
उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियों का मामला वर्षों से चर्चा में है, लेकिन अब तक की कार्रवाई की गति और गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस प्रकार के मामलों में सख्त कदम उठा रहे हैं, उत्तराखंड में यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत धीमी और सीमित नजर आती है।


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
फर्जी नियुक्तियों की स्थिति
उत्तराखंड में लगभग 33,000 शिक्षकों में से 12,000 के प्रमाणपत्रों की जांच पूरी हो चुकी है, जिसमें 69 शिक्षकों के दस्तावेज फर्जी पाए गए हैं। इनमें से 57 के खिलाफ कार्रवाई की गई है, जबकि शेष की जांच जारी है । विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की गई जांच में अब तक 84 शिक्षकों के दस्तावेज फर्जी साबित हुए हैं, जिनमें से 52 को बर्खास्त किया गया है ।
न्यायिक हस्तक्षेप
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से जांच की प्रगति पर रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति शुरू से ही अमान्य मानी जाएगी और ऐसे शिक्षकों को कोई लाभ नहीं मिलेगा ।
कानूनी कार्रवाई
फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी पाने वाले कुछ शिक्षकों को न्यायालय ने कठोर कारावास की सजा सुनाई है। उदाहरणस्वरूप, रुद्रप्रयाग जिले में एक शिक्षक को 5 साल की सजा और जुर्माना लगाया गया है ।
उत्तराखंड में फर्जी शिक्षक नियुक्तियों पर कार्रवाई की धीमी गति शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। आवश्यक है कि राज्य सरकार इस दिशा में ठोस और त्वरित कदम उठाए, ताकि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
