संपादकीय – “पंचायत से संसद तक: भाजपा का बढ़ता जनाधार और कांग्रेस की ढलान”

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संपादकीय – “पंचायत से संसद तक: भाजपा का बढ़ता जनाधार और कांग्रेस की ढलान”

उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर वही तस्वीर उभर आई है, जो पिछले कुछ वर्षों से लगातार दोहराई जा रही है—चुनाव दर चुनाव भाजपा की बढ़त और कांग्रेस की पिछड़न। विधान सभा, लोकसभा और निकाय चुनावों के बाद अब पंचायत चुनावों में भी भाजपा ने अपनी सियासी पकड़ साबित कर दी है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के 12 में से 10 और ब्लॉक प्रमुख के 89 में से 61 पदों पर जीत हासिल कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसका चुनावी मैकेनिज्म और नेतृत्व रणनीति वर्तमान समय में विपक्ष से कहीं अधिक सशक्त है।।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

चुनाव से पहले बढ़त की रणनीति
भाजपा ने पंचायत चुनावों में अपनी जीत की नींव वोटिंग से पहले ही रख दी थी। कई जिलों में निर्विरोध जीत—जैसे रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा—यह दर्शाती है कि पार्टी ने विपक्ष को मैदान में उतरने से पहले ही मानसिक और संगठनात्मक रूप से कमजोर कर दिया था। ग्राम प्रधान की लगभग 85 प्रतिशत सीटों पर कब्जा भाजपा की जमीनी पकड़ का प्रमाण है। यह केवल चुनावी प्रचार का नतीजा नहीं, बल्कि बूथ स्तर से लेकर पंचायत स्तर तक पार्टी संगठन की चौकस कार्यप्रणाली का परिणाम है।

धामी फैक्टर का असर
भाजपा की इस जीत को पार्टी ने पूरी तरह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व और विकास-उन्मुख सोच का श्रेय दिया है। धामी की छवि एक युवा, ऊर्जावान और निर्णयात्मक नेता के रूप में गढ़ी गई है। उन्होंने न केवल जनता से सीधा संवाद बनाए रखा, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकास रूपी महायज्ञ” को राज्य के सन्दर्भ में जोड़कर प्रस्तुत किया। यह भाजपा का एक बड़ा नैरेटिव बन चुका है कि विकास कार्यों के माध्यम से राज्य को एक नई दिशा दी जा रही है, और पंचायत चुनावों में आए नतीजे इस नैरेटिव की पुष्टि करते हैं।

कांग्रेस की विफल रणनीति
दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए यह नतीजे एक और झटका हैं। पार्टी न तो अपने पुराने जनाधार को बचा पाई, न ही नए चेहरे और मुद्दे पेश कर सकी। निर्विरोध जीत की अधिकता बताती है कि कई स्थानों पर कांग्रेस का स्थानीय ढांचा निष्क्रिय हो चुका है। यह केवल नेतृत्व संकट नहीं, बल्कि संगठनात्मक शिथिलता का भी प्रमाण है।

राजनीतिक निहितार्थ
इन पंचायत चुनावों का महत्व केवल स्थानीय शासन तक सीमित नहीं है। उत्तराखंड में पंचायत स्तर का जनमत भविष्य के विधानसभा और लोकसभा समीकरणों का संकेतक होता है। भाजपा ने जिस तरह चार नई जिला पंचायत सीटें—अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी और हरिद्वार—अपने पक्ष में कर लीं, वह उसके लिए आने वाले बड़े चुनावों में मनोवैज्ञानिक बढ़त का आधार बनेगा।

भविष्य की चुनौती
भाजपा के लिए यह जीत जितनी गौरवपूर्ण है, उतनी ही जिम्मेदारी भी लाती है। जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए जमीनी विकास, पारदर्शिता और स्थानीय मुद्दों का त्वरित समाधान अनिवार्य है। वहीं, कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा कि आखिर क्यों वह लगातार जनाधार खोती जा रही है—क्या यह नेतृत्व का संकट है, संगठन की कमजोरी है, या जनता से कटते जाने की बीमारी?

अंततः, यह पंचायत चुनाव सिर्फ ग्रामीण सत्ता संरचना का चुनाव नहीं था, बल्कि एक ऐसा राजनीतिक संदेश था जिसने साफ कर दिया है कि उत्तराखंड की राजनीति में भाजपा की पकड़ मज़बूत होती जा रही है और कांग्रेस अभी भी अपने रास्ते को तलाश रही है।



जिला पंचायत चुनाव 2025: उधम सिंह नगर में कांग्रेस की ‘ढुलमुल चाल’ और बीजेपी का ‘मजबूत दांव’उधम सिंह नगर में जिला पंचायत चुनाव एक बार फिर यह साबित कर रहे हैं कि राजनीति में सिर्फ नारे और वादे नहीं, बल्कि रणनीति और जमीनी पकड़ मायने रखती है। यहां कांग्रेस का हाल उस खिलाड़ी जैसा है, जो मैदान में तो उतरता है, लेकिन खेल का नियम और दिशा दोनों भूल जाता है। वहीं बीजेपी, अपने संगठनात्मक कौशल और बूथ स्तर तक फैली पकड़ के साथ चुनावी बिसात पर हर चाल सोच-समझकर चल रही है।उधम सिंह नगर के जिला पंचायत चुनाव इस बात का संकेत हैं कि राजनीति में सिर्फ सत्ता की चाह काफी नहीं है – संगठन की मजबूती, जमीनी जुड़ाव और सही समय पर सही दांव ही जीत की कुंजी हैं। बीजेपी इस फार्मूले को बखूबी अपनाए हुए है, जबकि कांग्रेस अभी भी पुरानी स्क्रिप्ट के पन्ने पलट रही है।



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