संपादकीय : नशे के विरुद्ध जंग – कितनी कामयाबी, कितनी चुनौती?

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रुद्रपुर,उत्तराखंड पुलिस और एएनटीएफ (एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स) ने हाल ही में जिस प्रकार ड्रग्स और अनैतिक गतिविधियों के खिलाफ एक के बाद एक सर्जिकल प्रहार किए हैं, वह निश्चित रूप से सराहनीय है। ऊधमसिंहनगर में एमडीएमए (एक्स्टसी) जैसे खतरनाक सिंथेटिक ड्रग के साथ दो तस्करों की गिरफ्तारी और अवैध पिस्टल बरामद होना इस बात का सबूत है कि नशा तस्करी का जाल कितना संगठित और खतरनाक रूप ले चुका है। एमडीएमए जैसी ड्रग्स केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने और कानून-व्यवस्था के लिए भी गहरी चुनौती हैं।

दूसरी ओर, देहरादून के राजा रोड स्थित एक गेस्ट हाउस में अनैतिक देह व्यापार का भंडाफोड़ भी यह बताता है कि नशे और देह व्यापार के धंधे अक्सर एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं। इन अपराधों की कमाई से ही नशे का नेटवर्क पनपता है। पुलिस की तत्परता और एएचटीयू (एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट) की सक्रियता इन मामलों में सकारात्मक संदेश दे रही है कि ऐसे अपराधों पर अब पर्दा डालना आसान नहीं रहेगा।

साथ ही, किच्छा में स्मैक तस्करी के एक और मामले में पुलिस की कार्रवाई यह दर्शाती है कि नशे का जाल छोटे शहरों और कस्बों तक फैला हुआ है। पुलिस के फॉरेंसिक प्रशिक्षण पर जोर देना, तकनीकी सबूतों के आधार पर जांच को मजबूत करना, एक दूरदर्शी कदम है। क्योंकि अब नशा तस्करी सिर्फ सड़क पर पकड़ने भर से नहीं रुकेगी, इसके पीछे डिजिटल नेटवर्क, पैसों के लेन-देन के हाईटेक तरीके और संगठित गिरोहों की भूमिका है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ पुलिसिया कार्रवाई से नशा-मुक्त उत्तराखंड का सपना पूरा होगा?

पुलिस चाहे कितनी ही सक्रिय हो, नशा-उन्मूलन तभी संभव है जब समाज भी अपनी भूमिका निभाए। बच्चों और युवाओं को नशे के खतरों से सचेत करना, माता-पिता की सतर्कता, स्कूल-कॉलेजों में नशा-निवारण पर शिक्षा और पुनर्वास सेवाओं को सुलभ बनाना – यह सब उतना ही जरूरी है। कानून का डर अपराधियों को रोक सकता है, लेकिन नशे की लत को खत्म करने के लिए मानसिक, सामाजिक और आर्थिक उपाय भी जरूरी हैं।

फिर भी, हालिया गिरफ्तारियां और लगातार कार्रवाई एक आशा जगाती हैं कि “नशा मुक्त उत्तराखंड” कोई खोखला नारा नहीं, बल्कि धरातल पर एक जंग है, जिसे जीतने के लिए पुलिस, प्रशासन और समाज को मिलकर लड़ना होगा।


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