धराली आपदा: पाँच लाख की सांत्वना या स्थायी पुनर्वास की योजना?धराली आपदा: पाँच लाख का दिखावा और जमीन की सच्ची जरूरत

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धराली-हर्षिल आपदा में सबकुछ खो चुके लोगों के लिए मुख्यमंत्री धामी ने पाँच लाख रुपये की सहायता का ऐलान किया है। लेकिन सवाल है — क्या यह राशि जीवनभर की कमाई, घर, खेती, पशुधन और बच्चों के भविष्य की भरपाई कर सकती है? यह राहत उतनी ही असंतोषजनक है, जितनी धारावी पीड़ितों को पहले दी गई 5000 रुपये की “मदद” थी। फर्क सिर्फ इतना है कि वहाँ महानगर की बस्तियाँ थीं और यहाँ पहाड़ का दर्द है — लेकिन सरकार की संवेदनशीलता का पैमाना कहीं और से तय होता दिखता है।

मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में सरकार के पास हज़ारों एकड़ सरकारी भूमि है — कृषि फार्म, अनुपयोगी विभागीय जमीन, और ऐसी संपत्तियाँ जो अक्सर प्रभावशाली लोगों में “बंदरबांट” हो जाती हैं। यदि सरकार वास्तव में पलायन रोकना और अपने मूल निवासियों को सुरक्षित बसाना चाहती है, तो इन आपदा प्रभावितों को प्रति परिवार 1 से 5 एकड़ जमीन दी जाए। साथ ही पुनर्वास स्थल पर पक्का मकान, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएँ।

रेस्क्यू अभियान, राशन वितरण और हेलीकॉप्टरों की उड़ानें तात्कालिक राहत के प्रतीक हैं, लेकिन असली नेतृत्व वही है जो संकट के बाद लोगों को फिर से खड़ा करे। धराली के लोग चेक से नहीं, जमीन और सुरक्षित भविष्य से बसेंगे।

जमीन है, लेकिन संवेदना कहाँ है?

अगर सरकार ने इस बार भी केवल मुआवजे के चेक बांटे और फोटो खिंचवाकर चली गई, तो यह पहाड़ फिर खाली होंगे — और तब “पलायन” पर भाषण देने के लिए कोई श्रोता भी नहीं बचेगा।

उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल क्षेत्र में हालिया आपदा ने न केवल मकान, दुकान और होटल बहा दिए, बल्कि स्थानीय लोगों की रोज़ी-रोटी, उनके सपने और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी मलबे में दबा दिया। इस संकट में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल राहत के रूप में पाँच लाख रुपये की घोषणा की है। सुनने में यह राशि बड़ी लग सकती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह केवल सांत्वना भर है — पुनर्निर्माण का समाधान नहीं।

उत्तराखंड सरकार के पास मैदानी क्षेत्रों में और राज्यभर में हज़ारों एकड़ सरकारी ज़मीन है — कृषि फार्म, अनुपयोगी विभागीय भूमि, और ऐसी संपत्तियाँ जो वर्षों से खाली पड़ी हैं। यह ज़मीन अक्सर “बंदरबांट” के ज़रिए प्रभावशाली लोगों के हिस्से में चली जाती है, जबकि राज्य के मूल निवासी, जो आपदाओं में सबकुछ खो देते हैं, पुनर्वास के लिए किराए के घर या रिश्तेदारों की दया पर निर्भर रहते हैं।

सरकार अगर सच में पलायन रोकना चाहती है, तो उसे इस आपदा को अवसर में बदलना चाहिए —

सोचिए, जिस परिवार का मकान, खेती, पशुधन और जीवनभर की पूँजी एक ही झटके में मिट्टी में मिल गई हो, क्या वह पाँच लाख में अपनी ज़िंदगी को वापस खड़ा कर सकता है? क्या यह मुआवज़ा बच्चों की शिक्षा, रोजगार, और भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है? यह वैसा ही है जैसे गहरे घाव पर हल्दी की जगह मिर्च छिड़कना और फिर कहना — “हमने इलाज कर दिया।”

कृपया फार्म जैसे बड़े कृषि फार्म और विभागीय ज़मीन का कम से कम 10% हिस्सा आपदा प्रभावित मूल निवासियों के लिए आरक्षित हो।



  • प्रत्येक प्रभावित परिवार को 1 से 5 एकड़ तक कृषि और आवासीय ज़मीन आवंटित की जाए।
  • पुनर्वास स्थल पर पक्का मकान, बच्चों के लिए स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, और रोजगार के अवसर सुनिश्चित किए जाएँ।

सिर्फ रेस्क्यू नहीं, भविष्य की सुरक्षा जरूरी?रेस्क्यू ऑपरेशन और राशन वितरण तत्काल ज़रूरत हैं, लेकिन असली नेतृत्व वही है जो संकट के बाद लोगों को फिर से स्थायी रूप से खड़ा कर सके। आज यदि धराली के लोगों को केवल पैसे देकर उनकी किस्मत पर छोड़ दिया गया, तो कल वे राज्य छोड़ने को मजबूर होंगे — और फिर पलायन पर शोक सभाएँ आयोजित होती रहेंगी।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की परीक्षा?मुख्यमंत्री धामी की यह पाँच लाख वाली घोषणा राजनीतिक दृष्टि से तात्कालिक ताली बटोर सकती है, लेकिन यह राज्य के भविष्य की असली परीक्षा में फेल होती है। असली चुनौती यह है — क्या सरकार अपने ही लोगों के लिए वह संवेदनशीलता और दूरदृष्टि दिखाएगी, जो अक्सर बाहरी निवेशकों और योजनाओं के लिए सुरक्षित रखी जाती है?

धराली आपदा एक चेतावनी है कि उत्तराखंड अब महज़ “आपदा प्रबंधन” से आगे बढ़कर “स्थायी पुनर्वास नीति” अपनाए। वरना पाँच लाख के चेक और कैमरे के फ्लैश के बाद भी पहाड़ खाली होते रहेंगे, और सरकारें “हमने पूरी मदद की” के बयान देती रहेंगी।



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