लोकतंत्र में मीडिया का मुँह बंद करने की कोशिशें उत्तराखंड चुनाव आयोग ने ‘हिन्दुस्तान’ अखबार को भेजा नोटिस, भ्रामक शीर्षक पर जताई आपत्ति

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देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के बीच राज्य निर्वाचन आयोग और मीडिया के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। हाल ही में हिन्दुस्तान समाचार पत्र ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था – “शहर में डाला है वोट तो गांव के चुनाव में न करें भागीदारी।” इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने अखबार के प्रधान संपादक को नोटिस जारी किया है।

राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि समाचार का शीर्षक, आयोग के नियमों और राज्य निर्वाचन आयुक्त के कथन से मेल नहीं खाता। आयोग का कहना है कि हिन्दुस्तान अखबार में प्रकाशित खबर का शीर्षक जनता में भ्रामक संदेश फैला सकता है, जबकि आयोग ने अपने बयान में केवल नियमों की व्याख्या की थी।

राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल कुमार गोयल द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस में कहा गया –

“समाचार में मा० राज्य निर्वाचन आयुक्त का उद्धृत कथन किसी भी रूप में समाचार के शीर्षक से मेल नहीं खाता है। जहाँ एक ओर उद्धृत कथन में नियमों की स्थिति स्पष्ट की गई है, वहीं दूसरी ओर शीर्षक पाठकों के लिए मिस-इनफॉर्मेशन एवं भ्रामक है।”

इसके साथ ही आयोग ने हिन्दुस्तान समाचार पत्र के सभी संवाददाताओं और प्रतिनिधियों को ऐसे “भ्रामक शीर्षकों” से बचने की सलाह दी है। नोटिस की प्रतिलिपि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, उत्तराखंड को भी भेजी गई है।

क्या है विवाद की जड़?

त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में मतदान को लेकर यह सवाल अक्सर उठता रहा है कि कोई व्यक्ति यदि नगर क्षेत्र में मतदाता है, तो क्या वह गांव में पंचायत चुनाव लड़ सकता है या भाग ले सकता है। निर्वाचन आयोग का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति नगर क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत है, तो उसे ग्रामीण क्षेत्र के चुनाव में नामांकन दाखिल करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम दर्ज कराना आवश्यक है। यानी दो जगह एक साथ मतदाता बने रहना संभव नहीं है।

हिन्दुस्तान अखबार ने अपनी खबर में इस विषय पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। हालांकि, आयोग का कहना है कि अखबार के शीर्षक से यह संदेश जा सकता है कि शहर में वोट डालने वाले लोग गांव के चुनाव में किसी भी रूप में भाग नहीं ले सकते, जो पूरी तरह सही नहीं है।

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम सही सूचना

यह मामला केवल एक खबर के शीर्षक पर आपत्ति तक सीमित नहीं है। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या निर्वाचन आयोग का इस तरह मीडिया को नोटिस भेजना प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश है या फिर यह मतदाताओं को सही सूचना देने की जिम्मेदारी के तहत उठाया गया कदम है।

वहीं, पत्रकारिता जगत के कुछ लोगों का मानना है कि किसी खबर के शीर्षक में सटीकता बेहद जरूरी है, क्योंकि अधिकांश पाठक अक्सर पूरी खबर न पढ़कर केवल शीर्षक ही देख कर धारणा बना लेते हैं। दूसरी ओर, प्रेस की आज़ादी का यह भी अर्थ है कि मीडिया सरकार और आयोग जैसे संस्थानों की कार्यशैली पर सवाल उठा सके।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव उत्तराखंड के लोकतांत्रिक तंत्र का अहम हिस्सा हैं। ऐसे में मतदाताओं के अधिकार और नियमों की सही जानकारी जनता तक पहुँचना जरूरी है। लेकिन साथ ही, मीडिया की स्वतंत्रता भी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसे बनाए रखना उतना ही जरूरी है। आयोग द्वारा भेजा गया यह नोटिस इसी संवेदनशील संतुलन के बीच एक ताजा उदाहरण है।

हम उत्तराखंड के समस्त पत्रकार, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा हिन्दुस्तान समाचार पत्र को भेजे गए नोटिस की कड़ी निंदा करते हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जनहित में सवाल उठाने, सूचनाएं जनता तक पहुँचाने और सत्ता को जवाबदेह बनाने का कार्य करता है। निर्वाचन आयोग द्वारा मीडिया संस्थान को नोटिस भेजकर भय या दबाव का वातावरण बनाना न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी आत्मा के भी विपरीत है।

पत्रकारिता का धर्म है कि वह नियमों, व्यवस्थाओं और चुनाव प्रक्रियाओं पर प्रश्न उठाए ताकि जनता तक सही जानकारी पहुँचे। किसी समाचार के शीर्षक या सामग्री से असहमति होने पर लोकतांत्रिक संस्थानों को संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए, न कि नोटिस भेजकर दबाव बनाने का।

हम राज्य निर्वाचन आयोग से मांग करते हैं कि वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सम्मान करते हुए नोटिस को वापस ले और मीडिया की स्वतंत्रता में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करे। लोकतंत्र में मीडिया का मुँह बंद करने की कोशिशें किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हैं।हम सब एक स्वर में इस नोटिस का विरोध करते हैं।


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