संपादकीय :पाखंड का पर्दाफाश?अंधविश्वास बनाम सच्चाई : पॉप और पाखंड के आईने में धर्म परिवर्तन का खेल

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वेटिकन सिटी का दृश्य पूरी दुनिया ने देखा। ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पॉप फ्रांसिस—जिन्हें करोड़ों अनुयायी ईश्वर का दूत मानते हैं—वे स्वयं गंभीर रूप से बीमार और लकवाग्रस्त हैं। मंच तक पहुँचने के लिए उनके सुरक्षा कर्मी उन्हें व्हीलचेयर से उठाकर ले जाते हैं। यह दृश्य जितना भावुक है, उतना ही विचारणीय भी। क्योंकि यही पॉप जब अपने अनुयायियों को संबोधित करते हैं तो किसी चमत्कार का दावा नहीं करते। वे यह स्वीकार करते हैं कि बीमारी और बुढ़ापा हर मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

लेकिन विडम्बना यह है कि भारत जैसे देशों में, उन्हीं पॉप के तथाकथित “चेले”—जो फादर या पादरी कहलाते हैं—मंचों और सभाओं में यह दावा करते घूमते हैं कि उनके “स्पर्श मात्र” से विकलांग व्यक्ति दौड़ने लगते हैं, लंगड़े चलने लगते हैं और बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। सवाल उठता है कि यदि यह कथित “ईश्वरीय शक्ति” वास्तव में मौजूद है तो क्यों वह शक्ति स्वयं पॉप फ्रांसिस को स्वस्थ नहीं कर पाई? क्यों उन्हें उनके अपने ही अनुयायी मंच तक उठाकर ले जाते हैं?

यहीं से शुरू होता है अंधविश्वास और पाखंड का व्यापार

अंधविश्वास का खेल?भारत में ईसाई मिशनरियों और उनसे प्रभावित पादरियों की रणनीति साफ दिखती है। पहले वे गाँव-गाँव जाकर कमजोर और निराश लोगों को तलाशते हैं। जो लोग बीमारी, गरीबी, अशिक्षा या सामाजिक बहिष्कार से जूझ रहे होते हैं, उनके मन में “चमत्कार” की उम्मीद जगाई जाती है। उन्हें बताया जाता है कि “ईसा मसीह का स्पर्श” उन्हें रोग-मुक्त कर देगा, कर्ज़ से उबार देगा और उनके जीवन को संवार देगा।

जब व्यक्ति पीड़ा में होता है, तो वह तर्क नहीं करता, बस उम्मीद तलाशता है। इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उन्हें धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया जाता है। कभी अस्पतालों और अनाथालयों के माध्यम से, तो कभी प्रार्थना सभाओं और चमत्कार कथाओं के जरिये।

पाखंड का पर्दाफाश?आज डिजिटल युग में सच्चाई छुपाई नहीं जा सकती। सोशल मीडिया पर वह दृश्य सामने आते ही भंडाफोड़ हो गया जिसमें पॉप स्वयं व्हीलचेयर पर दिखे। यह स्पष्ट संकेत है कि धर्मगुरु भी इंसान हैं, वे भी बीमारी और बुढ़ापे से मुक्त नहीं। यदि उनके तथाकथित अनुयायियों के पास सचमुच चमत्कार करने की शक्ति होती, तो क्या वे अपने ही धर्मगुरु को लकवे से मुक्त नहीं कर पाते?

यहाँ से दोहरे चरित्र का खुलासा होता है—एक ओर पॉप की सच्चाई, दूसरी ओर पादरियों का छलावा

भोले-भाले लोगों का शिकार

भारत जैसे देश में, जहाँ अशिक्षा और गरीबी अब भी बड़ी समस्या है, वहाँ पादरियों का यह खेल सबसे ज्यादा असर डालता है। गाँवों और छोटे कस्बों में लोग डॉक्टर या अस्पताल तक पहुँच नहीं बना पाते। ऐसे में उन्हें चमत्कारिक इलाज का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाना आसान हो जाता है। यह सिर्फ धार्मिक धोखाधड़ी ही नहीं बल्कि मानवता के साथ खिलवाड़ है।

संविधान और कानून

भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि किसी की मजबूरी या अज्ञानता का फायदा उठाकर उसका धर्म बदला जाए। कई राज्यों में धर्मांतरण-निरोधक कानून बने हैं, लेकिन धरातल पर उनका पालन अक्सर कमजोर दिखता है।

यदि सरकार और समाज समय रहते नहीं जागे तो अंधविश्वास और चमत्कारवाद के नाम पर यह खेल हमारी सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक एकता को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।

जनता के लिए संदेश?यह जरूरी है कि आम लोग सच और झूठ में फर्क करना सीखें। बीमारी का इलाज अस्पताल में होगा, शिक्षा से जीवन बदलेगा और रोज़गार से गरीबी दूर होगी—चमत्कार से नहीं। जो धर्मगुरु स्वयं व्हीलचेयर पर निर्भर हों, उनके अनुयायी यदि यह दावा करें कि वे दूसरों को दौड़ा सकते हैं तो यह सीधा छलावा है।

भारत जैसे देश में धर्म परिवर्तन की राजनीति और अंधविश्वास की मंडी को रोकना समाज की जिम्मेदारी है। हमें यह समझना होगा कि किसी भी धर्म का वास्तविक संदेश सेवा और करुणा है, न कि चमत्कार दिखाकर लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना।

आज ज़रूरत है कि हम इस पाखंड का पर्दाफाश करें और अपने भोले-भाले समाज को जागरूक करें। क्योंकि सच्चाई यही है—पॉप भी इंसान हैं, और इंसान को इंसान ही बचा सकता है, चमत्कार नहीं।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट
(संपादकीय लेख)



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