संपादकीय लेख: “क्यों कुत्तों को भारत से चीन भेजना चाहिए—राजस्व व रोजगार के दृष्टिकोण से”चिनीयों के लिए कुत्तों की मांग और भारत का अवसर

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भारत में कुत्ते काटने और रैबीज़ से होने वाली मौतों का आँकड़ा व उदाहरण

आंकड़े (ताज़ा व विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित)

।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


  • 2024 में भारत में कुल 3.7 मिलियन (37 लाख+) कुत्ते काटने के मामले दर्ज किए गए और 54 संदेहास्पद रैबीज़ मृत्यु हुईं ।
  • एक मॉडल-अधारित सर्वेक्षण (2022–23) के अनुसार:
    • लगभग 9.1 मिलियन जानवरों के काटने के मामले, जिनमें अधिकांश कुत्तों से ।
    • अनुमानित 5,726 रैबीज़ से हुई मानव मृत्यु प्रति वर्ष ।
  • WHO अनुसार, भारत में अनुमानित 18,000–20,000 रैबीज़ मृत्यु प्रति वर्ष होती हैं, और देश विश्व की रैबीज़ मृत्यु का लगभग 36% हिस्सा है ।
  • Lancet Infectious Diseases अध्ययन के अनुसार, प्रति वर्ष लगभग 5,726 रैबीज़ से होने वाली मौतें भारत में होती हैं ।

कुछ उदाहरण

  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU), अलीगढ़ में एक 70 वर्षीय सेवानिवृत्त डॉक्टर को कुत्तों के झुंड ने श्रद्धा यात्रा के दौरान काट कर घायल कर दिया था ।
  • आगरा में एक 5 वर्षीय बच्ची की stray कुत्तों द्वारा हत्या हो गई, और बरेली में एक 12 वर्षीय लड़के की मौत भी इसी तरह से हुई ।

क्यों कुत्तों को भारत से चीन भेजना चाहिए—राजस्व व रोजगार के दृष्टिकोण से”चिनीयों के लिए कुत्तों की मांग और भारत का अवसर: क्या जनसंख्या नियंत्रण को रोजगार-मुखी समाधान बनाया जाए?”भारत में आवारा कुत्तों की संख्या—उन लाखों से करोड़ों तक पहुंच चुकी है। हाल ही में संसद में यह तथ्य उभरा कि 2024 में 37 लाख कुत्ते काटने के मामले और 54 संदेहास्पद रैबीज़ मौतें दर्ज की गईं । लंबे समय से रिपोर्ट की जाती रही है कि भारत में प्रति वर्ष लगभग 5,726 से लेकर 20,000 तक रैबीज़ से मौतें होती हैं—हकीकत से जुड़ा यह आंकड़ा देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी को उजागर करता है ।फिर सवाल उठता है: क्या भारत अपने ग्रामीण-शहरी इलाकों में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए उन्हें चीन जैसे देश में भेजकर दोहरे लाभ प्राप्त कर सकता है—(1) जनसंख्या नियंत्रण, (2) राजस्व और रोजगार?चीन में कुत्तों की बड़ी मांग है, विशेषकर सांस्कृतिक या देसी नस्लों की। यदि भारत इन कुत्तों का निर्यात करता है:

  1. सरकारी राजस्व बढ़ेगा—एक सीमा शुल्क, सूचीकरण और निर्यात शुल्क से।
  2. स्थानीय रोजगार भी बढ़ते—पालन-पोषण, प्रशिक्षण, पशु स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन, निर्यात लॉजिस्टिक्स जैसी गतिविधियों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।

परन्तु इस प्रस्ताव के कई नैतिक, कानूनी और व्यावहारिक सवाल भी हैं:

  • Nijat aur प्राणी अधिकार: भारत की पशु कल्याण कानून (PCA Act, 1960 और ABC Rules, 2001) “कुत्तों को मारने या अत्यधिक पूंजीगत व्यापार हेतु रफ्तार से ढुवाना” प्रतिबंधित करते हैं ।
  • आदेशों का विरोध: हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर में स्थानांतरित करने का आदेश दिया—जिस पर कई संरक्षणवादी कहते हैं कि यह “अव्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप से अनुचित” है ।
  • मानव-पशु संघर्ष का समाधान स्वास्थ्य-वैक्सिन पर आधारित होना चाहिए, न कि व्यापार पर। WHO और National Action Plan की दिशा में लक्षित उपाय जैसे 70% कुत्तों को टीकाकरण, जन-समुदाय शिक्षण, और एक स्वास्थ्य (One Health) दृष्टिकोण अधिक प्रभावी व मानवीय उपाय हैं ।

इस प्रकार, जबकि कुत्तों का निर्यात आर्थिक दृष्टिकोण से लाभप्रद लग सकता है, यह एक संवेदनशील, जटिल और विवादास्पद कदम है। इसके बजाय हमें विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जैसे:

  • समान रूप से पुराने संरक्षक-नियंत्रक कार्यक्रम, जिसमें टीकाकरण, नसबंदी, और आपदा-पूर्व रक्षा शामिल हो।
  • जनजागरूकता व शिक्षा द्वारा कुत्तों से सावधान रहने की चेतना फैलाना।
  • स्वदेशी रोजगार जैसे पशु चिकित्सक, पशु हेल्थ वर्कर, जैव-नियंत्रण प्रौद्योगिकियाँ, टीकाकरण अभियान इत्यादि को समर्थन देना।

आवारा कुत्तों को चीन भेजकर जनसंख्या पर नियंत्रण और राजस्व उत्पन्न करने का विचार आकर्षक हो सकता है, पर यह सामाजिक, कानूनी और मानवता-परक दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं बैठता। अधिक समर्थित, वैज्ञानिक और मानवीय रणनीतियाँ ही दीर्घकालिक समाधान पेश कर सकती हैं।




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