भ्रष्टाचार का पुल और ‘मेंटेनेंस’ का महाभारत संपादकीय, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स संपादक अवतार सिंह बिष्ट उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

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रुद्रपुर का बदनाम पुल—जिसे जनता ने अपने पसीने और टैक्स के पैसों से बनवाया—अब एक नए ‘कॉन्ट्रैक्ट’ की गोद में बैठ चुका है। HN 74 और गल्फ़र कंपनी ने मानो भ्रष्टाचार की ‘गठजोड़’ को सरकारी मोहर के साथ नया जीवन दे दिया है। हमारी पिछली रिपोर्ट के असर से कंपनी ने 2028 तक सड़क और पुल की ‘देखरेख’ करने का आश्वासन तो दिया, लेकिन सवाल यह है कि देखरेख होगी या फिर ‘जेब-रेख’?

सालों पहले भारी-भरकम लागत में बने इस पुल के जॉइंट्स, रेलिंग और एप्रोच रोड आज भी मरम्मत की गुहार लगा रहे हैं। जिम्मेदार विभागों और ठेकेदारों की उदासीनता ने पुल को एक भ्रष्टाचार का प्रतीक बना दिया है। जनता के पैसों से बने इस ढांचे का असली रखवाला जनता है, लेकिन ठेकेदार और विभाग ने इसे अपने निजी ‘ATM’ में बदल दिया है।


रुद्रपुर महापौर विकास शर्मा ने अधिकारियों और ठेकेदार से वार्ता कर यह आश्वासन जरूर दिलवाया कि मेंटेनेंस गल्फ़र कंपनी करेगी, लेकिन यह भरोसा उतना ही मजबूत है जितना हमारे सरकारी ठेकों का ‘क्वालिटी कंट्रोल’। अगर यही कंपनी निर्माण के समय पारदर्शिता और गुणवत्ता का पालन करती, तो मेंटेनेंस का तमाशा आज खड़ा ही न होता।

HN 74 और गल्फ़र—दोनों को जनता को यह जवाब देना होगा कि आखिर क्यों एक पुल, जो दशकों तक बिना बड़ी मरम्मत के चल सकता था, महज कुछ सालों में ‘रुग्ण’ हो गया? क्या ये महज तकनीकी लापरवाही थी या जानबूझकर बनाया गया एक ‘भ्रष्टाचार का लूप’, ताकि मेंटेनेंस के नाम पर फिर से करोड़ों की आमदनी हो सके?

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स यह साफ कर देना चाहता है कि पुल की दीर्घकालिक सुरक्षा और गुणवत्ता की गारंटी केवल कागज़ी वादों से नहीं, बल्कि सख्त निगरानी, जनसहभागिता और स्वतंत्र ऑडिट से ही हो सकती है। वरना यह पुल सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्था के खोखलेपन का ‘कंक्रीट स्मारक’ बनकर खड़ा रहेगा।



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