चा रधाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. श्रद्धालुओं के जत्थे इन पवित्र तीर्थों की यात्रा के लिए निकल पड़े हैं. चारों धामों में से एक है प्रसिद्ध धाम केदारनाथ जो महादेव शिव को समर्पित है.

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प्रश्न उठता है कि महादेव शिव का ‘केदार’ नाम कैसे पड़ा और यह धाम केदारनाथ क्यों कहलाया?

केदारनाथ धाम की एक कथा बहुत प्रचलित है, जो महाभारत से जुड़ी बताई जाती है. कथा के मुताबिक महाभारत युद्ध के बाद, सभी पांडव और महारानी द्रौपदी को हमेशा अपने परिजनों को मारने का पश्चाताप होता था. ऋषियों ने उन्हें सलाह दी कि इस दुख से मुक्ति के लिए महादेव शिव की शरण में शांति तलाशनी होगी. इस सुझाव को मानकर पांडव महादेव की खोज में वाराणसी गए, लेकिन शिव उन्हें वहां नहीं मिले. फिर वह कैलाश की ओर बढ़े, शिव वहां भी नहीं मिले. इस तरह पांडव उनके जिस भी स्थान पर जाते शिव वहां से कहीं और चले जाते.

केदारनाथ धाम की पांडवों से जुड़ी कथा

फिर पांडव केदार क्षेत्र में पहुंचे तो उन्हें शिव यहां एक बैल के रूप में दिखे, लेकिन जैसे ही पांडव उनके पास पहुंचने को हुए तो बैल बने शिव धरती में समाने लगे. ऐसे में भीम ने दौड़कर बैल की पीठ का कूबड़ पकड़ लिया और उन्हें धरती में समाने से रोक लिया. तब शिवजी, अपने स्वरूप में आए और पांडवों को दर्शन देकर उन्हें अपराध बोध से मुक्त किया. पांडवों को दर्शन देने के बाद शिव इस स्थान पर इसी बैल के कूबड़ रूप में विराजमान हो गए और केदार क्षेत्र केदारनाथ धाम कहलाया.

मंदिर में एक दीवार पर पांचों पांडवों की नक्काशी भी उकेरी हुई देखी जा सकती है, जो इस मंदिर के पांडव कालीन होने की गवाही है, फिर भी इस कथा से यह स्पष्ट नहीं होता है कि महादेव शिव केदार कैसे कहलाए या फिर इस क्षेत्र को केदारक्षेत्र क्यों कहा गया?

…लेकिन स्कंद पुराण में दर्ज है अलग कथा

इस प्रश्न का जवाब स्कंद पुराण में मिलता है, जहां केदारनाथ भगवान शिव की विस्तृत कथा का वर्णन है. इस कथा के मुताबिक, एक बार किसी काल में हिरण्याक्ष नाम का एक दैत्य हुआ. इस दैत्य ने त्रिलोक को अपने अधिकार में कर लिया और इंद्र आदि देवताओं को खदेड़ दिया. स्वर्ग से निकाले गए देवराज, हिमालयी क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे चलते हुए एकांत स्थान पर पहुंचे और दैत्य से हार के कारण क्षुब्ध होकर तपस्या में लीन हो गए. उन्होंने कई वर्षों तक शिवजी की तपस्या की.

इंद्र की तपस्या का वरदान है केदारनाथ धाम

इंद्र की तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव महिष (भैंसा) के रूप में प्रकट हुए. उन्होंने इस रूप में इंद्र को परखना भी चाहा, इसलिए शिव ने इंद्र से एक खास प्रश्न पूछा, “के दारयामि?” जिसका अर्थ है ‘जल में किसे डुबा दूं.’ इस प्रश्न के ही अक्षरों से वह पहाड़ी स्थल केदार क्षेत्र कहलाया. स्कंदपुराण में इसी आधार पर इसे केदार खंड कहा गया है. इस प्रश्न को सुनकर इंद्र एक पल को ठहरे, फिर उन्होंने सोचा कि इस निर्जन एकांत प्रदेश में यह प्रश्न कौन करेगा? तब उन्होंने सोचा कि यह प्रश्न इस भैंसे का ही है और कई वर्षों की तपस्या से इंद्र हर प्राणी की चेतना में ईश्वरीय शक्ति को देख सकते थे. उन्होंने समझ लिया कि यह भैंसा भी महादेव का ही स्वरूप है.

‘केदार’ शब्द का गूढ़ रहस्य

इंद्र ने उन्हें अपना आराध्य कहकर प्रणाम किया तो भैंसे ने फिर पूछा केदारयामी. (किसे डुबाऊं). इंद्र ने शिव को पांच राक्षसों के नाम बताए, जो उनके और देवताओं के लिए खतरा थे. उन्होंने कहा कि, हिरण्याक्ष, सुबाहु, वक्त्रकंधर, त्रिशृंग और लोहिताक्ष दैत्यों के नाम लेकर कहा कि इन पांचों का आप वध कर दीजिए, फिर अन्य दैत्य और दानव तो यूं ही कमजोर पड़ जाएंगे. तब शिवजी इसी भैंसे के स्वरूप में वहां पहुंचे जहां हिरण्याक्ष दैत्य था.

शिवजी ने किया पांच दैत्यों का वध

शिव ने इन पांचों दैत्यों का वध कर दिया और फिर, इंद्र के पास पहुंचे. यहां महादेव ने एक कुंड का निर्माण किया. तब इंद्र ने एक और वरदान मांगा और महादेव शिव से विनती की आप इसी स्वरूप के लिंगरूप में यहां निवास करें. मैं हर दिन स्वर्ग से आकर यहां आपकी पूजा करूंगा. तब शिवजी ने कहा- तुम्हारी इच्छानुसार मैं यहां केदार शिव के नाम से निवास करूंगा. इस कुंड के जल को दोनों हाथों से तीन बार पीने से श्रद्धालुओं के माता-पिता दोनों पक्ष की तीन पीढ़ियों का उद्धार होगा. बाएं हाथ से जल पीने से मातृ-पक्ष का, दाएं हाथ से पितृ-पक्ष का, और दोनों हाथों से स्वयं का उद्धार होगा.

यदि कोई भक्त यहां पिंडदान करता है और गया में भी पिंडदान करता है, तो उसे ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इंद्र ने इस क्षेत्र में केदारशिव का मंदिर बनवाया, जो चारधाम में से एक है. मंदिर की यात्रा 6 माह तक होती है, सर्दियों में ये मंदिर बंद रहता है. केदारनाथ भारत की प्राचीन परंपरा और संस्कृति का परिचायक रहा है. शास्त्रीय संगीत में इसी नाम से एक पूरा राग भगवान शिव को समर्पित है, जिसे ‘राग केदार’ कहा जाता है. राग केदार की कहानी अगली कड़ी में…

✧ धार्मिक और अध्यात्मिक

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