संपादकीय लेख बलात्कारी नहीं, आतंकवादी हैं ये हैवान! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम खुला पत्र लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स स्थान: रुद्रपुर, उत्तराखंड

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रुद्रपुर, उत्तराखंड जब एक तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार होता है, तो सवाल केवल कानून का नहीं होता, सवाल उस सभ्यता का होता है जो इसे ‘सामान्य अपराध’ मानकर चुप रह जाती है।”

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

आज भारत की बेटियाँ रो रही हैं। कोई खेल के मैदान से उठाकर ले जाई जाती है, कोई स्कूल के रास्ते में गायब होती है, और कोई अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है। यह घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं, बल्कि एक कड़वी हकीकत बन चुकी हैं। हर दिन कोई न कोई मासूम, कोई बहन, कोई मां बलात्कार का शिकार बन रही है।

यह सब अब मात्र अपराध नहीं, एक संगठित मानसिक युद्ध है

एक ऐसा युद्ध जो समाज की सबसे मासूम, सबसे कोमल आत्माओं पर चलाया जा रहा है – हमारी बेटियों पर

उत्तराखंड – देवभूमि की पीड़ा

उत्तराखंड, जिसे हम देवभूमि कहते हैं, वह अब अपराधियों की पनाहगाह बनती जा रही है। ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, हल्द्वानी, देहरादून – हर जिले से बलात्कार की खबरें आ रही हैं। 14 साल की बच्ची से गैंगरेप, 6 साल की बच्ची की हत्या के बाद शव नदी में फेंक दिया गया, 16 साल की छात्रा को प्रेमजाल में फंसा कर धर्मांतरण और दुष्कर्म… यह घटनाएं अब समाचार नहीं, सामूहिक पीड़ा का दस्तावेज बन चुकी हैं

बलात्कारियों को आतंकवादी क्यों माना जाए?आतंकवादी देश की शांति, सुरक्षा और नागरिकों के मनोबल को तोड़ता है।बलात्कारी भी यही करता है – वह एक लड़की के भविष्य को तोड़ता है, एक परिवार को मानसिक मौत देता है, और पूरे समाज में भय का माहौल पैदा करता है।क्या एक तीन साल की बच्ची से बलात्कार करना “सामान्य अपराध” है?क्या एक महिला को लव जिहाद के नाम पर बहला-फुसलाकर उसके शरीर और आत्मा के साथ खिलवाड़ करना सिर्फ एक “गलती” है?नहीं साहब! यह अपराध नहीं, आतंकी मानसिकता का सबसे वीभत्स रूप हैआंकड़े नहीं, आँसू बोलते हैं
हर साल देश में 30,000 से ज्यादा रेप केस दर्ज होते हैं, लेकिन असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
कई केस समाजिक बदनामी, पुलिस की असंवेदनशीलता और कानून के डर से रिपोर्ट ही नहीं हो पाते।
बेटियाँ चुप रहती हैं, मां-बाप घुटते हैं और समाज अपराधी को मौन समर्थन देता है।भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार से हमारी मांग है –

  1. बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत दर्ज किया जाए।
  2. नाबालिग बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला घोषित किया जाए।
  3. बलात्कारियों को त्वरित न्याय के तहत आतंकी की श्रेणी में रखकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड दिया जाए।
  4. ऐसे मामलों में धर्मांतरण, फर्जी पहचान, गुप्त नेटवर्क आदि की साजिश उजागर करने के लिए NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) जैसी केंद्रीय एजेंसी से जांच कराई जाए।

प्रधानमंत्री मोदी जी, यह समय है ‘बेटी बचाओ’ को ‘बेटी को आतंक से बचाओ’ में बदलने का।

आपसे देश की हर बेटी उम्मीद करती है कि आप अब इस मानसिक आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ेंगे।

मुख्यमंत्री धामी जी, उत्तराखंड में जिस प्रकार से लड़कियों को टारगेट किया जा रहा है, यह आपकी चुप्पी नहीं, कड़ी कार्रवाई मांगता है।

आपके शासन में देवभूमि में दरिंदगी बढ़ रही है। इसे रोकिए, नहीं तो यह पवित्र भूमि नरक में बदल जाएगी।


हम क्यों चुप रहें?

क्या हम तब जागेंगे जब हमारी अपनी बेटी…?

क्या हम तब बोलेंगे जब कोई अपना टूट जाएगा…?

बलात्कारी को अपराधी नहीं, आतंकवादी कहो।

क्योंकि जो बेटियों की आत्मा को मारते हैं, वे इस राष्ट्र की आत्मा के भी हत्यारे हैं।

यह केवल एक संपादकीय नहीं, एकचेतावनी है।यदि भारत सरकार ने अब भी इस विषय को हल्के में लिया, तो सामाजिक पतन और मानवीय त्रासदी की गहराइयां और बढ़ेंगी।अब चुप रहना अपराध है। और अपराधियों को आतंकवादी न मानना राष्ट्रीय अपराध है।



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