
उत्तराखंड में शहरीकरण और आधुनिकता की अंधी दौड़ ने सड़कों पर शोरगुल को इस कदर बढ़ा दिया है कि अब आमजन का जीना दूभर होता जा रहा है। खासकर युवाओं में अपने वाहनों को अनावश्यक रूप से “लाउड” बनाने की होड़ ने ध्वनि प्रदूषण को विकराल रूप दे दिया है। कहीं हार्न की तेज आवाज, कहीं साइलेंसरों में बदलाव, तो कहीं गाड़ियों से पटाखे और गोलियों जैसी आवाजें—यह सब हमारी सड़कों को असहनीय कोलाहल में बदल रहा है।
अब तक परिवहन विभाग के पास ऐसे वाहनों पर लगाम कसने के लिए कोई ठोस तकनीकी साधन नहीं थे। कर्मी अनुमान के आधार पर ही चालान काटते थे, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते थे और कार्रवाई भी कमजोर पड़ती थी। मगर अब विभाग ने 47 डेसीबल मीटर खरीदे हैं, जिससे वाहन की ध्वनि की तीव्रता सटीकता से मापी जा सकेगी। यह कदम निश्चित ही सराहनीय है और इससे प्रवर्तन दलों की कार्यक्षमता और विश्वसनीयता दोनों बढ़ेंगी।
वर्तमान नियमावली के अनुसार दोपहिया और तिपहिया वाहनों के लिए 80 डेसीबल, कारों के लिए 82 डेसीबल, 4 मीट्रिक टन तक के वाहनों के लिए 85 डेसीबल और इससे भारी वाहनों के लिए 91 डेसीबल ध्वनि सीमा तय है। जो वाहन इन मानकों का उल्लंघन करते पाए जाएंगे, उन पर दस हजार रुपये तक जुर्माना, तीन माह तक का लाइसेंस निलंबन और यहां तक कि तीन माह तक का कारावास भी हो सकता है। यह दंड कठोर जरूर हैं, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए पूरी तरह उचित भी हैं।


ध्वनि प्रदूषण का सीधा असर बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों पर पड़ता है। अनावश्यक शोर सिर्फ कानों के लिए नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। नींद में खलल, चिड़चिड़ापन, रक्तचाप बढ़ना और यहां तक कि दिल के रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए ध्वनि प्रदूषण को हल्के में लेना आत्मघाती होगा।
यह सही है कि तकनीक के प्रयोग से प्रवर्तन में पारदर्शिता और शक्ति आएगी, लेकिन केवल जुर्माना ही समाधान नहीं है। समाज को भी इस विषय पर संवेदनशील होना पड़ेगा। युवाओं को समझना चाहिए कि गाड़ियों में तेज हार्न या साइलेंसर लगाना सिर्फ फैशन या रुतबा नहीं, बल्कि दूसरों के लिए परेशानी और खुद के लिए कानूनी मुसीबत है। इस पर विद्यालयों और महाविद्यालयों में भी जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि इस समस्या की जड़ पर चोट की जा सके।
परिवहन विभाग का यह कदम निश्चित रूप से एक सकारात्मक शुरुआत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण पर सख्ती से कार्रवाई होगी और उत्तराखंड की सड़कों पर शांति लौटेगी।

