और एकजुटता का प्रतीक है।”
आज जब उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष में जन्माष्टमी की धूम है, रुद्रपुर इसका एक जीवंत उदाहरण बनकर उभरा है। यहां धर्म, संस्कृति और आस्था के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी यह पर्व नई ऊर्जा देता है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव वास्तव में भक्ति और बाजार दोनों का अनूठा संगम है, जो देवभूमि की सांस्कृतिक पहचान को और सशक्त करता है।

