
संपादकीय ,रुद्रपुर शहर चौड़ीकरण और काशीपुर बाईपास : समाधान की तलाश,रुद्रपुर शहर ने चौड़ीकरण के नाम पर पहले ही अपना आधा अस्तित्व खो दिया है। मुख्य बाजार और पुराने मोहल्लों की गलियों में आज भी खाली पड़ी जगहें और टूटे मकानों के ढांचे चौड़ीकरण की अधूरी कहानियां सुनाते हैं। अब बारी है काशीपुर बाईपास की। प्रशासन ने न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में अतिक्रमण हटाने का निर्णय तो ले लिया है, पर सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या इस बार केवल “तोड़फोड़” ही समाधान होगी या फिर जनता और कारोबारियों को भी बराबरी का सम्मान मिलेगा?


जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर एक ऐसा व्यावहारिक रास्ता निकालें, जिसमें सड़क भी चौड़ी हो और प्रभावित परिवारों का भविष्य भी सुरक्षित रहे। केवल बुलडोज़र चला देना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है, बल्कि यह नए सामाजिक-आर्थिक संकट खड़े कर सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिन वेंडिंग जोनों में छोटे व्यापारियों को दुकानें दी गईं, वे दुकानें नालियों और गंदे पानी के ऊपर बनाई गई हैं। आज वे जगहें अस्थायी राहत का प्रतीक हैं, पर कल के दिन कोई भी जनहित याचिका दाखिल कर देगा तो वहां भी वही “बुलडोज़र की गूंज” सुनाई दे सकती है। यानी वर्तमान व्यवस्था में विस्थापितों को स्थायित्व नहीं, केवल भ्रम मिल रहा है।
इसलिए, यदि सचमुच विस्थापन करना है तो उसे संगठित और भविष्यवादी बनाया जाए। शहर में एक सुव्यवस्थित कंप्लेक्स या स्मार्ट मार्केट का निर्माण कर, सभी प्रभावितों को वहां व्यवस्थित किया जा सकता है। जिस तरह मेट्रोपोलिस मॉल या बड़े शहरी कॉम्प्लेक्स में दुकानें एक छत के नीचे व्यवस्थित होती हैं, उसी तर्ज पर रुद्रपुर में भी स्मार्ट सिटी के तहत आधुनिक व्यापारिक परिसरों का निर्माण किया जा सकता है। इससे शहर को चौड़ी सड़कों के साथ ही एक साफ-सुथरा, आधुनिक और योजनाबद्ध व्यापारिक ढांचा भी मिलेगा।
आज समय आ गया है कि “बुलडोज़र की राजनीति” से आगे बढ़कर सहभागिता की राजनीति पर जोर दिया जाए। सड़क चौड़ीकरण जनता की सहमति, व्यापारियों की भागीदारी और प्रशासन की दूरदृष्टि से ही संभव है।
रुद्रपुर उधमसिंह नगर जिले के लिए लंबे समय से चर्चा में रहने वाला काशीपुर बाईपास चौड़ीकरण एक बार फिर सुर्खियों में है। माननीय उच्च न्यायालय, नैनीताल के आदेश दिनांक 20 जून 2016 तथा रिट पिटीशन संख्या 120/2018 में पारित आदेश दिनांक 27 अप्रैल 2023 के अनुपालन में प्रशासन ने अब कार्यवाही की औपचारिक रूपरेखा तय की है। जिलाधिकारी उधमसिंह नगर की अध्यक्षता में हुई बैठक (21 अगस्त 2025) में स्पष्ट निर्णय लिया गया कि संबंधित विभाग 1 सितम्बर 2025 से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ करेंगे। इसी संदर्भ में नगर निगम रुद्रपुर में 29 अगस्त को नगर आयुक्त कक्ष में अधिकारियों की बैठक बुलाई गई है।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
यह तथ्य उल्लेखनीय है कि यह कार्यवाही किसी सरकारी महकमे की स्वतःस्फूर्त पहल नहीं, बल्कि प्रतिज्ञा द ओथ फाउंडेशन की याचिका का परिणाम है, जिसके आधार पर न्यायालय ने आदेश दिए। स्पष्ट है कि जनहित में की गई इस न्यायिक पहल ने प्रशासन को मजबूर किया कि वह काशीपुर बाईपास पर यातायात जाम जैसी समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए।
लेकिन विडंबना यही है कि अदालत के आदेश और प्रशासनिक बैठक के बावजूद जमीनी स्तर पर अब तक कोई हलचल नहीं दिखती। न तो बाईपास पर अतिक्रमण हटाने की शुरुआत हुई है, न ही प्रभावित लोगों और स्थानीय जनता में इस विषय को लेकर गंभीर चर्चा। आमतौर पर ऐसे मामलों में आदेश के बाद राजनीतिक बयानबाजी, विरोध या समर्थन की आवाजें उठने लगती हैं, परंतु अभी तक का माहौल लगभग सन्नाटे जैसा है।
यह स्थिति कई सवाल छोड़ जाती है—क्या यह चुप्पी आगामी कार्यवाही के प्रति अविश्वास को दर्शाती है? या फिर लोग मान चुके हैं कि आदेश आते रहेंगे, कागजों पर बैठकें होती रहेंगी, पर सड़क चौड़ीकरण का सपना अधूरा ही रहेगा?
संपादकीय दृष्टि से यह समय प्रशासन और समाज, दोनों के लिए परीक्षा की घड़ी है। यदि आदेश के अनुपालन में ठोस और पारदर्शी कदम नहीं उठे, तो यह केवल एक और फाइल बंद करने की कार्यवाही बनकर रह जाएगी। वहीं यदि ईमानदारी से अतिक्रमण हटाकर चौड़ीकरण कार्य शुरू होता है, तो यह न केवल यातायात समस्या से निजात दिलाएगा, बल्कि प्रशासन पर जनता का विश्वास भी मजबूत करेगा।
फिलहाल, आदेश मौजूद हैं—पर हलचल नहीं। अब देखना यह है कि 1 सितम्बर से वास्तव में सड़क पर बुलडोज़र चलते हैं या यह भी बीते वर्षों के अधूरे वादों की तरह फाइलों में गुम हो जाएगा।

