
देहरादून। मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने आज मुख्य सेवक सदन, देहरादून में उत्तराखण्ड विद्युत अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा द्वारा आयोजित ‘स्वागत एवं अभिनंदन’ कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर ऊर्जा निगमों के कार्मिकों ने उनकी समस्याओं के समाधान के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया। कार्यक्रम में प्रमुख सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम, एम.डी. यू.जे.वी.एन.एल. श्री संदीप सिंघल, शेखर त्रिपाठी सहित अनेक अधिकारी मौजूद रहे।


मुख्यमंत्री ने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह अभिनंदन वास्तव में उत्तराखण्ड की जनता के नाम है, जिनके भरोसे उन्हें सेवा का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश के रूप में स्थापित करने का सपना राज्य निर्माण आंदोलन के मूल में था और इसे साकार करने के लिए समन्वय और तकनीकी नवाचार जरूरी है।
गुरुवार को मुख्यमंत्री आवास स्थित मुख्य सेवक सदन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऊर्जा निगमों के कार्मिकों की ओर से आयोजित ‘स्वागत एवं अभिनन्दन’ कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस मौके पर उत्तराखण्ड विद्युत अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा की ओर से ऊर्जा निगमों के कार्मिकों की विभिन्न समस्याओं के समाधान करने पर मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस अभिनंदन की असली हकदार उत्तराखंड प्रदेश की जनता है, जिन्होंने प्रदेश की सेवा करने का अवसर दिया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को पॉवर सरप्लस राज्य बनाने के लिए सबको समन्वय के साथ आगे बढ़ना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार का राज्य सरकार को हर योजना पर सहयोग मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में राज्य सरकार उत्तराखंड को ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए संकल्पित है। बिजली उत्पादन के लिए लखवाड़ बांध परियोजना, जमरानी बांध बहुउद्देश्यीय परियोजना और देहरादून में आने वाले 50 सालों में पेयजल की समस्याओं को दूर करने के लिए सौंग बांध परियोजना पर कार्य गतिमान है। राज्य में अत्याधुनिक जीआईएस (गैस इंसुलेटेड सबस्टेशन) उपकेंद्रों की स्थापना भी जारी है। उन्होंने कहा राज्य में 16 लाख स्मार्ट मीटर लगाकर टेक्नॉलजी के माध्यम से पारदर्शिता लाने का कार्य किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून शहर की बिजली लाइनें भूमिगत की जा रही हैं। यूपीसीएल की ओर से अत्याधुनिक ओटोमेटेड डिमान्ड रिसपॉन्स सिस्टम के उपयोग से ओवरड्राल की स्थिति पर रियल टाइम पर नियंत्रण कर हर वर्ष करोड़ो रूपये की बचत की है। उन्होंने कहा कि 2023 में देहरादून में विश्व स्तरीय आपदा प्रबंधन सम्मलेन आयोजित किया गया था। आपदाओं को रोका नहीं जा सकता पर आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता लहै। राज्य सरकार ने इकोलॉजी और इकोनॉमी में संतुलन वाले विकास के मॉडल को चुना है। इकॉनमी और इकॉलजी के बीच समन्वय बनाकर ग्रीन एनर्जी के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के अन्तर्गत लगभग 20,000 रूफटॉप सोलर संयंत्र स्थापित किए गए। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों की बेस्ट प्रैक्टिस को हमने अपने राज्य में भी अपनाना है।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार के सहयोग से यूपीसीएल ने विशेष श्रेणी में देशभर में प्रथम स्थान हासिल किया है। राज्य में लखवाड़, जमरानी और सौंग जैसी जलविद्युत परियोजनाएं तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं, साथ ही 16 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है। देहरादून में बिजली की लाइनें भूमिगत की जा रही हैं, और अत्याधुनिक ऑटोमेटेड डिमांड रिस्पॉन्स सिस्टम से करोड़ों की बचत भी हो रही है।
लेकिन इन तमाम प्रयासों और दावों के बीच एक सवाल ज़रूर उठता है — क्या उत्तराखण्ड वास्तव में एक ‘ऊर्जा प्रदेश’ कहलाने लायक है?
ऊर्जा प्रदेश का टैग या बिजली बिल का बोझ?
जहां एक ओर मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड को ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की जनता बेतहाशा बढ़े बिजली के बिलों से परेशान है। आश्चर्यजनक रूप से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य — जो खुद ऊर्जा उत्पादक नहीं हैं — वहां उपभोक्ताओं को उत्तराखण्ड से कम दरों पर बिजली मिल रही है। जबकि उत्तराखण्ड, जो जलविद्युत उत्पादन में अग्रणी है, वहां की जनता सबसे अधिक भुगतान कर रही है।
यह स्थिति राज्य सरकार की नीति पर सवाल खड़ा करती है। क्या ऊर्जा प्रदेश का टैग सिर्फ सरकारी विज्ञापनों और मंचीय भाषणों तक सीमित रह गया है?
मुख्यमंत्री का स्वागत होना चाहिए — यह शिष्टाचार है। लेकिन जनता का यह भी अधिकार है कि वह पूछे:
“ऊर्जा हमारे यहां पैदा हो रही है, पर सस्ती बिजली कहीं और क्यों जा रही है?”
यदि राज्य सरकार ऊर्जा प्रदेश के सपने को सच में साकार करना चाहती है, तो उसे जनता को राहत देने के उपाय भी साथ-साथ करने होंगे।
हमें विश्वास है कि मुख्यमंत्री राज्य आंदोलनकारियों की उस परिकल्पना को सार्थक करेंगे जिसमें उत्तराखण्ड न केवल आत्मनिर्भर हो बल्कि जनता की जेब पर भार डाले बिना विकास की ओर बढ़े।
उत्तराखंड सरकार को धन्यवाद, लेकिन जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की भी है जिम्मेदारी।
