उत्तराखंड के चमोली जिले के नारायणबगड़ क्षेत्र का एक युवक, जो पिछले 15 वर्षों से पंजाब के तरनतारन जिले के दिनेवाल गांव की एक गौशाला में बंधुआ मजदूरी कर रहा था, आज आज़ाद है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मुक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस भीषण सच्चाई की झलक है, जो देशभर के प्रवासी मजदूरों और हाशिए पर खड़े युवाओं के हिस्से में आती है – विशेषकर उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों से आने वाले लोगों के लिए, जो रोजगार की तलाश में मैदानों की ओर पलायन करते हैं।


इस पूरे घटनाक्रम में जिस तरीके से एक पत्रकार की रिपोर्टिंग, सोशल मीडिया की जागरूकता, और बीजेपी सांसद अनिल बलूनी की तत्परता ने मिलकर गुलाब चंद कटारिया – पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक – तक बात पहुंचाई, वह दिखाता है कि अगर सिस्टम सच में संवेदनशील हो तो बदलाव संभव है। हम इन सभी का हृदय से धन्यवाद करते हैं। बद्री विशाल भगवान केदारनाथ का आशीर्वाद इस पूरी श्रृंखला में दिखाई देता है – और हम प्रार्थना करते हैं कि यह युवक, जिसे 15 सालों तक अमानवीय परिस्थितियों में बंधक बनाकर रखा गया, अब एक नई और गरिमामयी जिंदगी शुरू कर सके।
बंधुआ मजदूरी का दर्द: उत्तराखंड के युवाओं के लिए चेतावनी
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और यहां तक कि दक्षिण भारत के कई हिस्सों में उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और यूपी के युवाओं को रोजगार के नाम पर बहला-फुसलाकर ले जाया जाता है, और फिर उन्हें बंधुआ मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता है। ये फार्महाउस, गौशालाएं, ईंट भट्टे, गन्ने के खेत और निर्माण स्थल – इन सबके पीछे एक क्रूर हकीकत है, जो “मजदूर” को “मालिक” की संपत्ति बना देती है।
इस बार जिस युवक को छुड़ाया गया, वह सिर्फ एक उदाहरण है। लेकिन यह सोचना भोलेपन होगा कि केवल वही एक युवक इस तरह फंसा था। न जाने कितने “नारायणबगड़” के बेटे आज भी देश के अलग-अलग कोनों में बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं।
क्या उत्तराखंड फिर से बना रहा है पलायन का नया इतिहास?
हमारे गांव वीरान होते जा रहे हैं। उत्तराखंड के सीमांत जिलों – पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, और चंपावत – से युवा रोजगार, शिक्षा और जीवन की न्यूनतम सुविधाओं के अभाव में मैदानों की ओर भाग रहे हैं। जबकि मैदानों में बसे शहरों – देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर – में भी बाहरी पूंजीपतियों ने जमीनी पकड़ बना ली है। ऐसे में उत्तराखंडी युवा अब अपने ही राज्य में “श्रमिक” की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया है।
ज़मीन की लूट और आने वाले खतरे
जिस तेजी से बाहरी लोग उत्तराखंड में जमीनें खरीद रहे हैं, वह न केवल राज्य की सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान को मिटा रहा है, बल्कि एक नए किस्म की “घोषित गुलामी” को जन्म दे रहा है। अगर अभी भी भू-कानून को हिमाचल मॉडल पर नहीं लागू किया गया, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड का युवा केवल गेस्टहाउस, होमस्टे, फार्महाउस और रिसॉर्ट्स में “नौकर” बनकर रह जाएगा।
उत्तराखंड एक सीमावर्ती राज्य है। चीन और नेपाल से सटी सीमाओं की रक्षा सिर्फ सैन्य चौकियों से नहीं होती – वहां स्थानीय जनसंख्या की उपस्थिति और स्थायित्व भी उतना ही आवश्यक है। अगर पहाड़ खाली हो गए, तो सीमा की सुरक्षा कमजोर होगी, और उत्तराखंड की पहचान भी।
अंत में…
हम भगवान केदारनाथ से प्रार्थना करते हैं कि वह उस युवक को नई जिंदगी के लिए आशीर्वाद दें, उसके परिवार को संबल दें, और समाज को यह चेतावनी दे कि अब भी समय है, जागरूक हो जाएं।
हम उन सभी पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, सांसद अनिल बलूनी, राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया और उन सभी निस्वार्थ लोगों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस लड़ाई में आवाज़ उठाई।
बंधुआ मजदूरी सिर्फ एक सामाजिक अपराध नहीं, बल्कि हमारे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ युद्ध है। उत्तराखंड को चाहिए कि वह न केवल अपने युवाओं की रक्षा करे, बल्कि उन्हें यहां – अपनी ही मिट्टी में – रोजगार, सम्मान और सुरक्षा दे।
जिसके बाद गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी ने इस मामले में पहल की।
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी प्रशासन को इस मामले में कार्रवाई के निर्देश दिए। जिसके बाद प्रशासन भी हरकत में आया और अब आखिरकार राजेश को परिजनों से मिला दिया गया है। जिसके बाद हर कोई भावुक भी हुए और मिलने पर खुश भी हैं।
यह युवक बीते 15 सालों से गौशाला में काम करता था। जिसे गौशाला मालिक ने बंधुआ मजदूर बनाकर रखा था। संस्था ने युवक को मजदूरी से मुक्त कर उसे परिजनों को सौंप दिया है। सालों बाद युवक को देखकर हर कोई भावुक हो गए।
बीते दिनों पंजाब के अमृतसर के किसी गांव में एक गौशाला में काम करते एक युवक का वीडियो सामने आया था। जिसमें युवक पंजाब की एक सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करता दिखा था। युवक अपना नाम राजेश पुत्र आशा लाल निवासी चमोली (उत्तराखंड) बता रहा था। युवक ये भी कहता नजर आया कि वो उनसे ज्यादा बात नहीं करेगा और काम नहीं करने पर मालिक उसकी पिटाई करेगा।
इस वीडियो की चमोली पुलिस प्रशासन ने पड़ताल की तो पता चला कि साल 2008 में कौब थान गांव के आशा लाल का बेटा राजेश करीब 15 साल की उम्र में किसी बात से नाराज होकर घर छोड़ कर चला गया था। उसके बाद से युवक का अपने परिजनों के साथ किसी भी तरह का संपर्क नहीं रह गया था।
युवक के संबंध में जानकारी मिलने के बाद परिजन भी पंजाब पहुंच गए। परिजनों ने पंजाब पहुंचकर युवक से मुलाकात की। युवक को 15 साल बाद देखकर हर कोई भावुक हो गया और अब घर ले जाने की तैयारी है। इस मामले की हर जगह चर्चा है। साथ ही सोशल मीडिया के ताकत की भी तारीफ हो रही है। सोशल मीडिया की वजह से ही ये सब संभव हो पाया और राजेश परिजनों से मिल पाया है।

