बनश्री 2025: बनवासी कन्याओं ने रुद्रपुर में रचा सांस्कृतिक इतिहास बनवासी कन्या छात्रावास, जगतपुरा आज सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति का केंद्र बन चुका है, जिसकी गूंज भविष्य के भारत की पहचान बनेगी।

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बनश्री 2025: बनवासी कन्याओं ने रुद्रपुर में रचा सांस्कृतिक इतिहास

जेपीएस स्कूल मैं रुद्रपुर जगतपुरा छात्रावास की छात्राओं द्वारा देश की विविधताओं और जनजातीय अस्मिता का भव्य उत्सव

रुद्रपुर (उत्तराखंड), 14 अप्रैल:

वेशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत 2082 को रुद्रपुर के जगतपुरा स्थित बनवासी कन्या छात्रावास में “बनश्री 2025” कार्यक्रम का ऐतिहासिक आयोजन किया गया। यह आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक संध्या नहीं था, बल्कि एक आंदोलन बन गया—जिसमें आदिवासी समाज की बेटियों ने न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश भी दिया कि जनजातीय बेटियाँ अब आत्मनिर्भरता, आत्मगौरव और आत्मबल के नए आयाम गढ़ने को तैयार हैं।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

इस भव्य समारोह का संयोजन जेपीएस पब्लिक स्कूल संयुक्त रूप से किया गया, जिसमें रुद्रपुर विधायक शिव अरोड़ा, श्री डालचंद जी, मेयर विकास शर्मा, purv मेयर Rampal Singh, कमलेश बिष्ट, रमाशंकर बिष्ट, मोहिनी बिष्ट, मधु राय, योगेश वर्मा, क्रमशः………………………………………………………………….जनपद भर के गणमान्य नागरिक, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रशासनिक अधिकारी और मीडिया प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।

उद्घाटन: शिव तांडव के साथ अध्यात्म की झलक

कार्यक्रम की शुरुआत बनवासी छात्राओं द्वारा प्रस्तुत शिव तांडव स्तोत्र से हुई। “जटाटवीगलज्जल प्रवाह पावितस्थले” की गूंज और नृत्य मुद्राओं के साथ छात्राओं ने एक अलौकिक वातावरण का निर्माण किया। मंच पर जब “हर हर महादेव” की आवाज़ गूंजी, तो दर्शकों की तालियों ने उस गूंज को और प्रबल कर दिया।

छात्राओं की ऊर्जा, समर्पण और शास्त्रीयता ने यह सिद्ध कर दिया कि बनवासी बेटियाँ किसी भी मंच पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हैं।

वीरांगना रानी दुर्गावती: आदिवासी शौर्य की अमिट गाथा

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण वीरांगना रानी दुर्गावती पर आधारित नाट्य प्रस्तुति रही। छात्राओं ने रानी दुर्गावती के जीवन की संघर्षपूर्ण यात्रा को अत्यंत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया—कैसे गोंडवाना की इस अद्वितीय नायिका ने अकबर की सेना से लोहा लिया, और मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरगति प्राप्त की।

छात्राओं ने रानी दुर्गावती के पिता संग्राम शाह की भूमिका को भी प्रकाश में लाते हुए बताया कि किस प्रकार उन्होंने रानी को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दी, जिसने उन्हें एक प्रखर योद्धा बनाया। प्रस्तुति में युद्ध के दृश्य, संवाद, संगीत और भाव-प्रदर्शन ने दर्शकों को इतिहास की उस धड़कन से जोड़ दिया, जो आज की पीढ़ी में धीरे-धीरे धुंधला रही है।

देश की विविधता का जीवंत चित्रण

जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, असम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा,मेघालय और चेरापूंजी ,मिजोरम जैसे विविध राज्यों की जनजातीय कलाओं का अद्भुत प्रदर्शन कार्यक्रम की दूसरी मुख्य विशेषता रही। हर राज्य की प्रस्तुति में वहाँ की पारंपरिक पोशाक, लोकगीत, वाद्ययंत्र, और नृत्य शैली का समावेश था।

  • नागालैंड की प्रस्तुति ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
  • असम की बिहू नृत्य ने मंच को जीवंत बना दिया।
  • जम्मू-कश्मीर की लोक गायन शैली में गाई गई गाथा ने संस्कृति के रस का संचार किया।
  • मध्यप्रदेश के गोंड आदिवासियों की वीरगाथा गीतों ने जनजातीय चेतना को स्वर दिया।

हर प्रस्तुति के पीछे छात्राओं का महीनों का परिश्रम, अनुसंधान और अभ्यास छिपा था, जिसे दर्शकों ने खुले दिल से सराहा।

बनवासी कन्या छात्रावास: आत्मनिर्भरता की पाठशाला

रुद्रपुर जगतपुरा का यह छात्रावास केवल निवास नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्जागरण का केंद्र बन चुका है। यहां की छात्राएं न केवल शैक्षणिक दृष्टि से प्रगति कर रही हैं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आत्मिक रूप से भी स्वयं को मजबूत कर रही हैं।

छात्रावास की अधीक्षिका ने बताया कि “हम सिर्फ शिक्षा नहीं देते, आत्मबल और आत्मविश्वास भी गढ़ते हैं। ये बेटियाँ कल समाज का नेतृत्व करेंगी।”

यह छात्रावास वनवासी कल्याण आश्रम के सहयोग से संचालित है और इसका उद्देश्य जनजातीय बालिकाओं को मुख्यधारा की शिक्षा और संस्कृति से जोड़ना है, ताकि वे अपने समाज की पहचान को अक्षुण्ण रखते हुए राष्ट्र निर्माण में सहभागी बन सकें।

जनजातीय गौरव और भविष्य की राह

‘बनश्री 2025’ की यह प्रस्तुति सिर्फ एक शाम का उत्सव नहीं थी, यह एक आंदोलन था, जिसमें छात्राओं ने अपने भीतर छिपे कौशल, संस्कृति और संकल्प को पूरे आत्मबल के साथ समाज के सामने रखा। यह कार्यक्रम एक मॉडल बन सकता है कि कैसे बनवासी समाज की बेटियाँ आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होकर देश के विकास में सहभागी बन सकती हैं।

कार्यक्रम के अंत में सभी छात्राओं को प्रशस्ति पत्र, पुस्तकें, वाद्य यंत्र और सांस्कृतिक सामग्री भेंट की गई। कई छात्राओं ने मंच पर आकर अपने अनुभव साझा किए—किस तरह यह मंच उनके जीवन में आत्मविश्वास का संचार लेकर आया है।

एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत

‘बनश्री 2025’ केवल एक तिथि विशेष का आयोजन नहीं, बल्कि जनजातीय समाज के भीतर छुपे आत्मगौरव, आत्मस्वाभिमान और सांस्कृतिक चेतना को मंच देने का नाम है। रुद्रपुर के इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि सही दिशा, संसाधन और मंच मिले तो बनवासी बेटियाँ न केवल कला और संस्कृति की वाहक बन सकती हैं, बल्कि समाज की अगुआई भी कर सकती हैं।

बनवासी कन्या छात्रावास, जगतपुरा आज सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति का केंद्र बन चुका है, जिसकी गूंज भविष्य के भारत की पहचान बनेगी।


(रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, रुद्रपुर)

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