रुद्रपुर यह व्यथा सिर्फ एक व्यंग्यात्मक पंक्ति नहीं, बल्कि उन तमाम आजीवन सदस्यों की पीड़ा है जो कभी रुद्रपुर के प्रतिष्ठित सिटी क्लब से गहरे जुड़े थे। अब वही लोग खुद को उपेक्षित और उपहासित महसूस कर रहे हैं।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
एक समय था जब सिटी क्लब को रुद्रपुर की सामाजिक-सांस्कृतिक धड़कन माना जाता था। क्लब की सदस्यता पाने को लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे। बड़े अधिकारी, समाजसेवी, पत्रकार, डॉक्टर, उद्योगपति – सभी इससे जुड़ना चाहते थे। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसे ‘क्लब’ कम और ‘बारात घर’ अधिक कहा जा रहा है।
❖ चुनाव की ‘गुप्त सूचना’ और पारदर्शिता पर सवाल?22 जून को प्रस्तावित सिटी क्लब का चुनाव फिलहाल गुपचुप तरीके से आयोजित किया जा रहा है – यह आरोप गंभीर है और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल भी। सोशल मीडिया पर एक सदस्य ने साफ शब्दों में लिखा:
2018 के बाद अब चुनाव की हलचल सुनाई दे रही है, और वो भी इशारों में। ना कोई नोटिस, ना कोई खुली सूचना।”
इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्लब अब एक बंद कमरा बन चुका है, जहां केवल “चहेते” लोग पदों की सेटिंग में लगे हुए हैं। ऐसे में बाकी आजीवन सदस्य, जिन्होंने क्लब की नींव में ईंटें रखी थीं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
❖ क्लब का उद्देश्य: बारात घर या सामाजिक केंद्र?
एक अन्य प्रतिक्रिया में यह कहा गया:
शहर के रसूखदारों को जोड़कर क्लब को सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्र बनाना था, मगर आज यह सिर्फ़ एक बारात घर बनकर रह गया है।”
यह टिप्पणी सटीक और चिंताजनक है। बोट हाउस क्लब नैनीताल की तरह सिटी क्लब को भी एक आदर्श संस्था के रूप में विकसित करने की मंशा थी, लेकिन नीयत और भलमंशा की कमी ने इसकी दिशा ही मोड़ दी।
सिटी क्लब: एक सामूहिक धरोहर
सिटी क्लब किसी व्यक्ति या गुट की निजी संपत्ति नहीं है। यह पूरे शहर की सामाजिक चेतना का प्रतीक है। पारदर्शिता, भागीदारी और नियमित संवाद – यही इसके पुनरुद्धार के तीन स्तंभ हो सकते हैं। यदि चुनाव की जानकारी ही गुप्त रखी जाएगी, तो फिर यह संस्था शहर के लिए क्या उदाहरण पेश करेगी?
सकारात्मक पहल की आवश्यकता
अब वक्त आ गया है कि क्लब को राजनीति और स्वार्थ की जगह सामाजिक उत्तरदायित्व का केंद्र बनाया जाए। कुछ सकारात्मक सुझाव:
- चुनावी सूचना क्लब की वेबसाइट और सार्वजनिक स्थानों पर लगाई जाए।
- सभी सदस्यों को व्यक्तिगत ईमेल या पत्र भेजकर जानकारी दी जाए।
- चुनाव में निष्पक्षता हेतु एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक समिति का गठन हो।
- क्लब के उद्देश्य, लक्ष्य और वार्षिक कार्ययोजनाएं सार्वजनिक की जाएं।
- सदस्यों की भागीदारी के लिए खुली बैठकें आयोजित हों।
रुद्रपुर की पहचान को न खोने दें
रुद्रपुर तेजी से विकसित हो रहा शहर है और ऐसे में एक सक्रिय, पारदर्शी और जीवंत सिटी क्लब की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। यह न केवल सामाजिक संवाद का मंच हो, बल्कि सांस्कृतिक, साहित्यिक, खेल और सेवा गतिविधियों का संगम भी बने।
संपादकीय की अपील है:
सिटी क्लब को क्लब ही रहने दीजिए, सराय बनने से बचाइए। चुनाव सबका अधिकार है, सूचना सब तक पहुंचे, यह सुनिश्चित कीजिए।यह सिर्फ़ संस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि रुद्रपुर की सामाजिक चेतना और पारदर्शिता की परीक्षा है।
रुद्रपुर सिटी क्लब: एक सामाजिक संस्था या विशेष हितों का अखाड़ा?
रुद्रपुर का सिटी क्लब कभी शहर की गरिमा, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र हुआ करता था। लेकिन समय के साथ यह संस्था अब सिर्फ कुछ खास लोगों के स्वार्थ और सत्ता की राजनीति का माध्यम बनकर रह गई है। क्लब के पुराने सदस्य आज हाशिये पर हैं, जबकि नए चेहरों की एंट्री अक्सर चहेते और “सेटिंग” के आधार पर होती दिख रही है।क्लब प्रबंधन में पारदर्शिता का अभाव स्पष्ट है। 2018 के बाद से चुनाव नहीं हुए, और अब जब 22 जून 2025 को चुनाव की सूचना सामने आई है, तब भी उसे गुप्त रखने का प्रयास किया जा रहा है। यह संदेह पैदा करता है कि कहीं चुनाव केवल औपचारिकता बनकर न रह जाए, जिसमें पहले से तय नामों की ताजपोशी हो। सवाल यह भी है—क्या क्लब अब केवल रसूखदारों का अड्डा बन चुका है?वर्तमान में सिटी क्लब में आम सदस्यों की भागीदारी नगण्य है। कार्यक्रमों में आमंत्रण सीमित होता है, फैसले एकतरफा होते हैं और पुराने योगदानकर्ताओं को कोई सम्मान नहीं दिया जाता। क्लब में लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह गुटबाजी और निजी हित हावी हो चुके हैं।जरूरत है कि रुद्रपुर सिटी क्लब को एक बार फिर सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में पुनर्जीवित किया जाए। इसके लिए निष्पक्ष चुनाव, पारदर्शी सदस्यता प्रक्रिया और पुराने सदस्यों की भागीदारी अनिवार्य है। नहीं तो क्लब का अस्तित्व केवल नाम मात्र का रह जाएगा—जहां क्लब कम, और खेमेबंदी अधिक होगी।रुद्रपुर सिटी क्लब को पुनः गरिमा दिलाने के लिए जनसरोकारों को प्राथमिकता देनी होगी, वरना यह संस्था भी राजनीति और जोड़तोड़ की भेंट चढ़ जाएगी।

