उत्तराखंड के युवाओं के साथ चयन में भेदभाव या क्रिकेट राजनीति का नया चेहरा?(संपादकीय — अवतार सिंह बिष्ट) हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) की ओर से हाल ही में घोषित अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम ने पूरे राज्य के खेलप्रेमियों को उत्साहित करने के बजाय कई सवालों में उलझा दिया है। कारण—टीम की कप्तान के रूप में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) की भूमि उमर का चयन।
एक ओर सीएयू यह दावा करता है कि चयन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही, वहीं दूसरी ओर यह तथ्य सामने आ रहा है कि कप्तान की मूल निवासी प्रमाणिकता उत्तराखंड की नहीं है। यह केवल एक खिलाड़ी का मामला नहीं है, बल्कि यह उस “पहचान” से जुड़ा प्रश्न है, जिसके लिए उत्तराखंड के युवाओं ने वर्षों तक संघर्ष किया है।

चयन प्रक्रिया पर उठते सवाल?सीएयू के अनुसार, चयन प्रक्रिया अक्टूबर के पहले सप्ताह में आयोजित ट्रायल्स के माध्यम से हुई। राज्य के विभिन्न जिलों—देहरादून से लेकर पिथौरागढ़, चमोली, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर तक—सैकड़ों प्रतिभाशाली बेटियों ने भाग लिया। परंतु इन सभी प्रयासों के बावजूद कप्तानी की जिम्मेदारी एक ऐसी खिलाड़ी को मिलना, जो मूल रूप से उत्तराखंड की नहीं है, कईयों के लिए चौंकाने वाला है।
यदि चयन “मूल निवास प्रमाणपत्र” के आधार पर होता है, तो फिर भूमि उमर की पात्रता कैसे तय हुई? क्या किसी विशेष प्रभाव या दबाव में यह निर्णय लिया गया?

उत्तराखंड की बेटियों के साथ अन्याय?उत्तराखंड के पहाड़ों और मैदानों से आईं दर्जनों बेटियों ने कठिन परिस्थितियों में क्रिकेट की बुनियादी सुविधाओं के बिना अभ्यास किया है। इनमें से कई खिलाड़ी सीमित संसाधनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं। ऐसे में, जब किसी बाहरी राज्य की खिलाड़ी को कप्तान बना दिया जाता है, तो यह न केवल बाकी खिलाड़ियों के आत्मविश्वास पर आघात करता है, बल्कि यह एक प्रकार की “मानसिक बेइंसाफी” भी है।
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तराखंड की अंडर-19 टीम का प्रतिनिधित्व उन खिलाड़ियों को करना चाहिए जो राज्य की मिट्टी से, उसकी संघर्षशील परिस्थितियों से जुड़ी हों। कप्तानी केवल रन बनाने का मामला नहीं है—यह “पहचान और नेतृत्व” का प्रतीक है।

सीएयू का तर्क और जनता की शंका?सीएयू अध्यक्ष दीपक मेहरा का कहना है कि भूमि उमर ने देहरादून में अपनी पढ़ाई की है और बचपन से दून में रह रही हैं। यदि ऐसा है तो इस बात के प्रमाण सार्वजनिक रूप से रखे जाने चाहिए।
खेल चयन प्रक्रिया केवल “आंतरिक कमिटी” के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। यह जनता के पैसे से चलने वाली संस्था है, इसलिए उसकी जवाबदेही भी जनता के प्रति है।

पारदर्शिता की मांग?उत्तराखंड में पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां खेल संघों में “पारदर्शिता” और “स्थानीय खिलाड़ियों के अधिकार” को लेकर विवाद हुए हैं। फुटबॉल, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, हॉकी—हर खेल में “बाहरी प्रभाव” और “पसंद-नापसंद” की राजनीति का असर देखा गया है।
क्रिकेट में यह प्रवृत्ति और खतरनाक है, क्योंकि यह सबसे लोकप्रिय खेल है और यहां से खिलाड़ियों के करियर तय होते हैं।

सरकार और खेल विभाग की जिम्मेदारी?राज्य सरकार और खेल विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी टीम के चयन में स्थानीय खिलाड़ियों के अधिकारों की अनदेखी न हो। अगर भूमि उमर वास्तव में देहरादून की स्थायी निवासी हैं, तो यह जानकारी स्पष्ट रूप से सार्वजनिक की जानी चाहिए।
अन्यथा, यह मामला केवल “खेल” नहीं बल्कि “भेदभाव” और “अवैध पात्रता” का रूप ले लेगा।

उत्तराखंड की बेटियों का हक़?उत्तराखंड की बेटियां सिर्फ घरेलू टूर्नामेंट नहीं खेलना चाहतीं—वे देश के लिए भी खेलना चाहती हैं। लेकिन उनके सपनों के बीच अगर “बाहरी प्रभाव” और “राजनीतिक हित” दीवार बन जाएं, तो यह राज्य की खेल नीति की असफलता का प्रमाण है।

चयन में भाई-भतीजावाद या खेल में सौदेबाजी?संपादकीय — अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स)क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) की अंडर-19 महिला टीम की कप्तान के रूप में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) की भूमि उमर का चयन अब “खेल चयन” से ज्यादा “सौदेबाजी” का मुद्दा बन गया है। सूत्रों के अनुसार, कप्तान चयन में भारी आर्थिक लेन-देन हुआ है। हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स को प्राप्त जानकारी के मुताबिक, चयन समिति के कुछ सदस्यों को इस प्रक्रिया के दौरान मोटी रकम दी गई। सवाल यह उठता है कि जब उत्तराखंड की सैकड़ों बेटियां कठिन परिस्थितियों में अभ्यास कर रहीं हैं, तो आखिर किसी बाहरी राज्य की खिलाड़ी को कप्तान क्यों बनाया गया?

यह मामला केवल कप्तानी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खेल संघों में पनप रहे भाई-भतीजावाद और आर्थिक भ्रष्टाचार का प्रतीक है। पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड के खेल संगठनों में “बाहरी प्रभाव” और “निजी हित” का बोलबाला रहा है, जिससे स्थानीय प्रतिभाएं हाशिए पर चली गई हैं।

जनता और खिलाड़ियों की मांग है कि कप्तान चयन से जुड़े सभी दस्तावेज और पात्रता प्रमाणपत्र सार्वजनिक किए जाएं। साथ ही, चयन समिति के सदस्यों की संपत्ति की जांच की जाए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कहीं इस चयन के पीछे “पैसे का खेल” तो नहीं था। उत्तराखंड की जनता अब पारदर्शिता चाहती है—क्योंकि यह सिर्फ खेल का सवाल नहीं, राज्य की गरिमा और युवाओं के अधिकार का मुद्दा है।

सीएयू को चाहिए कि वह जनता के सामने पूरे चयन की पारदर्शी रिपोर्ट रखे—कि किस मानदंड पर खिलाड़ियों का चयन हुआ और कप्तान का फैसला किन तथ्यों के आधार पर किया गया।
उत्तराखंड की जनता किसी की निंदा नहीं चाहती, बस न्याय और समान अवसर चाहती है।
अगर यह राज्य अपने खिलाड़ियों के साथ न्याय नहीं करेगा, तो फिर “उत्तराखंड की टीम” कहलाने का अधिकार भी उसे नहीं रहेगा।

लेखक: अवतार सिंह बिष्ट
(वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स)


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