संपादकीय लेख:अलास्का बैठक: समझौते के बिना भी गहरे संकेत

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अलास्का के एंकरेज में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ऐतिहासिक मुलाकात ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को नई दिशा दी है। यह मुलाकात भले ही किसी ठोस समझौते पर खत्म नहीं हुई, लेकिन इसके राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक मायने बहुत बड़े हैं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)सबसे पहले, यह तथ्य उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहने के बीच पुतिन का अमेरिका आना अपने आप में एक बड़ी घटना है। पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग करने का हर संभव प्रयास किया था, लेकिन पुतिन ने रेड कार्पेट स्वागत और ट्रंप की निजी कार में सफर कर यह संदेश दिया कि रूस अब भी वैश्विक शक्ति संतुलन में अहम भूमिका निभाता है। इस लिहाज से देखें तो पुतिन ने बिना कोई रियायत दिए कूटनीतिक बढ़त हासिल की।

सबसे पहले, यह तथ्य उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहने के बीच पुतिन का अमेरिका आना अपने आप में एक बड़ी घटना है। पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग करने का हर संभव प्रयास किया था, लेकिन पुतिन ने रेड कार्पेट स्वागत और ट्रंप की निजी कार में सफर कर यह संदेश दिया कि रूस अब भी वैश्विक शक्ति संतुलन में अहम भूमिका निभाता है। इस लिहाज से देखें तो पुतिन ने बिना कोई रियायत दिए कूटनीतिक बढ़त हासिल की।

दूसरी ओर, डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस मुलाकात से अपनी राजनीतिक छवि को चमकाने का प्रयास किया। उन्होंने यह जताने की कोशिश की कि वह पुतिन को वार्ता की मेज पर लाने में सक्षम हैं—जो यूरोप और यूक्रेन के नेता अब तक नहीं कर पाए। ट्रंप के लिए यह मुलाकात घरेलू राजनीति में भी एक “स्ट्रॉन्ग लीडर” की छवि बनाने का अवसर है, खासकर तब जबकि अमेरिका चुनावी माहौल में प्रवेश कर रहा है।

हालांकि, इस बैठक का सबसे बड़ा नुकसान यूक्रेन को झेलना पड़ सकता है। पुतिन और ट्रंप की वार्ता में वोलोदिमीर जेलेंस्की की गैरमौजूदगी यूक्रेन के लिए चिंता का विषय है। यह संकेत देता है कि उसके भविष्य पर बातचीत अब बड़े राष्ट्राध्यक्ष तय करेंगे, जबकि वह खुद हाशिये पर खड़ा है। यह स्थिति यूरोप को भी असहज कर सकती है, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध से सबसे अधिक प्रभावित वही है।

भारत के लिए यह मुलाकात और भी संवेदनशील है। ट्रंप प्रशासन ने पहले ही रूस से तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया है, जो 27 अगस्त से लागू होगा। यदि यह शुल्क वास्तव में 50 प्रतिशत तक पहुंचता है, तो भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा। भारत को ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक कूटनीति के बीच संतुलन साधने की चुनौती और भी कठिन हो जाएगी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे अनुचित और अविवेकपूर्ण करार दिया है, लेकिन वास्तविक सवाल यह है कि क्या भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका को नाराज करने का जोखिम उठा पाएगा?

स्पष्ट है कि अलास्का शिखर वार्ता भले ही “बेनतीजा” रही हो, परंतु इसके गहरे निहितार्थ हैं। पुतिन ने अपनी उपस्थिति से कूटनीतिक अस्तित्व का दावा मजबूत किया, ट्रंप ने राजनीतिक लाभ हासिल किया, और यूक्रेन तथा भारत नई अनिश्चितताओं में फंस गए। दुनिया को अब देखना होगा कि मॉस्को में प्रस्तावित अगली बैठक इस “राजनीतिक शतरंज” को किस दिशा में ले जाती है।

इस बैठक ने दिखा दिया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में समझौते से अधिक प्रतीकात्मकता मायने रखती है। रेड कार्पेट, साझा मुस्कानें और “बीस्ट” कार की सवारी शायद ही युद्ध रोक पाएं, लेकिन यह जरूर तय करते हैं कि शक्ति संतुलन का खेल अब किस ओर बढ़ेगा।



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