संपादकीय डबल इंजन सरकार” की पारदर्शिता पर शक?दो चेहरे, दो नीतियां — देहरादून में बुलडोज़र, रुद्रपुर में बुलडोज़र पर विराम क्यों?

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रुद्रपुर,उत्तराखंड में शासन की कार्यशैली इन दिनों दो विपरीत चेहरों में दिख रही है — एक ओर राजधानी देहरादून में मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) अवैध प्लॉटिंग, अतिक्रमण और अनाधिकृत निर्माणों पर बुलडोज़र चला रहा है, वहीं दूसरी ओर कुमाऊं के औद्योगिक नगर रुद्रपुर में अवैध कॉलोनियों और भूमि घोटालों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। सवाल यह उठता है कि क्या कानून केवल राजधानी के लिए है? क्या उधमसिंहनगर में विकास प्राधिकरण और जिला प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद ली हैं?

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

देहरादून की तस्वीर में दिख रहा है प्रशासनिक सख्ती का उदाहरण। शनिवार को एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने स्वयं मोर्चा संभालते हुए मेंहूवाला माफी, हरभजवाला, बुद्धपुर, नयागांव और विकासनगर में अवैध प्लॉटिंग पर बुलडोज़र चलाया। कुल 26 बीघा भूमि पर अवैध प्लॉटिंग ध्वस्त की गई और छह से अधिक अनाधिकृत निर्माणों को सील किया गया। जिन कॉलोनियों पर कार्रवाई हुई, उनमें श्रीराम एन्क्लेव, बालाजी एन्क्लेव और सरस्वती एन्क्लेव प्रमुख हैं।
एमडीडीए की यह कार्रवाई मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की “सुनियोजित शहरी विकास नीति” के तहत की जा रही बताई जा रही है — जिसका लक्ष्य अवैध निर्माणों पर नियंत्रण और राजधानी को व्यवस्थित रूप देना है।

लेकिन जब कैमरा राजधानी से हटकर रुद्रपुर की गलियों में जाता है, तो वही ‘विकास’ शब्द भ्रष्टाचार और मिलीभगत की परतों में दबा दिखाई देता है। यहाँ की हकीकत यह है कि रेरा में केवल 5 एकड़ जमीन की कॉलोनी पास कराई जाती है, जबकि 25 से 50 एकड़ तक की कॉलोनी अवैध रूप से काटी जाती है। हर गली, हर मोहल्ले में नए नाम से “एन्क्लेव” और “विकास कॉलोनी” उग आते हैं, जैसे शासन-प्रशासन की आंखों पर पट्टी बंधी हो। सूत्र बताते हैं कि यहाँ प्रत्येक एकड़ पर लगभग ₹1 लाख प्राधिकरण और उसके दलालों की जेब में जाता है। यानी भ्रष्टाचार का पूरा खेल संगठित है — भूमाफिया से लेकर कुछ प्राधिकरण अधिकारी और स्थानीय राजनेता तक इसमें हिस्सेदार हैं।

रुद्रपुर में नजूल भूमि पर अवैध कब्जा अब सामान्य बात बन चुकी है। सरकारी भूमि पर आलीशान आवास, बाजार और कॉलोनियां विकसित की जा रही हैं — और हैरानी की बात यह कि इन जमीनों की रजिस्ट्री तक प्रशासन की मिलीभगत से की जा रही है! न तो नगर निगम सवाल उठाता है, न जिला प्रशासन कार्रवाई करता है। यहां तक कि शिकायतकर्ता जब पुलिस या राजस्व कार्यालयों में जाते हैं तो उन्हें “ऊपर से दबाव है” कहकर चुप करा दिया जाता है। यह स्थिति बताती है कि प्राधिकरण और प्रशासन मिलकर ही इस अवैध कारोबार को संरक्षण दे रहे हैं।

हर कोई जो रुद्रपुर में जमीन काट रहा है, अपने को किसी मंत्री या मुख्यमंत्री का “करीबी” बताता है। यह भय और प्रभाव का ऐसा जाल है, जिसमें आम नागरिक फंसकर रह जाता है। दर्जनों लोगों ने लाखों रुपये देकर प्लॉट खरीदे, पर न रजिस्ट्री हुई, न कब्जा मिला। जब ठगे गए लोग शिकायत लेकर कोर्ट या पुलिस के पास गए, तो मामला वर्षों से लटक रहा है।
यह केवल अवैध प्लॉटिंग नहीं, बल्कि आम जनता की खून-पसीने की कमाई पर किया गया अपराध है।

