संपादकीय लेख नाम बदलकर दुकानदारी: सामाजिक विश्वास पर आघात और सतर्कता की जरूरत

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हरिद्वार में “गुप्ता चाट भंडार” के नाम से दुकान चला रहे गुलफाम की गिरफ्तारी ने एक बार फिर से उस चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर देश का ध्यान खींचा है, जिसमें कुछ लोग अपनी असली पहचान छुपाकर दूसरे समुदाय के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। नारसन बॉर्डर क्षेत्र में यह मामला उजागर हुआ, जब पुलिस ने शिकायतों के आधार पर दबिश दी और गुलफाम को गिरफ्तार किया। पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ कि दुकान असल में गुलफाम चला रहा था, जबकि बोर्ड और फूड लाइसेंस “गुप्ता चाट भंडार” के नाम पर थे।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

यह घटना कोई अकेली मिसाल नहीं है। पिछले वर्षों में भी कई बड़े मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें पहचान बदलकर या धर्म बदलकर कारोबार, रिश्ते या सामाजिक घुल-मिल का फायदा उठाने की कोशिशें की गईं। सबसे चर्चित मामला “लव जिहाद” के आरोपों से जुड़ा है, जहाँ नाम और पहचान बदलकर विवाह के बहाने धोखा देने के किस्से कई राज्यों में वायरल हुए। उत्तराखंड में ही, कुछ समय पहले मसूरी और ऋषिकेश जैसे पर्यटन स्थलों पर भी ऐसे केस सामने आए थे, जहाँ मुस्लिम युवकों ने हिंदू नामों से सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाकर लड़कियों से संबंध स्थापित किए। इसी तरह, कई जगह फूड बिजनेस में नाम बदलकर कारोबार करने की खबरें सुर्खियों में रही हैं — मसलन दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी ऐसी घटनाएँ वायरल हुईं।

सरकार की गाइडलाइन क्या कहती है?

सरकार की ओर से FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) के नियम स्पष्ट हैं कि किसी भी खाद्य प्रतिष्ठान को अपने असली नाम और मालिकाना विवरण के साथ ही फूड लाइसेंस लेना होता है। खाद्य सामग्री की गुणवत्ता और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए फूड लाइसेंस पर सही नाम और पता दर्ज होना अनिवार्य है। IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (फर्जीवाड़ा), और 471 (जाली दस्तावेज़ का उपयोग) जैसी धाराएँ ऐसे मामलों में लागू हो सकती हैं।

उत्तराखंड सरकार ने भी विशेष तौर पर संवेदनशील क्षेत्रों — जैसे धार्मिक स्थलों और तीर्थ क्षेत्रों में — इस तरह की गतिविधियों पर निगरानी के आदेश दिए हैं। एसएसपी प्रमेंद्र डोभाल के मुताबिक, पुलिस लगातार वेरिफिकेशन ड्राइव चला रही है और नाम छुपाकर व्यापार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

लोग क्यों करते हैं ऐसा?

  • व्यावसायिक लाभ: हिंदू नाम से दुकान चलाने पर, विशेषकर धार्मिक नगरी जैसे हरिद्वार में, ग्राहक ज़्यादा भरोसा करते हैं। इससे धंधा बढ़ने की संभावना रहती है।
  • सामाजिक स्वीकार्यता: कुछ लोग सामाजिक घुल-मिल के लिए पहचान छुपाते हैं ताकि किसी प्रकार की सामाजिक या धार्मिक दूरी न पैदा हो।
  • राजनीतिक-धार्मिक एजेंडा: कभी-कभी संगठित प्रयासों के तहत ऐसे कदम लिए जाते हैं ताकि बहुसंख्यक समुदाय के भीतर भ्रम या सांस्कृतिक घुसपैठ की स्थिति उत्पन्न हो सके।
  • धार्मिक संवेदनाएँ भड़काने की कोशिश: दुर्भाग्य से, कुछ तत्व समाज को बांटने और वैमनस्य पैदा करने के इरादे से भी ऐसा कर सकते हैं।

क्या छिपा है इसके पीछे स्वास्थ्य और सुरक्षा का खतरा?

  • स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरा: यदि असली मालिक और फूड लाइसेंसधारी अलग हो, तो खाद्य सामग्री की जिम्मेदारी तय नहीं होती। कोई दुर्घटना, फूड प्वाइजनिंग या अशुद्ध भोजन के मामले में उपभोक्ता को न्याय पाना कठिन हो सकता है।
  • सुरक्षा का मामला: पहचान छुपाने से असामाजिक तत्वों के छुपने और किसी बड़े षड्यंत्र की जमीन तैयार होने का डर भी बना रहता है। खासकर धार्मिक स्थलों पर, जहाँ लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, यह एक बड़ा सुरक्षा जोखिम है।

सनातन समाज को क्यों सतर्क रहना चाहिए?

सनातन संस्कृति सहिष्णुता, स्वागत और विश्व-बंधुत्व का पाठ पढ़ाती है। लेकिन बार-बार धोखा और छल सामने आने पर सतर्कता भी उतनी ही आवश्यक है। बिना किसी समुदाय विशेष के प्रति घृणा पाले, यह समझना जरूरी है कि नाम छुपाना केवल एक व्यक्ति का व्यक्तिगत चुनाव नहीं, बल्कि सामाजिक भरोसे के ताने-बाने को नुकसान पहुँचाने वाला अपराध है। सनातन समाज को इस पर नजर रखनी होगी कि धार्मिक स्थलों और सामाजिक गतिविधियों में कौन और किस नाम से सक्रिय है।

भक्ति, श्रद्धा और धार्मिक पर्यटन पर आधारित स्थानों जैसे हरिद्वार में ऐसी घटनाएँ एक गंभीर प्रश्न खड़ा करती हैं — आखिर यह सब कब तक चलेगा? सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में फास्ट-ट्रैक कोर्ट के जरिए शीघ्र निर्णय कराए, ताकि गलत मंशा रखने वालों में भय पैदा हो।

साथ ही, जनता को भी चाहिए कि किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान की फूड लाइसेंस डिटेल्स, GST नंबर और असली मालिक का नाम जांचने की आदत डाले। कोई भी सामाजिक सद्भाव या भाईचारा सत्य और पारदर्शिता पर ही टिकता है, छल और धोखे पर नहीं।

हरिद्वार की यह घटना महज एक दुकान का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर चोट है। सनातन समाज को सतर्क रहना ही होगा, ताकि श्रद्धा और विश्वास का यह देश छल की अंधेरी गलियों में न खो जाए।


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