संपादकीय :सीबीआई नोटिस पर सियासी विलाप : राजनीति में विक्टिम कार्ड की संस्कृति

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राजनीति में हर घटनाक्रम को अपने पक्ष में मोड़ लेना एक पुराना हथियार रहा है। लेकिन जब कोई बड़ा नेता केवल जांच एजेंसियों के नोटिस पर बार-बार विलाप करने लगे और खुद को “पीड़ित” बताने लगे, तो सवाल उठना लाजिमी है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इन दिनों इसी राजनीति का प्रदर्शन कर रहे हैं। जैसे ही सीबीआई ने उन्हें 2027 विधानसभा चुनाव से पहले पूछताछ हेतु नोटिस भेजा, वे केंद्र सरकार पर “साजिश” का आरोप लगाने लगे।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

लेकिन इस बीच एक और नाम सामने आया—उमेश कुमार, जिन्हें भी उसी केस में नोटिस मिला है। उन्होंने सीधा पलटवार किया—“हरीश रावत जी, अगर केंद्र सरकार आपको घेरकर चुनावी राजनीति से रोकना चाहती है, तो मुझे क्यों बुला रही है? क्या मैं भी मुख्यमंत्री बनने वाला हूँ?” यह सवाल न केवल तीखा व्यंग्य है, बल्कि रावत के उस “विक्टिम कार्ड” पर भी करारा प्रहार है, जिसे वे हर बार अपने बचाव के लिए खेलते हैं।

सच तो यह है कि सीबीआई नोटिस कोई सियासी बयान नहीं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। यदि किसी के खिलाफ आरोप हैं, तो जांच एजेंसियां अपनी कार्रवाई करेंगी ही। यह कहना कि हर जांच “साजिश” है, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अविश्वास जताने जैसा है। दुख की बात है कि जनता के बड़े नेता, जिनसे साहस और पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है, वे भी हर बार “पीड़ित” बनकर सामने आते हैं।

राजनीति में विपक्ष का काम सरकार की नीतियों और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाना है, लेकिन जब नेता स्वयं संदेह के घेरे में हों, तो उन्हें जांच में सहयोग करना चाहिए, न कि लगातार “विलाप” कर अपनी छवि बचाने का प्रयास। लोकतंत्र में जनता सब देखती है और समझती है कि कौन सचमुच अन्याय का शिकार है और कौन केवल सहानुभूति बटोर रहा है।

हरीश रावत को चाहिए कि वे विक्टिम कार्ड खेलना छोड़कर खुले मन से जांच का सामना करें। आखिरकार, नेतृत्व का मतलब यही होता है कि आप अपने हर कदम पर जनता और न्याय के प्रति जवाबदेह रहें। नोटिस से डरने या इसे सियासी साजिश बताने से न तो सच दबेगा और न ही जनता भ्रमित होगी।

असली चुनौती है, जनता के सामने सच्चाई लाना—ना कि हर बार “मुझे केंद्र ने रोका, मुझे भाजपा ने फंसाया” का राग अलापना। राजनीति अब सहानुभूति से नहीं, जवाबदेही से चलेगी।



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