
उत्तराखंड की राजनीति में अचानक सियासी तापमान बढ़ गया है। इसका कारण कोई चुनावी बयान या विरोधी दल का आक्रामक हमला नहीं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की एक फेसबुक पोस्ट है, जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रशंसा में लिखी गई। शाह ने निवेश महाकुंभ की सफलता का श्रेय जिस खुले दिल से मुख्यमंत्री को दिया, उसने एक बार फिर साफ कर दिया कि धामी अब न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र हैं, बल्कि शाह की ‘गुड बुक्स’ में भी पक्की जगह बना चुके हैं।
शाह की पोस्ट ने दिया 2027 के संकेत
यह केवल एक सामान्य प्रशंसा नहीं थी। यह पोस्ट उस बड़े सियासी विमर्श को विराम देती दिख रही है जिसमें बार-बार मुख्यमंत्री परिवर्तन की अटकलें लगाई जाती रही हैं। जब हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ने 19 जुलाई को अपने विश्लेषण में यह घोषणा की थी कि “2027 का विधानसभा चुनाव पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा”, तब शायद बहुत से सियासी पंडितों को यह पूर्वानुमान अतिशयोक्तिपूर्ण लगा हो। लेकिन अब केंद्रीय गृह मंत्री की इस पोस्ट ने इस कथन पर मुहर लगा दी है।
शाह ने लिखा—“मैदानी राज्य की तुलना में पहाड़ी राज्य में निवेश लाना एक बड़ी चुनौती होती है, लेकिन उत्तराखंड में एक लाख करोड़ का निवेश आना मुख्यमंत्री धामी की दूरदर्शिता और कार्यकुशलता का प्रमाण है।” यह बयान केवल एक उपलब्धि की सराहना नहीं, बल्कि एक दीर्घकालीन भरोसे का संकेत है। यह भरोसा केवल कार्यशैली पर नहीं, बल्कि उस विचारधारा पर भी है जिसे पुष्कर सिंह धामी निष्ठापूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं—हिंदुत्व और विकास का संतुलन।
गढ़वाल-कुमाऊं का समीकरण और धामी की स्वीकार्यता
उत्तराखंड की राजनीति हमेशा से गढ़वाल और कुमाऊं के द्वैत पर आधारित रही है। मुख्यमंत्री धामी जहां कुमाऊं क्षेत्र में व्यापक समर्थन प्राप्त करते हैं, वहीं गढ़वाल में उनके विरोध की आंशिक लहर अब भी कायम है। लेकिन अमित शाह की इस पोस्ट ने गढ़वाल के भीतर धामी के विरोध की धार को भी कुंद करने का काम किया है। भाजपा कार्यकर्ताओं में यह संदेश गया है कि अब नेतृत्व पर सवाल उठाने की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
गैरसैंण मुद्दा: कांग्रेस का पुराना राग
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का हालिया बयान जिसमें उन्होंने गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की बात दोहराई है, स्वागत योग्य है, लेकिन इसकी समयबद्धता पर सवाल जरूर उठते हैं। जब सत्ता उनके पास थी तब गैरसैंण की स्थायीत्व की पहल क्यों नहीं की गई? क्या यह फिर से वही वादों की फसल काटने की कोशिश है जो चुनावी मौसम में ही लहलहाती है?
जनता अब इन लुभावने वादों से परे देख रही है। वह यह पूछ रही है कि राज्य के निर्माण के 25 वर्षों बाद भी राजधानी स्थायी क्यों नहीं हुई? क्यों हर सरकार गैरसैंण को केवल भावनात्मक मुद्दा बनाकर इस्तेमाल करती रही है?
पंचायत चुनाव में भी धामी की छाया
राज्य में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सक्रियता प्रत्यक्ष भले न हो, लेकिन उनकी छाया स्पष्ट रूप से नजर आ रही है। भाजपा के स्थानीय जनप्रतिनिधि पूरी ताकत से मैदान में हैं और स्पष्ट संदेश है कि नेतृत्व की दिशा धामी ही तय करेंगे।
हालांकि, पंचायत चुनाव के नतीजे स्थानीय समीकरणों पर निर्भर होते हैं और इसमें सीएम फैक्टर सीमित असर डालता है, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री धामी की स्थिति भाजपा में निर्विवाद और स्थिर दिख रही है। उन्होंने पार्टी में ऐसी जगह बना ली है जहां उनके खिलाफ चलने वाले भीतरघातियों को अब खुद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से टोकन जवाब मिल रहा है।
विकास और भ्रष्टाचार: दो छोरों पर खड़ी सरकार
यह मानना होगा कि धामी सरकार ने निवेश और हिंदुत्व दोनों मोर्चों पर अपेक्षित प्रदर्शन किया है। लेकिन यह भी सच है कि राज्य में भ्रष्टाचार की शिकायतें लगातार उठती रही हैं। विपक्षी दल और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स अकसर आरोप लगाते रहे हैं कि पूर्ववर्ती सरकारों की ही तरह वर्तमान शासन में भी पारदर्शिता का संकट बना हुआ है।
हालांकि मुख्यमंत्री धामी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए हर मंच पर पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकारी विभागों में फाइलों की रफ्तार आज भी धीमी है, और जमीनी स्तर पर आम जनता की शिकायतें जस की तस बनी हुई हैं।
भाजपा के अंदरूनी असंतोष को भी मिला जवाब
अमित शाह की पोस्ट न केवल जनता के लिए एक संकेत है, बल्कि भाजपा के अंदर कुछ वर्गों में जो मुख्यमंत्री परिवर्तन की उम्मीद पाले बैठे थे, उनके लिए एक स्पष्ट संदेश है:


“अब कोई परिवर्तन नहीं होगा, 2027 तक धामी ही मुख्यमंत्री रहेंगे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा।”
भाजपा के भीतर ऐसे भी चेहरे हैं जो राज्य नेतृत्व को लेकर कभी मुखर और कभी पर्दे के पीछे से सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन अब इस पोस्ट के बाद यह चर्चा लगभग समाप्त हो चुकी है।
धामी—एक सधे हुए रणनीतिक सेनापति
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस सधी हुई रणनीति से राज्य को हिंदुत्व, निवेश और राजनीतिक स्थिरता के एक त्रिकोण पर रखा है, वह उन्हें उत्तराखंड के सबसे संगठित और दीर्घकालिक मुख्यमंत्री के रूप में उभारता है। उनके भीतर विचारधारा की स्पष्टता है, नेतृत्व की दृढ़ता है और संवाद की विनम्रता भी।
अमित शाह की पोस्ट केवल एक तारीफ नहीं, बल्कि एक सियासी नियुक्ति जैसी है—एक औपचारिक घोषणा कि धामी ही भाजपा के वर्तमान और भविष्य हैं। अब जिम्मेदारी खुद धामी पर है कि वह इस भरोसे को कैसे निभाते हैं।
और यदि वह इस भरोसे को निभा ले गए, तो उत्तराखंड की राजनीति में एक नया युग तय होगा—जहां मुख्यमंत्री बार-बार नहीं बदलते, बल्कि स्थिर नेतृत्व के साथ राज्य की दशा-दिशा तय होती है।
संपादकीय प्रकोष्ठ अवतार सिंह बिष्ट
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
22 जुलाई 2025
रुद्रपुर, उत्तराखंड

