संपादकीय :त्रिशूल चौक पर सियासी त्रिशूल : रुद्रपुर की सांस्कृतिक पहल पर श्रेय संग्राम

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रुद्रपुर का इंदिरा चौक, आने वाले दिनों में “त्रिशूल चौक” के नाम से पहचाना जाएगा। नगर निगम महापौर विकास शर्मा और अमरनाथ सेवा मंडल की ओर से यहां शिव के त्रिशूल की स्थापना का भूमि पूजन कर एक ऐतिहासिक पहल की गई। यह कदम धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान को नगर के प्रमुख चौराहों से जोड़ने की दिशा में सराहनीय है। लेकिन, इस धार्मिक पहल के पीछे सियासी संग्राम भी अपने पूरे शबाब पर है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

दो दावेदार, एक परियोजना

विधायक शिव अरोड़ा का दावा है कि वर्ष 2023 में उन्होंने ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को प्रस्ताव सौंपा था कि इंदिरा चौक पर भगवान शिव के त्रिशूल और डीडी चौक पर डमरू स्थापित किए जाएं। यही नहीं, उन्होंने सड़क चौड़ीकरण की योजना को भी अपनी पहल बताया। उनके मुताबिक, मुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव को सीएम घोषणा में शामिल कर स्वीकृति विकास शर्मा न सिर्फ त्रिशूल स्थापना की पहल को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि उन्होंने विधायक की अनुपस्थिति में भूमि पूजन भी करवा डाला। शहर में चर्चा इस बात की तेज है कि आखिर दोनों नेता एक ही पार्टी से होते हुए भी इस परियोजना का श्रेय अकेले लेने की होड़ में क्यों हैं।

क्या हुआ पार्टी प्रोटोकॉल का उल्लंघन?भारतीय जनता पार्टी का संगठनात्मक ढांचा और प्रोटोकॉल अपेक्षा करता है कि किसी भी सार्वजनिक योजना के शुभारंभ या भूमि पूजन में क्षेत्रीय विधायक की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाए, खासकर जब योजना विधायक की ही पहल पर हो। विधायक, जनता द्वारा सीधे निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और कार्यपालिका व सरकार के बीच सेतु का काम करते हैं।

यहां विधायक शिव अरोड़ा अनुपस्थित रहे, और महापौर विकास शर्मा ने भूमि पूजन कर डाला। क्या यह प्रोटोकॉल का उल्लंघन है? तकनीकी तौर पर देखें तो महापौर भी जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं और नगर निगम की सीमाओं में उनका दायरा निश्चित है। महापौर का दायित्व शहर के विकासात्मक कार्यों को नगर निगम के स्तर पर अंजाम देना है। लेकिन जब बात किसी सीएम घोषणा और विधायक के प्रस्ताव पर आधारित योजना की हो, तो प्रोटोकॉल के लिहाज से विधायक की उपस्थिति या कम से कम उनकी सहमति औपचारिक रूप से दिखाई जानी चाहिए थी।

हालांकि, पार्टी गाइडलाइन में ऐसा कोई लिखित नियम नहीं कि महापौर स्वयं भूमि पूजन न कर सकें। मगर राजनीतिक परिपक्वता और संगठनात्मक शिष्टाचार की दृष्टि से यह अपेक्षा रहती है कि दोनों प्रतिनिधि मिलकर ही कार्यक्रम करें, ताकि जनता के सामने एकजुटता का संदेश जाए। इस लिहाज से यह मामला “उल्लंघन” कम, लेकिन “सियासी असहजता” ज्यादा है।

श्रेय की राजनीति और जनता की अपेक्षाएं?इस पूरे विवाद की जड़ श्रेय लेने की राजनीति है। विधायक चाहते हैं कि जनता को यह पता चले कि त्रिशूल और डमरू की स्थापना उन्हीं की पहल का नतीजा है। वहीं, महापौर विकास शर्मा इस मौके को अपने नेतृत्व और सक्रियता का प्रमाण बताना चाहते हैं।

यह प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है, क्योंकि दोनों नेता एक ही राजनीतिक दल के हैं और 2027 के चुनावी परिदृश्य की तैयारी कर रहे हैं। महापौर विकास शर्मा का कार्यकाल भी धीरे-धीरे चुनावी दौर में दाखिल हो रहा है, जबकि विधायक शिव अरोड़ा के लिए भी पुनः टिकट और जीत सुनिश्चित करना आसान नहीं रहने वाला। ऐसे में धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीक जुड़ी किसी भी परियोजना को लोकप्रियता का सीधा जरिया माना जा रहा है।

लेकिन यह राजनीतिक खींचतान जनता को भ्रमित भी कर रही है। जनता के लिए मुद्दा यह नहीं है कि त्रिशूल किसने लगवाया, बल्कि यह है कि शहर का सौंदर्यीकरण, धार्मिक आस्था और ट्रैफिक प्रबंधन कैसे सुधरेगा। त्रिशूल और डमरू की स्थापना केवल प्रतीकात्मक पहल न रहे, बल्कि उनका सही रख-रखाव और सौंदर्यीकरण भी सुनिश्चित हो।

राजनीतिक,भाजपा के लिए यह मामला एक संकेतक है कि कैसे एक ही पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच तालमेल की कमी जनता के बीच सवाल खड़े कर सकती है। संगठन को चाहिए कि वह इन परिस्थितियों में स्पष्ट दिशा-निर्देश दे, ताकि ऐसी सार्वजनिक परियोजनाएं आपसी टकराव का कारण न बनें।

त्रिशूल का यह सांस्कृतिक प्रतीक रुद्रपुर को नई पहचान देगा, लेकिन इसके पीछे की सियासी कहानी बता रही है कि धार्मिक आस्था का मंच भी राजनीति के त्रिशूल से अछूता नहीं है। जनता की अपेक्षा है कि यह त्रिशूल विभाजन का नहीं, बल्कि एकता और विकास का प्रतीक बने।



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