अगर उत्तराखंड सरकार वास्तव में अवैध निर्माणों पर सख्ती चाहती है, तो सवाल उठता है — रुद्रपुर और किच्छा क्षेत्र में बुलडोज़र क्यों नहीं चलता? क्या मुख्यमंत्री धामी की नीति केवल राजधानी देहरादून तक सीमित है? क्या उधमसिंहनगर प्रशासन को राजधानी से अलग “छूट” मिली हुई है?

राज्य की यही दोहरी नीति जनता में गहरा अविश्वास पैदा कर रही है। एक तरफ देहरादून में “स्वच्छ प्रशासन” का प्रदर्शन किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ किच्छा-रुद्रपुर में “सत्ता संरक्षण में अवैधता” को हवा दी जा रही है। अगर किसी ईमानदार अधिकारी ने इस खेल को उजागर करने की कोशिश की, तो उसका तबादला निश्चित है।

सच्चाई यह है कि रुद्रपुर में प्रॉपर्टी डीलिंग अब संगठित ठगी उद्योग का रूप ले चुकी है। यहां जमीन के नाम पर लोगों से लाखों रुपये हड़पने के मामले दर्ज हैं, लेकिन कोई ठोस जांच या गिरफ्तारी नहीं होती। कई कॉलोनाइजर ऐसे हैं जिन्होंने अवैध कॉलोनियों के नाम पर हजारों प्लॉट बेच दिए, पर न बिजली का कनेक्शन है, न सड़क, न जल निकासी।
फिर भी ये लोग खुलेआम विज्ञापन दे रहे हैं और अपने “राजनीतिक संरक्षण” का हवाला देते हैं।

राज्य सरकार को यह समझना होगा कि विकास केवल बुलडोज़र चलाने से नहीं होगा, बल्कि कानून के समान अनुपालन से होगा। देहरादून और रुद्रपुर के लिए दो अलग मापदंड नहीं हो सकते।
यदि देहरादून में अवैध निर्माणों पर कार्रवाई न्यायसंगत है, तो रुद्रपुर में क्यों नहीं?
यदि एमडीडीए राजधानी की सफाई में जुटा है, तो उधमसिंहनगर में प्राधिकरण किसकी सेवा में लगा है?

यह आवश्यक है कि मुख्यमंत्री स्वयं इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराएं। रुद्रपुर, किच्छा, गदरपुर और बाजपुर क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों में जितनी भी कॉलोनियां विकसित हुई हैं, उनकी भूमि स्वीकृति, रजिस्ट्री, नक्शा पासिंग और रेरा रिकॉर्ड की जांच की जाए। जिन अधिकारियों के हस्ताक्षर इन फाइलों पर हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।

राज्य के नागरिकों को भी अब सजग होना होगा। जो लोग अवैध प्लॉटिंग में पैसे लगा रहे हैं, वे खुद ठगी के शिकार बन रहे हैं। बिना स्वीकृति की भूमि में निवेश करना न केवल आर्थिक जोखिम है, बल्कि कानूनी अपराध भी है।

अंततः यह संपादकीय सरकार से एक स्पष्ट मांग करता है—
देहरादून की तरह रुद्रपुर में भी बुलडोज़र चले।
हर प्रॉपर्टी डीलर और कॉलोनाइजर की संपत्ति की जांच हो।
नजूल भूमि पर कब्जा करने वालों पर मुकदमे दर्ज हों।
और सबसे महत्वपूर्ण — उत्तराखंड में विकास का पैमाना समान होना चाहिए, न कि राजधानी-परक।

जब तक कानून का डंडा हर जिले में एक जैसा नहीं गिरेगा, तब तक “डबल इंजन सरकार” की पारदर्शिता केवल नारों तक सीमित रहेगी। देहरादून की बुलडोज़र नीति की सच्ची सफलता तब मानी जाएगी, जब रुद्रपुर और किच्छा की अवैध कॉलोनियों में भी धरातल हिलेगा। तभी प्रदेश में वास्तविक “सुशासन” की गूंज सुनाई देगी।


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