संपादकीय: रुद्रपुर का ओमेक्स अंडरपास—वादों की राजनीति, धरातल पर सन्नाटा(हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर)

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रुद्रपुर शहर की जीवन रेखा कही जाने वाली ओमेक्स रेलवे पट्टी के नीचे बनने वाला अंडरपास आज उत्तराखंड की राजनीति का एक प्रतीकात्मक उदाहरण बन चुका है—ऐसा उदाहरण जो बताता है कि हमारे नेता जनता की जरूरतों से ज़्यादा अपने फ़ोटोशूट और बयानों की परवाह करते हैं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

जिस परियोजना से रुद्रपुरवासियों को राहत की उम्मीद थी, वह आज तक महज़ नारियल फोड़ने और झंडा लहराने तक सिमटकर रह गई है। अंडरपास की पहली घोषणा जब हुई, तो जनता ने राहत की सांस ली थी। कहा गया कि ट्रैफिक जाम से मुक्ति मिलेगी, रेल लाइन के दोनों ओर के क्षेत्र एक-दूसरे से सुगमता से जुड़ जाएंगे, और ओमेक्स क्षेत्र का विकास नए स्तर पर पहुंचेगा। लेकिन वर्षों बीत गए—टेंट लगे, मंच सजे, फोटो खिंचे, भाषण गूंजे—और फिर सब कुछ वहीं का वहीं रह गया।

राजनीतिक रोटियां और नारियल का खेल?ओमेक्स अंडरपास का मुद्दा रुद्रपुर की राजनीति में किसी “जादुई जिन्न” से कम नहीं रहा। हर चुनावी मौसम में इसे बोतल से बाहर निकाल दिया जाता है—नेता आते हैं, कैमरे लगते हैं, नारियल फोड़े जाते हैं, “कार्य आरंभ” का बैनर लगाया जाता है, और फिर सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है। इस ‘नारियल राजनीति’ की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अब जनता को खुद भी अंदाज़ा है कि अंडरपास का उद्घाटन नहीं, सिर्फ उद्घोषणा ही होगी।

पिछले कुछ वर्षों में करीब आधा दर्जन बार इस अंडरपास का उद्घाटननुमा कार्यक्रम हो चुका है। शहर के लोग अब इसे मज़ाक में “रुद्रपुर का अघोषित पर्यटन स्थल” कहने लगे हैं—जहां नेता आते हैं, वादे करते हैं और चले जाते हैं। कुछ बड़े-बड़े मीडिया चैनल, जो खुद को निष्पक्ष पत्रकारिता का चेहरा बताते हैं, इस राजनीतिक नाटक का हिस्सा बनते रहे हैं। रिपोर्टें दिखाई गईं कि “अंडरपास कार्य शुरू हो गया है”, जबकि हकीकत यह है कि जमीन पर एक गड्ढा तक नहीं खोदा गया।

विकास की कहानी या चुनावी जुमला?रुद्रपुर जैसे औद्योगिक शहर के लिए यातायात सुगमता अत्यंत आवश्यक है। रेलवे पटरी से विभाजित यह इलाका वर्षों से जाम, देरी और असुविधा से जूझ रहा है। अंडरपास का निर्माण केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि विकास की दिशा में एक ज़रूरी कदम था। लेकिन अफसोस, यह योजना भी राज्य की उन तमाम अधूरी परियोजनाओं में शामिल हो गई जो नेताओं की भाषण पुस्तिका में तो पूरी होती हैं, लेकिन ज़मीन पर कभी नहीं उतरतीं।

योजना का सर्वे हुआ, नक्शा बना, फाइलें चलीं, लेकिन जब काम शुरू होने का वक्त आया, तो या तो ठेकेदार गायब मिला या बजट का बहाना बना दिया गया। कोई कहता है—रेलवे ने अनुमति नहीं दी, कोई कहता है—राज्य सरकार ने फंड जारी नहीं किया। पर असलियत यह है कि न तो किसी ने गंभीरता दिखाई और न ही जनता के हित को प्राथमिकता दी।

मीडिया और सत्ता का गठजोड़?आज के दौर में मीडिया का दायित्व केवल खबर दिखाना नहीं, बल्कि सच उजागर करना भी है। लेकिन अफसोस, रुद्रपुर के कई मीडिया चैनल और पोर्टल इस अंडरपास राजनीति के प्रचारक बन गए। मंच पर नेताओं की तस्वीरें, भाषणों की क्लिपिंग, और ‘कार्य शुरू’ की झूठी रिपोर्टिंग ने जनता के बीच भ्रम फैलाया। बड़े-बड़े दावे किए गए—“रुद्रपुर को मिलेगा ट्रैफिक से राहत”, “शुरू हुआ बहुप्रतीक्षित अंडरपास का निर्माण”—लेकिन जब आम नागरिक उसी स्थल पर पहुंचा, तो पाया कि वहां तो न मशीनरी है, न मजदूर, न कोई काम।

