
हरिद्वार के धनौरी गंगनहर में एक हृदयविदारक घटना घटी। उत्तर प्रदेश के रामपुर निवासी मेहंदी हसन अपने दो बच्चों के साथ गंगनहर के किनारे घूमने आए थे। इस दौरान उनका बेटा बहाव में बह गया, उसे बचाने के लिए पिता ने छलांग लगा दी और पीछे से बेटी भी फिसलकर पानी में जा गिरी। तीनों की तलाश जल पुलिस कर रही है, लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली। यह कोई अकेली घटना नहीं है। 2025 के पहले छह महीनों में उत्तराखंड के गंगा, यमुना, नहरों और झीलों में डूबने से होने वाली मौतों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ी है। यह लेख राज्य में डूबने से हो रही मौतों, उनके कारणों, सरकारी उदासीनता और संभावित समाधान पर केंद्रित है।
उत्तराखंड में डूबने से मौतों के आंकड़े
उत्तराखंड में SDRF और जल पुलिस द्वारा जारी रिपोर्टों और मीडिया रिपोर्टिंग के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि जनवरी से जून 2025 तक करीब 150 से अधिक लोग डूबकर जान गंवा चुके हैं। इनमें से 60% घटनाएं गर्मी के मौसम में हुईं जब पर्यटक और स्थानीय लोग नदी-नहरों में स्नान करने पहुंचे। हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों से सबसे अधिक घटनाएं सामने आई हैं। हालांकि, सरकार की ओर से अभी तक इस संबंध में कोई समग्र सार्वजनिक रिपोर्ट या डेटा पोर्टल उपलब्ध नहीं है, जो इस विषय को गंभीरता से न लिए जाने का संकेत है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
डूबने से मौत के प्रमुख कारण
- सुरक्षा उपायों की कमी: अधिकांश जल स्रोतों के किनारे सुरक्षा बैरीकेड, चेतावनी बोर्ड और निगरानी कर्मी नहीं होते। गंगनहर, नहरें और झीलें बिना किसी निगरानी के खुली रहती हैं।
- जन जागरूकता का अभाव: लोगों को जल स्रोतों के खतरों और प्राथमिक सावधान
