
रुद्रपुर।जनप्रतिनिधियों की मुस्कुराहटों के बीच फूल-मालाओं से सजी मंच की तस्वीरें शहर के अखबारों में जब छपती हैं, तो लगता है जैसे रुद्रपुर विकास के स्वर्ण युग में प्रवेश कर चुका है। ठाकुरनगर, गोल मड़ैया, मुकेश ज्वेलर्स के सामने सड़क निर्माण का शिलान्यास भी ऐसा ही एक कार्यक्रम था—जहां सांसद अजय भट्ट, विधायक शिव अरोरा और महापौर विकास शर्मा ने संयुक्त रूप से सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में सड़क निर्माण का शुभारंभ किया। जनता खुश थी, जनप्रतिनिधि गर्वित थे, और कैमरे तैयार थे। लेकिन इन तमाम औपचारिकताओं की आड़ में जो बात दब जाती है, वह है—रुद्रपुर की टूटी सड़कों का असली सच।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
86 सड़कों की बदहाली – विकास की नहीं, भ्रष्टाचार की कहानी?नगर निगम रुद्रपुर की रिपोर्ट खुद कहती है कि शहर की कुल 86 सड़कें क्षतिग्रस्त हैं, जिनमें से 40 सड़कों का पुनर्निर्माण या मरम्मत कार्य शुरू किया गया है। सवाल यह है कि जब ये सड़कें पिछले 4-5 सालों में ही बनी थीं, तो इतनी जल्दी टूट कैसे गईं? क्या यह खराब निर्माण सामग्री का नतीजा है, या फिर ठेकेदारों और अफसरों की मिलीभगत का परिणाम?
जनता जानती है कि अधिकांश सड़कें निर्माण के कुछ महीनों में ही गड्ढों में तब्दील हो गईं। पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं, डामर की मोटाई अधूरी, और निगरानी नाम की कोई व्यवस्था नहीं। रुद्रपुर की सड़कें भ्रष्टाचार के कंक्रीट सबूत बन चुकी हैं।
‘ट्रिपल इंजन सरकार’ का ट्रिपल इग्नोरेंस?महापौर विकास शर्मा का यह कहना कि “ट्रिपल इंजन की सरकार विकास की रफ्तार को तेज कर रही है” सुनने में अच्छा लगता है, पर वास्तविकता इसके उलट है। केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय—तीनों स्तर की सरकारें एक-दूसरे की पीठ थपथपा रही हैं, जबकि जनता हर दिन गड्ढों में झूलती है।
सवाल यह है कि जब नगर निगम, पीडब्ल्यूडी और विधायक निधि तीनों से करोड़ों रुपये के बजट जारी किए जाते हैं, तो सड़कें दो साल भी क्यों नहीं टिकतीं? आखिर इन बजटों का हिसाब कौन देगा?
पूर्व कार्यकाल के घोटालों पर मौन क्यों?नगर निगम के पिछले कार्यकाल में जिन अधिकारियों की निगरानी में सड़कें बनीं, वे आज भी वहीं हैं। ठेकेदार वही हैं, प्रक्रिया वही है—सिर्फ महापौर बदले हैं।
क्या नई नगर सरकार ने अब तक उन 86 सड़कों की गुणवत्ता की जांच करवाई? क्या किसी ठेकेदार पर कार्रवाई हुई? या फिर वही “पुराना खेल—नई बोली” चल रहा है?
जनता यह भी याद रखे कि सड़कें केवल डामर और बजरी से नहीं बनतीं, वे जवाबदेही से बनती हैं। और जब जवाबदेही ही गायब हो, तो सड़कें भी टिकती नहीं।
शिलान्यास की राजनीति और जनता की खामोशी
?आज रुद्रपुर में हर विकासकार्य शिलान्यास से शुरू होता है और अखबारों की सुर्खियों में खत्म हो जाता है। आम जनता इन कार्यक्रमों में फोटो खिंचवाकर लौट जाती है—पर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करती। शायद इसलिए कि सवाल पूछना अब ‘विरोध’ माना जाता है।
रुद्रपुर की जनता को यह समझना होगा कि शिलान्यास कार्यक्रम विकास का प्रमाण नहीं, बल्कि जवाबदेही की शुरुआत होना चाहिए। लेकिन यहां शिलान्यास ही अंत बन चुका है।
रुद्रपुर को चाहिए सच्चा विकास, दिखावा नहीं?ट्रांजिट कैम्प में नई सड़क, रजत जयंती पार्क, जोनल कार्यालय और आयुष्मान आरोग्य मंदिर जैसी योजनाएं स्वागतयोग्य हैं—पर जब तक नगर निगम यह नहीं बताता कि पुरानी सड़कों का क्या हुआ, तब तक नया निर्माण भी संदेह के घेरे में रहेगा।
अगर 1.30 करोड़ की लागत से बनने वाली यह नई सड़क भी दो साल में धूल फांकने लगे, तो जनता को किसे दोष देना चाहिए—अधिकारी, ठेकेदार या खुद अपनी खामोशी को?
रुद्रपुर में विकास के नाम पर शिलान्यास का उत्सव चल रहा है, पर जवाबदेही का शोक भी साथ-साथ है। नगर निगम और सरकार को यह समझना होगा कि शहर के विकास की असली परीक्षा तब होगी जब हर गली, हर सड़क और हर नागरिक को यह भरोसा होगा कि उनका पैसा सही जगह खर्च हुआ है।
जब तक भ्रष्टाचार की सड़कों पर राजनीतिक फुलझड़ियाँ फूटती रहेंगी, तब तक रुद्रपुर की राहें हमेशा अधूरी रहेंगी।