यह सवाल उठता है—क्या पत्रकारिता अब केवल राजनीतिक आयोजनों की पब्लिसिटी एजेंसी बनकर रह गई है? क्या चैनलों का कर्तव्य सिर्फ यह दिखाना रह गया है कि किसने रिबन काटा और किसने माला पहनाई? यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, क्योंकि जब मीडिया सच्चाई से मुंह मोड़ लेता है, तब जनता को झूठ परोसने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

जनता की उम्मीदें और प्रशासन की चुप्पी?ओमेक्स अंडरपास की अधूरी कहानी सिर्फ राजनीति और मीडिया की नहीं, प्रशासनिक लापरवाही की भी दास्तान है। स्थानीय प्रशासन और विभागों ने भी कभी स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि आखिर काम शुरू क्यों नहीं हो रहा। एक-दो बार रेलवे विभाग और नगर निगम के बीच समन्वय बैठकों की खबरें आईं, लेकिन उनका परिणाम क्या हुआ, कोई नहीं जानता।

लोग रोज़ रेलगाड़ी के गुजरने पर सड़कों के दोनों ओर जाम में फंसे रहते हैं। छात्रों को स्कूल देर से पहुंचना पड़ता है, दफ्तर जाने वालों को परेशानी होती है, एंबुलेंस तक फंस जाती हैं। यह सिर्फ असुविधा नहीं, प्रशासनिक असंवेदनशीलता का उदाहरण है।

नेताओं से जनता का सवाल?अब जनता पूछ रही है—क्या यह अंडरपास केवल फोटो खिंचवाने का स्थान है? जब भी कोई बड़ा नेता रुद्रपुर आता है, तो अंडरपास के शिलान्यास की खबर फिर से तैरने लगती है। हर बार कहा जाता है “जल्द शुरू होगा कार्य”, “बजट स्वीकृत है”, “अगले महीने टेंडर प्रक्रिया पूरी होगी”, लेकिन महीनों से साल और सालों से चुनाव गुजरते जा रहे हैं।

नेता कहते हैं, “हमारी सरकार विकास के लिए समर्पित है।” जनता पूछती है—तो फिर यह अंडरपास कब बनेगा? आखिर किसके निर्देश का इंतजार है? या फिर यह परियोजना भी केवल वोट बैंक साधने का माध्यम बनकर रह जाएगी?

जनता के धैर्य की परीक्षा?रुद्रपुरवासी अब इस मुद्दे पर गंभीर हैं। सोशल मीडिया पर लोग खुलकर सवाल उठा रहे हैं—“क्या हमारा अंडरपास कभी बनेगा?”—“क्यों हर बार हमें सिर्फ नारियल फोड़ने का तमाशा दिखाया जाता है?” शहर के युवाओं ने भी अब इस तरह की दिखावटी राजनीति के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया है।

जनता चाहती है पारदर्शिता। अगर कोई तकनीकी अड़चन है, तो उसे बताया जाए। अगर बजट में समस्या है, तो जनता को बताया जाए। लेकिन चुप्पी और झूठी घोषणाएं अब स्वीकार्य नहीं हैं।

विकास नहीं, दिखावा हुआ है?ओमेक्स अंडरपास आज सिर्फ अधूरी परियोजना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जिम्मेदारी की विफलता का प्रतीक बन चुका है। नेताओं की बयानबाजी और मीडिया की चमक में सच्चाई दब गई। परंतु अब समय आ गया है कि जनता अपनी आवाज बुलंद करे और सवाल पूछे—“कब तक चलेगा यह नारियल राजनीति का नाटक?”

विकास नारियल फोड़ने या भाषण देने से नहीं, कार्य शुरू करने से होता है। रुद्रपुर की जनता अब दिखावे से नहीं, नतीजों से खुश होगी। जब तक ओमेक्स अंडरपास की खुदाई नहीं होती, तब तक हर उद्घाटन, हर फोटो और हर वादा केवल एक राजनीतिक प्रदर्शन ही रहेगा।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स का यह संपादकीय जनता की आवाज है—विकास की नहीं, दिखावे की राजनीति के खिलाफ एक सच्चा सवाल।


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