
रुद्रपुर उत्तराखंड,शैल परिषद ने दी श्रद्धांजलि, कहा– गिर्दा उत्तराखंड की आत्मा थे। शैल सांस्कृतिक समिति (शैल परिषद) ने जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी ‘गिर्दा’ की 15वीं पुण्यतिथि पर गहरी श्रद्धांजलि अर्पित की है। परिषद के पदाधिकारियों ने कहा कि गिर्दा की रचनाएं केवल कविता या गीत नहीं थीं, बल्कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आत्मा थीं, जिन्होंने हजारों युवाओं को संघर्ष की राह दिखाई।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


शैल परिषद अध्यक्ष गोपाल सिंह पटवाल ने कहा कि गिर्दा ने उत्तराखंड के आंदोलन को केवल स्वर ही नहीं दिया, बल्कि उसे जनचेतना से जोड़ने का काम किया। “उनके गीत आज भी आंदोलनकारियों की ताकत बने हुए हैं। गिर्दा का जीवन हमें सिखाता है कि शब्दों की शक्ति किसी भी बंदूक से बड़ी होती है।”
शैल सांस्कृतिक समिति महासचिव एडवोकेट दिवाकर पांडे ने कहा कि गिर्दा ने सत्ता और समाज की हर कुरीति पर चोट की। “उन्होंने भ्रष्टाचार, पलायन और बेरोजगारी जैसे सवालों को अपने गीतों के जरिए उठाया। आज जब उत्तराखंड उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है, गिर्दा की रचनाएं पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं।”
शैल सांस्कृतिक समिति,पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अमिता उप्रेती ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि गिर्दा ने साहित्य और जनांदोलन को मिलाकर जनसेवा का नया आदर्श प्रस्तुत किया। “गिर्दा केवल कवि नहीं थे, बल्कि समाज के डॉक्टर थे, जिन्होंने शब्दों से बीमारियों पर प्रहार किया। आज की पीढ़ी को चाहिए कि वे गिर्दा के आदर्शों को अपनाकर उत्तराखंड को उनकी दृष्टि के अनुरूप बनाएं।”
शैल परिषद के पदाधिकारियों आजीवन सदस्यों ने यह भी अपील की कि उत्तराखंड सरकार गिर्दा की रचनाओं को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करे, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने राज्य के आंदोलन और जनकवि की प्रेरणा से जुड़ सके।
उत्तराखंड 22 अगस्त 2010 को जब जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी ‘गिर्दा’ हमें छोड़कर चले गए, तो ऐसा लगा मानो पहाड़ की घाटियों से स्वर की वह गूंज अचानक मौन हो गई हो, जिसने दशकों तक उत्तराखंड के हर आंदोलन, हर जनसंघर्ष और हर उम्मीद को दिशा दी। आज उनकी 15वीं पुण्यतिथि पर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद और Hindustan Global Times उन्हें नमन करता है और उनके जनपक्षीय साहित्य को स्मरण करते हुए आने वाली पीढ़ी को यह संदेश देना चाहता है कि गिर्दा केवल कवि नहीं थे, वे जनचेतना के शिल्पकार थे।
गिर्दा ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को शब्दों की वह ताकत दी, जिससे साधारण ग्रामीण, मजदूर, छात्र और महिलाएं आंदोलन की रीढ़ बन गए। 1977 के वन बचाओ आंदोलन से लेकर 1984 के नशा नहीं, रोजगार दो और 1994 के ऐतिहासिक उत्तराखंड राज्य आंदोलन तक गिर्दा का हर गीत जनांदोलन की मशाल बना। उनके शब्दों ने असहाय को साहस दिया और निराश को संकल्प।
गिर्दा की अमर रचनाएं और जनगीत?गिर्दा का साहित्य केवल कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि संघर्ष की जमीन पर खिले फूल हैं।
उनकी प्रमुख रचनाओं में –
- “हम लड़ लड़ाई लड़ेंगे साथी”
- “ओ जैता एक दिन त यो धरती रै”
- “फूल देई छम्मा देई”
- “चलता हिमालय”
- “म्यर पख्यान”
- “न्याय के सिवा कुछ नहीं”
- “उत्तराखंड कुमाऊं गढ़वाल”
- “मेरी भाभर मेरी तराई”
- “नशा नहीं रोजगार दो”
- “उत्तराखंड बुलेटिन” (पत्रकारीय रचनाएँ)
इन गीतों और कविताओं ने उस दौर में सिर्फ आवाज़ नहीं उठाई, बल्कि हजारों युवाओं को सड़कों पर उतारा। उनका प्रसिद्ध नारा –
“जैता एक दिन त यो धरती रै, जस बै दुनिया हमारु होलो”
आज भी उत्तराखंड के जन-जन में विश्वास जगाता है।
राजनीति और समाज पर तीखा प्रहार?गिर्दा के गीतों की खासियत यह थी कि वे केवल सरकार या सत्ता पर प्रहार नहीं करते थे, बल्कि समाज की कुरीतियों को भी आईना दिखाते थे। उन्होंने सामंती प्रवृत्तियों, जातिवाद और भ्रष्टाचार पर कलम चलाई। गिर्दा जानते थे कि यदि समाज भीतर से कमजोर होगा तो कोई भी आंदोलन टिक नहीं पाएगा।
उत्तराखंड राज्य के बाद गिर्दा की चेतावनी?गिर्दा की दूरदर्शिता का प्रमाण यह है कि उन्होंने 1994 में ही अपनी रचनाओं के माध्यम से चेताया था कि यदि राज्य बनने के बाद भी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याएं जस की तस बनी रहीं तो आंदोलन अधूरा रह जाएगा। दुर्भाग्य से आज 24 साल बाद उनकी चेतावनी सच साबित हो रही है – पलायन जारी है, बेरोजगारी चरम पर है और जनहित की बजाय राजनीतिक स्वार्थ हावी हैं।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश?आज की युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि गिर्दा ने शब्दों को हथियार बनाया, पर उनका लक्ष्य केवल विरोध नहीं बल्कि परिवर्तन था। गिर्दा ने युवाओं से हमेशा कहा कि –
“संघर्ष का मतलब केवल सड़कों पर आना नहीं है, बल्कि अपने भीतर चेतना को जगाना और समाज को बदलना है।”
आज जरूरत है कि हमारे युवा गिर्दा की रचनाओं को पढ़ें, उन्हें गुनगुनाएं और अपने जीवन में उतारें।
गिर्दा अमर रहेंगे?गिर्दा की पुण्यतिथि केवल स्मरण का दिन नहीं है, बल्कि आत्ममंथन का अवसर है। उन्होंने जिस उत्तराखंड का सपना देखा था – समानता, न्याय और स्वाभिमान वाला उत्तराखंड – वह सपना अधूरा है। इसे पूरा करने की जिम्मेदारी हमारी है।
गिर्दा भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत, उनकी चेतना और उनकी आत्मा हमेशा उत्तराखंड के आकाश में गूंजती रहेगी।
शैल सांस्कृतिक समिति, उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद एवं Hindustan Global Times की ओर से जनकवि गिर्दा को शत्-शत् नमन।

