
उत्तराखंड की धरती, जो कभी देवभूमि कही जाती थी, आज फर्जी डिग्रीधारियों की कर्मभूमि बनती जा रही है। जनता इंटर कॉलेज, देवनगर, रुद्रप्रयाग का मामला ताजा उदाहरण है—जहाँ लक्ष्मण सिंह रौथाण नामक व्यक्ति ने फर्जी बीएड डिग्री के सहारे मासूम बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा उठा रखा था। कोर्ट ने उसे 5 साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। लेकिन सवाल यह है—क्या सिर्फ एक लक्ष्मण सिंह जेल भेज देने से इस गंदगी का अंत हो जाएगा? नहीं!


संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!
ये कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं
प्रभारी अभियोजन अधिकारी खुद बता चुके हैं कि जनपद रुद्रप्रयाग में अब तक फर्जी डिग्री के 26 मामलों में सभी दोषी करार दिए जा चुके हैं। और यह तो बस एक जिले की तस्वीर है। पूरे उत्तराखंड में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ की डिग्रियाँ फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा जरिया बनी हुई हैं। “शिक्षा विशारद” जैसे तथाकथित संस्थान तो मानो खुलेआम “डिग्री की दुकानें” चला रहे हैं। चपरासी से लेकर प्रोफेसर और सेकंड क्लास अफसर तक… अनपढ़ लोग इन जाली कागज़ों के सहारे ऊँची-ऊँची कुर्सियों पर विराजमान हो गए। ये लोग केवल अपनी ही नहीं, उत्तराखंड की अस्मिता और आनेवाली पीढ़ियों के भविष्य की हत्या कर रहे हैं।
फर्जी डिग्रीधारियों ने राज्य की अवधारणा से गद्दारी की है
क्या यही वह उत्तराखंड है जिसके लिए राज्य आंदोलनकारी सड़कों पर लाठियां खा रहे थे? क्या यही वह स्वप्न था जहाँ पहाड़ का बच्चा भी बेहतर शिक्षा और रोजगार पाएगा? पर आज की हकीकत देखिए—फर्जी सर्टिफिकेट लेकर लोग नौकरियों पर काबिज हैं, ईमानदार और मेहनती अभ्यर्थी दर-दर भटक रहे हैं। फर्जी डिग्रीधारी न सिर्फ वेतन उठा रहे हैं बल्कि प्रमोशन भी पा रहे हैं। ये शिक्षा के मंदिरों में विष घोल रहे हैं।
धामी सरकार अब और देर न करे
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अब तत्काल आदेश देना चाहिए कि—
- सभी बाहरी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों की जाँच कराई जाए।
- खासकर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, शिक्षा विशारद जैसे संस्थानों की डिग्रियाँ प्राथमिकता से वेरिफाई हों।
- हर विभाग में बैठा हर व्यक्ति, चाहे वह चपरासी हो या अफसर, सबकी शैक्षिक योग्यता को स्कैन किया जाए।
- दोषी पाए जाने वालों को सिर्फ बर्खास्त न किया जाए, बल्कि जेल भेजा जाए और उनकी सम्पत्ति जब्त हो।
- इनकी वजह से जिन योग्य युवाओं की नियुक्तियाँ रुक गईं, उन्हें प्राथमिकता से अवसर दिया जाए।
वरना आने वाला कल माफ नहीं करेगा।
सिर्फ फर्जी बाबाओं को जेल भेजने से कुछ नहीं होगा। फर्जी डिग्रीधारियों पर भी वैसा ही शिकंजा कसना होगा। धामी सरकार को यह समझना होगा कि ये लोग उत्तराखंड के सपनों के हत्यारे हैं। इन पर नकेल कसना केवल कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा की रक्षा का सवाल है।
अभी भी वक्त है। 2027 के पहले ही इन फर्जी डिग्रीधारियों को सलाखों के पीछे भेजो, ताकि बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों को पता चल जाए कि उत्तराखंड में अब कोई माफ नहीं।

