संपादकीय पटकथा 42 किलोमीटर की कठिन मैराथन“भागीरथी बिष्ट की उड़ान और उत्तराखंड की जिम्मेदारी

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रुद्रपुर,हैदराबाद मैराथन में चमोली जनपद के वाण गांव की बेटी भागीरथी बिष्ट ने गोल्ड मेडल जीतकर जो इतिहास रचा है, वह सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है बल्कि उत्तराखंड के हर युवा के लिए प्रेरणा की मिसाल है। 42 किलोमीटर की कठिन मैराथन को 2 घंटे 51 मिनट में पूरा करना कोई साधारण कार्य नहीं है। यह धैर्य, मेहनत, त्याग और संघर्ष की पराकाष्ठा का परिणाम है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, प्रिंट मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स।(अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद) प्रदेश प्रवक्ता श्रमजीवी पत्रकार यूनियन

भागीरथी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती। तीन वर्ष की उम्र में पिता का साया खो देना, पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी होकर घर-खेत का बोझ उठाना, और फिर संसाधनों की भारी कमी के बावजूद सपनों को जिंदा रखना—यह सब बताता है कि इस बेटी ने अपनी रफ्तार से किस तरह मुश्किलों को पीछे छोड़ दिया। खेतों में हल चलाने वाली यह “फ्लाइंग गर्ल” आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर रही है।

लेकिन, यहाँ एक सवाल उठता है—क्या हमारे राज्य और सरकार ने इस होनहार बेटी के लिए उतना किया, जितना उसे मिलना चाहिए था? सच यही है कि उत्तराखंड जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं, बल्कि संरक्षण की कमी है। जब-जब किसी खिलाड़ी ने व्यक्तिगत स्तर पर सफलता पाई है, तब-तब सरकारें जागी हैं और घोषणाओं का पिटारा खोला है। मगर खेलों का ढांचा, बुनियादी सुविधाएँ, प्रशिक्षण, और आर्थिक सहयोग आज भी अधिकांश खिलाड़ियों के लिए सपना ही है।

भागीरथी के कोच सुनील शर्मा की मेहनत और उनके मार्गदर्शन का भी जिक्र करना जरूरी है। यह दिखाता है कि यदि सही कोच, सही प्लेटफॉर्म और उचित पोषण मिले, तो उत्तराखंड की बेटियाँ भी ओलंपिक में गोल्ड जीत सकती हैं।

सरकार से अपेक्षा

अब यह उत्तराखंड सरकार की जिम्मेदारी है कि—

  1. भागीरथी जैसी प्रतिभाओं को विशेष वित्तीय सहायता और स्पॉन्सरशिप दी जाए।
  2. प्रदेश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रशिक्षण केंद्र और मैराथन ट्रैक विकसित किए जाएँ।
  3. हर जिले से निकलने वाली होनहार बेटियों के लिए स्पोर्ट्स स्कॉलरशिप योजना लागू हो।
  4. खिलाड़ियों को केवल मेडल जीतने के बाद ही नहीं, बल्कि संघर्ष के दौरान भी सहयोग मिले।

भागीरथी बिष्ट का सपना है—एक दिन ओलंपिक में गोल्ड जीतना। यह सपना सिर्फ उनका व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड और भारत का सपना है। अब यह राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि इस सपने को पूरा करने के लिए रास्ते तैयार करें।

आज जब भागीरथी ने हैदराबाद की सड़क पर स्वर्णिम दौड़ लगाई है, तो यह पूरे चमोली, पूरे उत्तराखंड और पूरे भारत की जीत है। लेकिन अगर हम इस उड़ान को स्थायी बनाना चाहते हैं, तो सरकार को सिर्फ तालियाँ बजाने से आगे बढ़कर संरक्षण और सहयोग की ठोस व्यवस्था करनी होगी।

उत्तराखंड की हर बेटी भागीरथी बन सकती है, बस जरूरत है उनके पंखों को उड़ान देने की।



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