संपादकीय; पूर्ण सिंह नेगी की संदिग्ध आत्महत्या: उत्तराखंडी युवाओं के सपनों की मौत या सिस्टम की बेरुख़ी? ✍️ अवतार सिंह बिष्ट राज्य आंदोलनकारी / वरिष्ठ पत्रकार

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चंडीगढ़ के सेक्टर-29 से आई एक दुखद और चौंकाने वाली खबर ने न सिर्फ उत्तराखंड के चमोली जनपद बल्कि पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। मात्र 21 वर्ष के एक युवक – पूर्ण सिंह नेगी – ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियल एरिया के एक होटल में शेफ के पद पर कार्यरत था और अपने एक मित्र के साथ सेक्टर-29 में किराए के कमरे में रहता था। सोमवार की शाम जब उसका साथी कमरे पर लौटा, तो दरवाजा अंदर से बंद मिला और खिड़की से झांकने पर नेगी को पंखे से लटका हुआ पाया गया। पुलिस ने दरवाजा तोड़कर शव को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

हालांकि, घटना स्थल से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ, जिससे यह सवाल खड़ा होता है – क्या यह वास्तव में आत्महत्या है या किसी साजिश का परिणाम?


उत्तराखंडी युवाओं के पलायन की त्रासदी?पूर्ण सिंह नेगी कोई पहला युवक नहीं है जो उत्तराखंड से बाहर रोजगार की तलाश में निकला और जिंदगी से हार गया। आज प्रदेश का युवा पलायन करने को मजबूर है – पहाड़ों की चट्टानों को छोड़कर, खेत-खलिहानों को छोड़कर, गांव के ताजगीभरे वातावरण को छोड़कर वह शहरों की दमघोंटू जिंदगी में झोंक दिया गया है।

शासन और सरकारें “रोजगार” और “स्थानीय विकास” के नाम पर घोषणाएं तो खूब करती हैं, लेकिन धरातल पर असलियत कुछ और ही है। उत्तराखंड जैसे राज्य के युवाओं के लिए न तो पर्वतीय क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार है, न ही मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई ठोस तंत्र। परिणामस्वरूप, युवा बाहर निकलते हैं, कमरतोड़ मेहनत करते हैं और जब जीवन की चुनौतियां बढ़ती हैं, तो कहीं ना कहीं भीतर टूट जाते हैं।


आत्महत्या या कोई दबावजनित साजिश?जब कोई आत्महत्या करता है और पीछे कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ता, तो पुलिस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। नेगी के मामले में भी कई सवाल अनुत्तरित हैं:

  1. क्या नेगी पर किसी तरह का मानसिक या आर्थिक दबाव था?
  2. क्या कार्यस्थल पर शोषण, अपमान या असुरक्षा का सामना करना पड़ा था?
  3. क्या किसी करीबी से संबंधों में तनाव था?
  4. क्या दोस्त के साथ रहते हुए कोई मनमुटाव, झगड़ा या विवाद हुआ था?
  5. क्या किसी तृतीय पक्ष ने उसकी हत्या कर उसे आत्महत्या जैसा दिखाने की कोशिश की है?

इन तमाम पहलुओं की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। उत्तराखंड सरकार को यह मामला “आत्महत्या” मानकर सिर्फ औपचारिक संवेदना प्रकट करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को स्वयं इस मामले में चंडीगढ़ पुलिस से रिपोर्ट तलब करनी चाहिए।


आत्महत्या के संभावित कारण: जिन्हें हम नजरअंदाज करते हैं मानसिक अवसाद (Depression): बाहरी प्रदेशों में जाकर काम करने वाले युवाओं को अकेलापन, मानसिक थकान और तनाव झेलना पड़ता है। अपनों से दूर होना कई बार खतरनाक होता है।

  1. आर्थिक तनाव: न्यूनतम वेतन, महंगाई और कर्ज जैसी समस्याएं उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल सकती हैं।
  2. शोषण और उत्पीड़न: होटल उद्योग में अक्सर लंबी शिफ्ट, कम वेतन, गाली-गलौज और यौन शोषण की घटनाएं सामने आती रही हैं। क्या नेगी भी किसी ऐसी परिस्थिति से जूझ रहा था?
  3. अभिभावक या सामाजिक दबाव: गांव के सीमित संसाधनों और पारिवारिक अपेक्षाओं के बीच कई बार युवा घुट जाते हैं।
  4. लव अफेयर या ब्रेकअप: प्रेम संबंधों में तनाव या धोखे का मानसिक असर भी आत्महत्या की बड़ी वजह बनता है।

उत्तराखंड सरकार और प्रवासी विभाग की ज़िम्मेदारी

उत्तराखंड सरकार ने प्रवासी उत्तराखंडियों की सहायता के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया है, परंतु उसके काम की गुणवत्ता और संवेदनशीलता पर सवाल हैं। जब राज्य से बाहर काम करने वाला कोई युवक जान गंवाता है, तो सरकार की भूमिका मौन दर्शक की हो जाती है। यह रवैया अस्वीकार्य है।

  • सरकार को चाहिए कि हर प्रवासी उत्तराखंडी की शिकायत, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए एक हेल्पलाइन और समर्थन प्रणाली विकसित करे।
  • मृतक के परिवार को आर्थिक सहायता और न्याय दिलाने के लिए चंडीगढ़ सरकार से समन्वय करे।
  • नेगी की मौत की स्वतंत्र मजिस्ट्रियल जांच कराई जाए।

मौत से ज़्यादा डरावनी है चुप्पी

पूर्ण सिंह नेगी की मौत एक व्यक्ति की आत्महत्या नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की विफलता का दर्पण है। यह घटना चीख-चीख कर कह रही है कि हमारे राज्य का युवा अकेला है, उपेक्षित है और असुरक्षित है।

अगर हम इस मौत को महज एक खबर बनाकर भूल गए, तो अगली मौत किसी और के दरवाजे पर दस्तक दे सकती है। उत्तराखंड की असली आवश्यकता “तीर्थाटन” या “मॉडल घोषणाएं” नहीं, बल्कि अपने युवाओं के सपनों और जीवन की रक्षा करना है।यह लेख एक चेतावनी है, एक प्रश्न है और एक अपील भी – उत्तराखंड सरकार, कब तक हम यूं ही अपने बच्चों को गवांते रहेंगे?

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट



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