
ओखलकांडा की एक खबर ने पूरे उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। नैनीताल जिले के एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दसवीं कक्षा का सिर्फ एक छात्र था, और वह भी बोर्ड परीक्षा में हर विषय में फेल हो गया। यह मामला केवल एक छात्र के फेल होने का नहीं है, बल्कि सात अध्यापकों के बावजूद पढ़ाई की इस दुर्गति का है, जो पूरे राज्य की सरकारी शिक्षा प्रणाली की असफलता का आईना है।


सवाल यह है कि जब शिक्षक भरपूर हैं, संसाधन नाममात्र हैं, फिर भी शिक्षा का स्तर इतना गिरा हुआ क्यों है? शिक्षा का यह मॉडल ‘फॉर्मूला फ़ेलियर’ बन चुका है, जिसमें गुणवत्ता की जगह सिर्फ उपस्थिति और औपचारिकताएं चल रही हैं। यह मामला सिर्फ ओखलकांडा तक सीमित नहीं है, बल्कि कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक हजारों स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चे तो हैं, लेकिन पढ़ाई नहीं।
शिक्षक संख्या बनाम छात्र परिणाम: एक विडंबना,जब एक स्कूल में 7 शिक्षक और केवल 1 छात्र हो और वह भी सभी विषयों में फेल हो जाए, तो यह किसी त्रासदी से कम नहीं। यह घटना बताती है कि शिक्षक केवल वेतन लेने और सरकारी नौकरी के नाम पर स्कूल में “हाजिरी” भरने तक सीमित रह गए हैं। छात्रों की पढ़ाई से न तो किसी को सरोकार है, न ही किसी की जवाबदेही तय होती है।
शिक्षा विभाग की भूमिका पर भी सवाल,महानिदेशक झरना कमठान द्वारा जांच के आदेश और सीईओ से रिपोर्ट मंगवाना स्वागत योग्य है, परंतु क्या इससे शिक्षा में कोई वास्तविक सुधार होगा? या फिर यह भी एक रस्मअदायगी बनकर रह जाएगा? माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने कहा कि जवाबदेही तय होगी — लेकिन यह जवाबदेही किस पर और कब तक?
सरकार की भूमिका: घोषणाएं बहुत, जमीन पर सूनापन,उत्तराखंड सरकार द्वारा ‘स्कूल चलो अभियान’, डिजिटल क्लासरूम, स्मार्ट स्कूल जैसे तमाम दावे किए जाते हैं। लेकिन जब धरातल पर एक छात्र भी पास न हो, तो यह तमाम घोषणाएं खोखली लगती हैं। करोड़ों के बजट और योजनाएं केवल मंत्रीगणों की फोटो और अखबार की सुर्खियों तक ही सीमित हैं।
- स्थानीय स्तर पर शिक्षक चयन और मूल्यांकन: बाहरी भर्ती की बजाय स्थानीय योग्य युवाओं को प्राथमिकता दी जाए जो अपने समाज और भाषा से जुड़े हों।
- मूल्यांकन आधारित प्रोन्नति और स्थानांतरण नीति: शिक्षकों की पोस्टिंग छात्र प्रदर्शन के आधार पर तय की जाए।
- स्कूलों का विलय और संसाधनों का केन्द्रीयकरण: जहां छात्र बहुत कम हैं, वहां स्कूलों का समेकन कर बेहतर सुविधाएं दी जाएं।
- ग्रामीण शिक्षा पर विशेष बजट और निगरानी तंत्र: पहाड़ों में शिक्षा को लेकर अलग से नीति बने जिसमें विद्यालय निरीक्षण नियमित हो।
यह एक छात्र की नहीं, पूरे समाज की हार है,ओखलकांडा के दसवीं के छात्र का फेल होना उसकी व्यक्तिगत विफलता नहीं, बल्कि एक ऐसे सिस्टम की हार है जो शिक्षा को सेवा नहीं, सिर्फ नौकरी और वेतन का माध्यम समझता है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में सरकारी स्कूलों में सिर्फ ताले रह जाएंगे और सरकारी शिक्षकों का जमावड़ा सिर्फ तनख्वाह लेने तक सिमट जाएगा।
जिम्मेदार शिक्षकों की बर्खास्तगी ही शिक्षा सुधार की पहली शर्त है
नैनीताल के ओखलकांडा के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दसवीं कक्षा के एकमात्र छात्र का सभी विषयों में फेल हो जाना महज संयोग नहीं, बल्कि शिक्षकों की घोर लापरवाही का नतीजा है। जब सात शिक्षक मिलकर एक छात्र को पास नहीं करा सके, तो यह साबित हो जाता है कि ये शिक्षक अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हो चुके हैं।इस शर्मनाक विफलता के लिए सिर्फ जांच रिपोर्ट या चेतावनी से काम नहीं चलेगा। ऐसे शिक्षकों को बर्खास्त करना जरूरी है, ताकि शिक्षा प्रणाली में जवाबदेही की संस्कृति विकसित हो सके। यदि शिक्षकों को यह संदेश नहीं गया कि लापरवाही पर नौकरी जाएगी, तो आने वाले वर्षों में भी परिणाम ऐसे ही मिलेंगे।सरकारी शिक्षक अच्छी तनख्वाह, सुविधाएं और पेंशन तो चाहते हैं, लेकिन जब बात शिक्षा की गुणवत्ता की आती है, तो वे अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं। यही कारण है कि हजारों सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घट रही है और अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हो रहे हैं।बर्खास्तगी का डर ही उन्हें जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह सिर्फ एक दंडात्मक कार्रवाई नहीं, बल्कि पूरे राज्य के शिक्षकों के लिए चेतावनी होगी कि अब शिक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं चलेगा। अगर कोई शिक्षक बच्चों के भविष्य से खेलता है, तो उसे सेवा में बने रहने का कोई अधिकार नहीं।उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि वह बिना देरी के दोषी शिक्षकों को बर्खास्त करे और शिक्षा को ईमानदारी और जवाबदेही के पथ पर ले जाए। यही आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा का एकमात्र रास्ता है।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद उत्तराखंड
