
उत्तराखंड के ज्वलंत मुद्दे और विधानसभा का दुर्भाग्य?उत्तराखंड आज भी अपने मूल प्रश्नों से जूझ रहा है। जल–जंगल–जमीन की सुरक्षा, गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग, बेरोजगारी और पलायन की विकराल समस्या, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का बदहाल ढांचा, किसानों को उचित समर्थन मूल्य न मिलना, पर्वतीय क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण—ये सभी वे मुद्दे हैं जिन्हें किसी भी संवेदनशील विपक्ष को विधानसभा के मानसून सत्र में मजबूती से उठाना चाहिए था।

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस ने इन सवालों को जनता की आवाज़ बनाने के बजाय विधानसभा भवन में रात्रि विश्राम को ही प्रदर्शन का साधन बना लिया। यह प्रतीकात्मक कदम जनता की पीड़ा से जुड़ने के बजाय केवल राजनीतिक नौटंकी जैसा लगा। जिन मुद्दों पर बहस और ठोस संकल्प प्रस्ताव आ सकते थे, वे मुद्दे एक बार फिर हाशिए पर चले गए। जनता उम्मीद करती है कि विपक्ष सत्ता को कठघरे में खड़ा करे, लेकिन कांग्रेस का यह तरीका राज्य की परिकल्पना और आंदोलनकारियों की शहादत का अपमान ही प्रतीत होता है।
गैरसैंण विधानसभा में जो दृश्य इस बार सामने आया, वह पूरे प्रदेश के लिए एक विचित्र और दुखद हास्य का विषय बनकर उभरा। पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस के विधायक, उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी और निर्दलीय विधायक उमेश कुमार विधानसभा भवन के भीतर ही डेरा डालकर रात बिताने लगे। मुख्यमंत्री के फोन पर आश्वासन मिलने के बाद भी वे नहीं माने और अपनी ज़िद पर अड़े रहे।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
विडंबना देखिए – जनता ने जिन मुद्दों के लिए इन्हें सदन में भेजा, उनमें से एक भी मुद्दा उनके धरने या रात्रि विश्राम का हिस्सा नहीं बना। जल-जंगल-जमीन, स्थाई राजधानी गैरसैंण, स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोज़गारी – ये वे प्रश्न थे जिनके लिए राज्य आंदोलनकारियों ने संघर्ष किया, जिनके लिए 42 माताओं ने अपने लाल खो दिए। लेकिन कांग्रेस और विपक्ष ने जो प्रदर्शन किया, उसका उत्तराखंड की परिकल्पना से कोई लेना-देना नहीं था।
भुवन कापड़ी जब मीडिया के सामने आए तो सबसे पहले उन्होंने यह सफाई दी कि “विधानसभा पूरी तरह सुरक्षित है, हमने कोई तोड़फोड़ नहीं की।” यह सफाई ही कांग्रेस की दिशा और सोच का आईना है। अगर आपके पास जनता का एजेंडा होता, अगर आप राज्य की अस्मिता और जनता की समस्याओं पर अडिग होते, तो आज आपकी जुबान से यह निकलता कि “हम गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाएंगे, हम बेरोज़गारी मिटाने का रोडमैप देंगे, हम पलायन रोकने का संघर्ष करेंगे।” लेकिन कांग्रेस अपने बचाव में केवल “सुरक्षा और तोड़फोड़ न करने” तक सीमित रही।
कांग्रेस के विधायकों ने जोरदार हंगामा किया
नैनीताल में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के साथ धक्का-मुक्की हुई थी. जिसको लेकर कानून व्यवस्था के मुद्दे पर विपक्ष चर्चा करना चाहता था, लेकिन सरकार ने सदन को पहले से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चलाना शुरू कर दिया. इस पर सत्र की शुरुआत होते ही कांग्रेस के विधायकों ने जोरदार हंगामा शुरू कर दिया. हंगामे के दौरान माइक उखाड़ दिए गए और टेबल को भी पलट दिया गया. जिसके चलते विधानसभा की कार्यवाही को कई बार स्थगित करना पड़ा.
विपक्षी की सरकार के खिलाफ एकजुटता की कोशिश
वहीं सदन में चल रहे इस धरने में कांग्रेस के 19 विधायकों के साथ निर्दलीय विधायक उमेश कुमार भी शामिल रहे. जिन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो भी पोस्ट करते हुए यह जाहिर करने की कोशिश कि है कि किस तरह सदन के भीतर विपक्षी दल सरकार के खिलाफ एकजुट हैं.
उत्तराखंड के गैरसैंण में विधानसभा के मानसून सत्र का दूसरा दिन आज शुरु हुआ. मुख्यमंत्री धामी सुबह-सुबह जनता दर्शन के लिए निकले. उन्होंने सुरक्षा कर्मियों और आम जनता से मिलकर विकास कार्यों का फीडबैक लिया.
जनता ने आपको अपनी सफाई देने के लिए नहीं चुना। जनता ने आपको उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए चुना है। यह राज्य किसी पार्टी के आंतरिक विवादों, पंचायत चुनावों, हाईकोर्ट के मामलों या वोट चोरी जैसे निजी मुद्दों से नहीं बना है। यह राज्य 42 शहादतों की नींव पर खड़ा है।
उत्तराखंड राज्य भीख में मांगा गया राज्य नहीं है। यह राज्य खून-पसीने से सींचा गया है। महिलाओं ने सड़कों पर लाठियां खाईं, नौजवानों ने गोलियां खाईं, माताओं ने अपने बेटों को खोया। उस संघर्ष का मज़ाक तब बनता है जब विधानसभा जैसी पवित्र जगह को कांग्रेस और विपक्ष अपनी व्यक्तिगत राजनीति का मंच बना देते हैं।


