संपादकीय लेख: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आर्थिक चिंतन बैठक – आत्मनिर्भर भारत की ओर एक और कदम

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रुद्रपुर,दिल्ली में आयोजित होने जा रही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की दो दिवसीय बैठक केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भारत की आर्थिक दिशा और स्वदेशी नीति को मजबूती देने का ठोस प्रयास है। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, संयुक्त महासचिवों समेत RSS के अनेक शीर्ष पदाधिकारी और सहयोगी संगठन शामिल होंगे।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

आर्थिक मुद्दों पर गंभीर विमर्श?आज जब अमेरिका जैसे देशों की संरक्षणवादी नीतियां भारत के उद्योग-धंधों और कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल असर डाल रही हैं, तब RSS की यह बैठक बेहद सार्थक हो जाती है। अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत के कई उत्पाद वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकते हैं। लेकिन संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट है—विदेशी दबाव के आगे झुकना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की राह पर चलना।

RSS से जुड़े संगठन जैसे स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और लघु उद्योग भारती इस विमर्श में भाग लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों की जमीनी समस्याओं को सामने रखेंगे। यह संवाद सरकार और समाज, दोनों को नीति निर्धारण में नए दृष्टिकोण देने वाला साबित हो सकता है।

अमेरिका को स्पष्ट संदेश?RSS पहले ही अमेरिकी टैरिफ पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे चुका है। संघ का कहना है कि अमेरिका लोकतंत्र का मुखौटा लगाकर वास्तव में वैश्विक आर्थिक तानाशाही और आतंकवाद को बढ़ावा देता है। यह प्रतिक्रिया केवल आलोचना नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है कि भारत को विदेशी निर्भरता छोड़कर अपने संसाधनों और उद्योगों पर भरोसा करना होगा।

भारत की राह – स्वदेशी और आत्मनिर्भरता?संघ की सोच हमेशा से स्वदेशी पर आधारित रही है। चाहे कृषि हो, लघु उद्योग हों या शिक्षा का क्षेत्र, RSS लगातार इस विचार को बढ़ावा देता रहा है कि भारत की प्रगति तभी स्थायी होगी जब वह अपनी जड़ों से जुड़ेगा और विदेशी ताकतों पर निर्भरता घटाएगा। यह बैठक उसी दिशा में एक और बड़ा कदम है।

आज की यह बैठक केवल अमेरिका के टैरिफ पर प्रतिक्रिया भर नहीं है, बल्कि यह भारत को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक रणनीतिक पहल है। यदि सरकार और समाज इस विमर्श से निकलने वाले विचारों को सही रूप में लागू करते हैं, तो निश्चित ही भारत न केवल अमेरिकी दबाव का सामना कर सकेगा बल्कि आने वाले समय में विश्व मंच पर एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा।



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