
उत्तराखण्ड के सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) द्वारा 22 जुलाई 2025 को की गई कार्रवाई ने एक बार फिर यह जाहिर कर दिया है कि राज्य की संस्थाएं अभी भी भ्रष्टाचार की दलदल में फंसी हुई हैं। हल्द्वानी स्थित विजिलेंस सेक्टर द्वारा प्रभारी सचिव पूरन सिंह सैनी एवं वरिष्ठ सहायक कदीर अहमद को काशीपुर कृषि उत्पादन मंडी समिति में रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया जाना न केवल एक शर्मनाक घटना है, बल्कि यह सरकारी व्यवस्थाओं पर गहराते अविश्वास की पुष्टि भी है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं और गिरफ्तारी का अर्थ?दोनों अधिकारियों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है, जो रिश्वत लेने के जुर्म को कठोरतम सजा योग्य बनाती है। गिरफ्तारी के 48 घंटे से अधिक जेल में रहने के बाद 25 जुलाई 2025 को इन दोनों अधिकारियों को उत्तरांचल सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील नियमावली के अंतर्गत तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया।
यह सस्पेंशन आदेश उत्तराखण्ड शासन की ओर से एक ‘कानूनी’ और ‘प्रशासनिक’ प्रतिक्रिया जरूर है, परंतु जनता की नज़र में यह सिर्फ एक ‘प्रोटोकॉल पालन’ भर लगता है। असली सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई भविष्य में ऐसे मामलों पर रोक लगाने में प्रभावी सिद्ध होगी?
काशीपुर मंडी समिति—लंबे समय से भ्रष्टाचार का अड्डा?काशीपुर की मंडी समिति का नाम पहले भी कई बार विवादों में रहा है। सब्ज़ी, फल, धान और गेहूं व्यापार में व्यापारी अक्सर शिकायत करते रहे हैं कि यहां बिना घूस के कोई पर्ची नहीं कटती। आढ़ती और व्यापारी दोनों यह कहते नहीं थकते कि मंडी समिति में नियमों से अधिक “रकम” का बोलबाला है। ऐसे में पूरन सिंह सैनी और कदीर अहमद की गिरफ्तारी पूरे एक भ्रष्ट तंत्र के केवल एक छोटे से हिस्से की झलक मात्र है।
निलंबन—परंपरा या सुधार का संकेत?यह पहली बार नहीं है जब कोई अधिकारी रिश्वत लेते पकड़ा गया हो और तुरंत निलंबन का आदेश जारी कर दिया गया हो। सवाल है कि क्या यह सस्पेंशन पर्याप्त दंड है? क्या ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति की जांच, आय से अधिक संपत्ति पर कार्यवाही, तथा उन्हें सेवा से बर्खास्त करने की प्रक्रिया भी तेज़ी से आगे बढ़ेगी?या फिर यह भी एक “मामला ठंडा करने” की रस्मअदायगी बन कर रह जाएगा, जैसा उत्तराखण्ड के कई घोटालों में देखने को मिलता रहा है?
सरकार की भूमिका और जनता की अपेक्षाएं?राज्य सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि क्या सरकार इस प्रकरण को ‘उदाहरण’ बना पाती है या फिर यह भी अतीत की तरह कागज़ी कार्रवाई तक सीमित रह जाएगा।
जनता को न केवल गिरफ्तारी की खबर चाहिए, बल्कि उन अफसरों की गिरफ्तारी के बाद उनकी अब तक की संपत्ति, उनकी नियुक्तियों की पृष्ठभूमि, और राजनैतिक संरक्षण की भी जांच चाहिए।
सवाल उठाने चाहिए—सिस्टम पर नहीं, सिस्टम में बैठे लोगों पर?भ्रष्टाचार की जड़ें किसी सिस्टम में नहीं होतीं, बल्कि उस सिस्टम में काम करने वाले व्यक्तियों की नीयत में होती हैं। काशीपुर मंडी समिति का यह मामला बताता है कि नीयत और नीति के बीच का फर्क खत्म हो गया है।
सख़्त सज़ा नहीं, तो डर नहीं’?यदि भ्रष्ट अधिकारी सिर्फ निलंबन तक सीमित रहते हैं, और कुछ माह बाद फिर बहाल होकर उसी कुर्सी पर बैठ जाते हैं, तो यह ‘कुर्सी की पुनरावृत्ति’ और ‘भ्रष्टाचार की वापसी’ ही कहलाएगी।इसलिए जरूरत है—त्वरित चार्जशीट,विशेष अदालतों में सुनवाई,संपत्ति जब्ती,और सरकारी सेवा से स्थायी निष्कासन।यदि उत्तराखण्ड सचमुच “भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन” की ओर बढ़ रहा है, तो इस प्रकरण को एक उदाहरण बनाना होगा—न केवल कार्रवाई में, बल्कि परिणाम में भी।
(नोट:✍️ अवतार सिंह बिष्ट,
संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी! यह लेख उत्तराखण्ड की कानून व्यवस्था, प्रशासनिक पारदर्शिता और जन अपेक्षाओं पर आधारित विश्लेषण है। इसमें उठाए गए सवाल, एक नागरिक और पत्रकार के नैतिक कर्तव्यों के अंतर्गत हैं।)

