संपादकीय लेख:उधम सिंह नगर: भाजपा के ‘सुनहरे मौक़े’ पर गंगवार परिवार की छाया

Spread the love

उधम सिंह नगर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव इस बार सिर्फ़ एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सत्ता समीकरणों का दिलचस्प खेल बन गया है। कांग्रेस की ओर से उदासीनता और उम्मीदवार न उतारने की चर्चा जहां भाजपा को शुरुआती बढ़त देती दिख रही है, वहीं भाजपा के भीतर भी कुछ ऐसा उबल रहा है, जिसे नज़रअंदाज़ करना पार्टी के लिए आने वाले समय में भारी पड़ सकता है।।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर

भाजपा ने शुक्रवार देर शाम आठ जिलों के लिए अपने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी घोषित कर दिए, लेकिन उधम सिंह नगर का नाम उस सूची में नहीं था। यह देरी सिर्फ़ संगठनात्मक रणनीति है या आंतरिक खींचतान का नतीजा—यह सवाल अब चर्चा का केंद्र है। जिले में 35 में से भाजपा और कांग्रेस के पास 12-12 सीटें हैं, जबकि 11 सीटों पर निर्दलीयों का कब्ज़ा है। कांग्रेस का ठंडा रुख़ भाजपा के लिए अवसर है, लेकिन यह अवसर गंगवार परिवार की मजबूत पकड़ और उनके ‘पसंदीदा नाम’ के सवाल पर पार्टी की उलझन में फंसता नज़र आ रहा है।

गंगवार परिवार का राजनीतिक वजूद सिर्फ़ जिला पंचायत तक सीमित नहीं है। वे संगठन, स्थानीय जनाधार और प्रभावशाली निर्दलीयों से रिश्तों के माध्यम से पावर सेंटर बने हुए हैं। चर्चा है कि भाजपा गंगवार परिवार के बजाय किसी अन्य को अध्यक्ष बनाने का विकल्प तलाश रही है—शायद पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन को बदलने या नए चेहरे को आगे लाने की मंशा से। लेकिन यह ‘प्रयोग’ जोखिम भरा है।

यदि भाजपा ने गंगवार परिवार को दरकिनार कर किसी और को प्रत्याशी बनाया, तो इसकी प्रतिक्रिया तत्काल भी हो सकती है और भविष्य में भी। निर्दलीयों के वोट और कई भाजपा जिला पंचायत सदस्यों की निष्ठा इस फैसले से प्रभावित हो सकती है। राजनीतिक इतिहास गवाह है कि उत्तराखंड में जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे पदों पर छोटी-सी नाराज़गी भी सत्ता समीकरण को उलटने की ताकत रखती है।

दिलचस्प यह भी है कि भाजपा की यह असमंजस की स्थिति विपक्ष के कमजोर होने के बावजूद बनी हुई है। सामान्यतः ऐसे मौक़ों पर पार्टी एकमत होकर ‘आसान जीत’ की राह लेती है, लेकिन यहां मामला उल्टा है—भीतर की राजनीति बाहर की लड़ाई से ज़्यादा कठिन साबित हो रही है।

कांग्रेस की चुप्पी और गंगवार परिवार की सक्रिय निगाहों के बीच भाजपा के रणनीतिकारों के सामने दुविधा यह है कि क्या वे पारंपरिक वफादारों को साधकर सुरक्षित खेल खेलें, या नया चेहरा लाकर भविष्य की पारी की नींव रखें। लेकिन याद रखना चाहिए—कहानी में अगर बीच में ‘तोड़फोड़’ हो गई, तो यह ‘अवसर’ 2027 के चुनावी समर में भाजपा के लिए ‘मुसीबत का आवेदन पत्र’ भी बन सकता है।

उधम सिंह नगर का यह चुनाव इस बात की कसौटी होगा कि भाजपा अपनी आंतरिक राजनीति को कितनी चतुराई से संभाल पाती है। वरना, विपक्ष की कमजोरी के बावजूद जीत का ‘सुनहरा मौका’ उसके हाथ से फिसल सकता है—और वह भी अपने ही घर में।



Spread the love