संपादकीय?झोलाछाप डॉक्टर: मौत के सौदागर, सिस्टम की नाकामी”

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रुद्रपुर,हरिद्वार के भगवानपुर में 23 वर्षीय महिला और उसके नवजात की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था और झोलाछाप डॉक्टरों के आतंक को उजागर कर दिया है। यह घटना किसी एक गांव या जिले की नहीं है—पूरे प्रदेश के 13 जनपदों में गली-नुक्कड़, चौराहों और यहां तक कि किराने की दुकानों में भी तथाकथित “डॉक्टर” बैठे हुए हैं, जो जनता की मजबूरी और सिस्टम की नाकामी का फायदा उठाकर जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

झोलाछापों की जड़ें और विस्तार,ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में जहां सरकारी अस्पतालों की हालत दयनीय है, वहां लोगों की पहली पहुँच इन्हीं झोलाछापों तक होती है। योग्य चिकित्सक की अनुपस्थिति, एम्बुलेंस सेवा की देरी और नजदीकी अस्पताल तक पहुँचने की कठिनाइयाँ गरीब जनता को मजबूर करती हैं कि वे नकली डॉक्टरों पर भरोसा करें। यही कारण है कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में झोलाछाप डॉक्टर अब “सामान्य दृश्य” बन चुके हैं।

रुद्रपुर का हाल,रुद्रपुर जैसे औद्योगिक शहर में भी हर गली, नुक्कड़ और मोहल्ले में झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानदारी फल-फूल रही है। दवाइयों की दुकानें ही मिनी-क्लीनिक का रूप ले चुकी हैं। मरीजों का इतिहास लिए बिना इंजेक्शन लगाना, स्टेरॉइड देना और गलत दवाइयों का प्रयोग करना आम बात है। कई बार यही इलाज मरीज के लिए जानलेवा साबित हो जाता है। पर सवाल यह है कि इतनी स्पष्ट गतिविधियों के बावजूद नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की आंखें क्यों बंद रहती हैं?

सिस्टम की नाकामी,झोलाछापों के हौसले इसीलिए बुलंद हैं क्योंकि सरकारी सिस्टम पंगु है।

  • स्वास्थ्य विभाग केवल औपचारिक जांच और रिपोर्ट तक सीमित है।
  • पुलिस और प्रशासन तब हरकत में आते हैं जब किसी की मौत हो जाती है।
  • सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) तो बनाए, लेकिन उनमें डॉक्टर, नर्स और उपकरणों की भारी कमी है।

यही खामियाँ झोलाछापों को फलने-फूलने का मौका देती हैं।मौत के सौदागर,झोलाछाप केवल इलाज का ढोंग नहीं करते, बल्कि इंसानी जान के साथ खुला खिलवाड़ करते हैं। यह लोग ऐसे मामलों में अक्सर भाग जाते हैं, जबकि पीड़ित परिवार हमेशा के लिए दर्द और सवालों के बोझ तले दब जाता है। हर मौत के बाद आश्वासन मिलते हैं—”जांच होगी, कार्रवाई होगी”—लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।

क्या होना चाहिए?

  1. राज्यव्यापी अभियान चलाकर झोलाछाप डॉक्टरों की पहचान की जाए और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
  2. स्वास्थ्य विभाग में जवाबदेही तय हो—जहां झोलाछाप सक्रिय हैं, वहां संबंधित CMO और स्वास्थ्य अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो।
  3. ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का पुनर्गठन—हर PHC और CHC में स्थायी डॉक्टर, दवाइयाँ और उपकरण सुनिश्चित किए जाएं।
  4. जनजागरूकता अभियान—गांव-गांव, मोहल्लों में लोगों को बताया जाए कि झोलाछाप इलाज नहीं, बल्कि मौत बेचते हैं।
  5. पुलिस-प्रशासन की सख्ती—फर्जी क्लीनिक चलाने वालों को गैर-इरादतन हत्या जैसी कठोर धाराओं में जेल भेजा जाए।

झोलाछाप डॉक्टरों का फैलता जाल केवल व्यक्तिगत लालच या गरीबी की मजबूरी का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सरकार और सिस्टम की विफलता का जीवंत उदाहरण है। जब तक सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत नहीं करेगी और प्रशासनिक मशीनरी ईमानदारी से काम नहीं करेगी, तब तक झोलाछाप मौत के सौदागर बने रहेंगे और गरीब जनता उनकी बलि चढ़ती रहेगी।



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