बीते सप्ताह अमेरिका और चीन के बीच एक अहम व्यापार समझौते पर मुहर लगी है, जिसने वैश्विक स्तर पर आर्थिक समीकरणों को हिला दिया है। व्हाइट हाउस ने जेनेवा में हुए इस समझौते की पुष्टि करते हुए बताया कि अमेरिका ने चीन पर आयात शुल्क को 145% से घटाकर 30% कर दिया है।

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इस घटनाक्रम के बीच भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यह समझौता उस समय हुआ है जब भारत खुद को ‘विश्व की फैक्ट्री’ के रूप में स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा था। अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में यह रीसेट भारत के निर्माण क्षेत्र के लिए झटका साबित हो सकता है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

रूस की चेतावनी, पश्चिम कर रहा भारत-चीन में फूट की कोशिश

रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने हाल में कहा कि पश्चिमी देश एशिया में भारत और चीन के बीच तनाव को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने इस क्षेत्र को अब इंडो-पैसिफिक कहे जाने पर सवाल उठाया और इसे चीन-विरोधी रणनीति का हिस्सा बताया।

लावरोव का कहना है कि पश्चिम एशिया-प्रशांत में वर्चस्व चाहता है और भारत-चीन के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति पुतिन पहले ही पश्चिम की इस नीति को ‘बांटो और राज करो’ करार दे चुके हैं।

भारत और रूस के रिश्तों में आई दूरी!

दिल्ली की जेएनयू के रूसी अध्ययन विशेषज्ञ डॉ. राजन कुमार के अनुसार, लावरोव की टिप्पणी भारत को एक संकेत है कि रूस नहीं चाहता कि भारत की सैन्य निर्भरता उस पर से खत्म हो। आंकड़े बताते हैं कि 2009 से 2013 के बीच भारत का 76% रक्षा आयात रूस से था, जो 2019-2023 में घटकर 40% से भी नीचे आ गया है। हालांकि, यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत और रूस के व्यापार में इजाफा जरूर हुआ, लेकिन यह मुख्यतः ऊर्जा आयात के चलते है।

भारत के विनिर्माण सपनों को खतरा

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट (GTRI) के अनुसार, अमेरिका-चीन व्यापार समझौते के बाद, भारत में आने वाला विनिर्माण निवेश या तो रुक सकता है या चीन की ओर मुड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, अब भारत में केवल लो-कॉस्ट असेम्बली प्लांट ही टिक पाएंगे, जबकि वैल्यू-एडेड मैन्युफैक्चरिंग को झटका लग सकता है।

हालांकि, Apple जैसी कंपनियों ने हाल ही में संकेत दिए थे कि वे अपने iPhone का उत्पादन चीन से भारत शिफ्ट कर रही हैं। बावजूद इसके, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कथित तौर पर Apple के CEO टिम कुक को भारत में उत्पादन न करने की सलाह दी थी, यह कहते हुए कि भारत दुनिया में सबसे ऊंचे टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक है।

भारत बनाम चीन: विकल्प या भ्रम?

ट्रंप और शी जिनपिंग के समझौते से पहले कई विश्लेषकों का मानना था कि भारत अमेरिका के लिए चीन का विकल्प बन सकता है। एक निवेश विश्लेषण में उल्लेख था कि भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले 40% उत्पाद, चीन से आने वाले सामान के समान थे।

हाल ही में भारत के उत्पादकों के बीच कराए गए एक सर्वे में बताया गया कि निर्यात ऑर्डर 14 वर्षों के उच्चतम स्तर पर हैं। यह संकेत देता है कि भारत वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी जगह बना रहा था, लेकिन अब इस समझौते से उसकी रफ्तार धीमी पड़ सकती है।

भविष्य की राह, चुनौती और संभावना दोनों

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच की रणनीतिक खाई लंबी अवधि में भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। मोदी सरकार द्वारा विदेशी निवेशकों के लिए खुले रुख को भी भारत की संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है।

हालांकि फिलहाल, अमेरिका-चीन के नए समीकरण ने भारत के सामने एक सवाल खड़ा कर दिया है, क्या वह ‘चीन का विकल्प’ बन पाने की हकीकत में सक्षम है या यह सिर्फ एक रणनीतिक भ्रम बनकर रह जाएगा?


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