
रुद्रपुर/हल्द्वानी, 29 जून 2025क्रिएटिव उत्तराखंड के तत्वावधान में रविवार को आनंदा अकादमी स्कूल में आयोजित समारोह में कुमाउनी भाषा की वरिष्ठ लेखिका और पहली महिला रचनाकारों में शुमार 87 वर्षीय श्रीमती देवकी महरा का नागरिक अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर उन्हें “दुदबोली” कुमाउनी पत्रिका द्वारा प्रतिष्ठित मथुरादत्त मठपाल स्मृति साहित्य सम्मान-2025 से सम्मानित किया गया।
समारोह में वक्ताओं ने देवकी महरा के छह दशक लंबे साहित्यिक योगदान की भूरी-भूरी प्रशंसा की। प्रो. दिवा भट्ट ने कहा कि “साठ के दशक में जब पहाड़ी समाज में महिलाओं के लिए सामाजिक बंधन बेहद मजबूत थे, तब देवकी महरा जी ने अपनी लेखनी से न सिर्फ इन बंधनों को चुनौती दी, बल्कि समाज के भीतर नई चेतना का संचार किया।”


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
प्रो. गिरीश चंद्र पंत ने देवकी महरा के साहित्य पर विस्तार से चर्चा की। वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि देवकी महरा ने अपनी साठ साल से भी अधिक लंबी साहित्य यात्रा में समय-समय पर ठहरकर स्वयं को गढ़ा और समाज को महत्वपूर्ण साहित्यिक निधियां सौंपीं।
कार्यक्रम में गीतकार गोपाल दत्त भट्ट ने देवकी महरा की पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनके व्यक्तिगत संघर्षों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की विशेष आकर्षण लोकगायिका वीना तिवारी रही, जिन्होंने देवकी महरा के लिखे गीतों का सस्वर गायन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर “दुदबोली” कुमाउनी पत्रिका के नौवें अंक का भी विमोचन किया गया। यह अंक वरिष्ठ गीतकार गोपाल दत्त भट्ट पर केंद्रित है। गणेश मर्तोलिया और कमल मेहरा ने भी मंच पर कुमाउनी गीतों की सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने किया।
“पहरू” पत्रिका के संस्थापक और उत्तराखंड लोकभाषा संस्थान के सदस्य डॉ. हयात सिंह रावत ने श्रीमती देवकी महरा का विस्तृत साक्षात्कार लिया, जिसमें उनके साहित्यिक और व्यक्तिगत अनुभवों पर चर्चा हुई।
देवकी महरा का परिचय
26 मई 1937 को जन्मीं श्रीमती देवकी महरा मूल रूप से शिक्षिका रही हैं। उन्होंने हिंदी और कुमाउनी में कविताएं, गीत, कहानियां, उपन्यास समेत करीब एक दर्जन रचनाएं लिखीं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी उनकी कई रचनाओं और वार्ताओं का प्रसारण हुआ है।
उनकी प्रमुख कृतियों में ‘प्रेमांजलि’, ‘स्वाति’, ‘नवजागृति’ (काव्य संग्रह), ‘सपनों की राधा’, ‘आखिरी पड़ाव’ (उपन्यास), ‘निशास’, ‘यादों की बर्यात’, ‘पराण-पुतुर’ (कुमाउनी काव्य संग्रह) शामिल हैं। ‘प्रीत के गीत’, ‘पछ्याण’, ‘किरमोई तराण’ जैसे संयुक्त काव्य संग्रहों में भी उनकी कविताएं प्रकाशित हुई हैं।
अपने साहित्यिक योगदान और सामाजिक दृष्टिकोण के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार, कुमाऊं गौरव सम्मान, आचार्य नरेंद्रदेव निधि शिक्षा सम्मान, वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, वसुंधरा सम्मान, मौलाराम सम्मान, संस्कृति सम्मान तथा तीलू रौतेली सम्मान प्रमुख हैं।
देवकी महरा ने समाज में व्याप्त कई रूढ़ियों को तोड़ते हुए अंतरजातीय विवाह किया। उन्होंने यशपाल सिंह मेहरा से विवाह किया, जो ‘बागनाथ’ साप्ताहिक के संपादक थे। उनके साहित्य में पहाड़ की महिलाओं के दुख, संघर्ष, संवेदनाएं और सामाजिक चेतना स्पष्ट झलकती है।
कार्यक्रम में नंदिनी मठपाल, महेंद्र माहरा “मधु”, दयाल पांडे, हिमांशु पाठक, हेम पंत, नरेंद्र बंगारी, प्रभात उप्रेती, डॉ. देवकी नंदन भट्ट, भास्कर उप्रेती, दिनेश पंत, त्रिभुवन बिष्ट, डॉ. जे सी भट्ट, दामोदर जोशी “देवांशू”, हेमा हरबोला, दीक्षा जोशी, दया ऐंठानी, गौरव जोशी, किशोर गहतोड़ी, कमल पाठक, बीना बड़शिलिया समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार और संस्कृति प्रेमी उपस्थित रहे।
इस आयोजन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कुमाउनी भाषा और साहित्य की समृद्ध परंपरा आज भी नई ऊर्जा के साथ जीवंत है और देवकी महरा जैसे साहित्यकार इसके प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

