संपादकीय ,अतिथि शिक्षक : शिक्षण की रीढ़ या सरकार की अनदेखी का शिकार?”

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उत्तराखंड के विद्यालयों में कार्यरत माध्यमिक अतिथि शिक्षक आज जिस पीड़ा और उपेक्षा का शिकार हैं, वह न केवल शिक्षा व्यवस्था की विफलता का दस्तावेज है, बल्कि राज्य सरकार की प्राथमिकताओं पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

जनवरी, मई और जून माह का वेतन काटा जाना, जुलाई का वेतन अब तक न मिल पाना और ऊपर से चुनाव ड्यूटी का बोझ – यह किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। प्रदेश अध्यक्ष राजेश धामी और महामंत्री राजपाल रावत का यह आरोप बिल्कुल जायज है कि अतिथि शिक्षकों को केवल शैक्षिक कार्यों के लिए नियुक्त किया गया था, लेकिन हकीकत यह है कि उनसे गैर-शैक्षणिक कामों की झड़ी लगाई जा रही है।

यह विडंबना ही है कि एक ओर सरकार गुणवत्ता शिक्षा की बातें करती है, वहीं दूसरी ओर इन शिक्षकों का वेतन काटकर या महीनों लटकाकर उन्हें मानसिक और आर्थिक संकट में धकेल देती है। जिन विद्यालयों में नियमित शिक्षक नहीं पहुंचते, वहां अतिथि शिक्षक ही शिक्षा का एकमात्र सहारा हैं। फिर भी, उन्हें कोई नौकरी की सुरक्षा नहीं, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं, और वेतन भी समय पर नहीं।

प्रदेश के दुर्गम और अति दुर्गम इलाकों में तैनात अतिथि शिक्षकों की दशा और भी दयनीय है। प्रदीप सिंह असवाल का यह कहना बिल्कुल सटीक है कि विद्यालयों में अवकाश भले हो, लेकिन उन शिक्षकों का खर्च तो जारी रहता है – चाहे वह कमरे का किराया हो, बिजली का बिल, या परिवहन का खर्च। ऐसे में वेतन काटना या देर करना सरासर अन्याय है।

आज जब सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने, डिजिटल शिक्षा के प्रसार और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिन लोगों के कंधों पर यह पूरा बोझ है, उन अतिथि शिक्षकों की सुध कौन लेगा?

सरकार के लिए संदेश

  • सरकार को यह समझना होगा कि अतिथि शिक्षक कोई सस्ता विकल्प नहीं हैं, बल्कि वे राज्य के शिक्षा तंत्र की रीढ़ हैं।
  • यदि सरकार वास्तव में “गुणवत्ता शिक्षा” चाहती है, तो सबसे पहले अतिथि शिक्षकों को स्थायित्व, सामाजिक सुरक्षा, और समय पर वेतन देना होगा।
  • गैर-शैक्षणिक कार्यों में अतिथि शिक्षकों को झोंकना बंद होना चाहिए। यदि चुनाव ड्यूटी जैसे कार्य जरूरी हैं, तो उसके लिए अलग से मानदेय या सुविधा दी जाए।
  • सरकार बार-बार “सहानुभूति” दिखाने की बात कहती है। पर अब वक्त सिर्फ सहानुभूति नहीं, समाधान का है।

जनवरी, मई, जून का वेतन काटना, जुलाई का वेतन रोकना, और चुनाव ड्यूटी में लगा देना – यह सब शिक्षा व्यवस्था के प्रति असंवेदनशील रवैये को उजागर करता है। राज्य सरकार को तत्काल इस संकट का समाधान निकालना चाहिए, क्योंकि शिक्षा व्यवस्था उन्हीं के दम पर खड़ी है, जिन्हें आज ‘अतिथि’ नाम देकर सरकार स्थाई कर्मियों जैसा दर्जा देने से कतराती रही है।

आज अतिथि शिक्षक सरकार से बस इतना ही कह रहे हैं –

हम पर भरोसा रखिए, हमें भी भरोसे के लायक बनाइए।”

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

मूल विषय : अतिथि शिक्षकों की वेतन और भविष्य की अनिश्चितता।

  • समस्या : वेतन कटौती, विलंब और गैर-शैक्षणिक कार्यों का दबाव।
  • प्रभाव : मानसिक और आर्थिक संकट, शिक्षा की गुणवत्ता पर खतरा।
  • लेख का उद्देश्य : सरकार को कटघरे में खड़ा करना, ताकि अतिथि शिक्षकों को न्याय मिले।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण : अतिथि शिक्षक शिक्षा की रीढ़ हैं। इन्हें स्थायित्व, सामाजिक सुरक्षा और समय पर वेतन दिया जाए।

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