सुख-समृद्धि में वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि आती है. इसी तरह वैदिक पंचांग को देखें तोज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर एकदंत संकष्टी चतुर्थी (Ekdant Sankashti Chaturthi 2025) मनाई जाती है. आइए जानें इस बार की एकदंत संकष्टी चतुर्थी की डेट क्या है और शुभ मुहूर्त कब कब है.


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2025 डेट (Ekdant Sankashti Chaturthi 2025 Date and Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग को देखें तो ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि की शुरुआत 16 मई के दिन सुबह 04 बजकर 02 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 17 मई को सुबह के 05 बजकर 13 मिनट पर तिथि समाप्त हो रही है. उदया तिथि मेंएकदंत संकष्टी चतुर्थी का पर्व इस साल 16 मई को मनाया जाएगा.
शुभ मुहूर्त (Today Shubh Muhurat)
ब्रह्म मुहूर्त सुबह के 04 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर 04 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.
विजय मुहूर्त दोपहर के 02 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर 03 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.
गोधूलि मुहूर्त शाम के 07 बजकर 04 मिनट से शुरू होकर 07 बजकर 25 मिनट तक रहेगा.
निशिता मुहूर्त रात के 11 बजकर 57 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा.
सूर्योदय और चंद्रोदय कब होगा
सूर्योदय सुबह 05 बजकर 30 मिनट पर होगा.
सूर्यास्त शाम 07 बजकर 06 मिनट पर होगा.
चंद्रोदय रात 10 बजकर 39 मिनट पर होगा.
चंद्रास्त दोपहर 01 बजकर 01 मिनट पर होगा.
एकदंत संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Ekdant Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
-
चतुर्थी तिथि पर उठकर स्नान आदि करें और देवी-देवता का मन ही मन ध्यान करें.
-
अब घर के मंदिर की साफ सफाई करें.
-
चौकी पर स्वच्छ कपड़ा बिछाएं और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.
-
गणपति बप्पा को पीला चंदन लगाकर पूजा शुरू करें. पुष्प अर्पित करें.
-
भोग में उनका प्रिय मोदक और लड्डू अर्पित करें.
-
देसी घी का दीपक जलाएं और भगवान की आरती उतारें.
-
गणेश जी के शक्तिशाली मंत्रों का जाप करें.
-
गणेश जी के सामने गणेश चालीसा का पाठ जरूर करें.
-
अंत में सभी भक्तों में प्रसाद बाटें.
भगवान गणेश के मंत्र
“ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥”
“गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥”

