संपादकीय विशेष: क्यूआर कोड स्कैम — डिजिटल भारत के इस अंधेरे कोने से सावधान हो जाइए लेखक: अवतार सिंह बिष्ट | स्थान: रुद्रपुर, उत्तराखंड

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31 मई को प्रयागराज में जो कुछ हुआ, वह केवल हरिकिशन सोनकर की चाइनीज ठेली तक सीमित नहीं है। वह एक चेतावनी है — पूरे देश, और खासकर उत्तराखंड जैसे तीव्र डिजिटल संक्रमण वाले राज्यों के लिए। क्यूआर कोड स्कैम नामक एक खतरनाक साइबर ठगी अब आपकी दुकान, आपका ठेला, आपकी मेहनत की कमाई तक पहुंच चुकी है। सवाल है — क्या आप तैयार हैं?

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

घटना जो सबक बन गई
प्रयागराज के कंपनी बाग के सामने हरिकिशन सोनकर का ठेला रोज़ की तरह खड़ा था। वह पुरुषोत्तम नगर, खुल्दाबाद का निवासी है और सड़क किनारे फास्ट फूड बेचकर अपने परिवार का पेट पालता है। 31 मई को दो युवक उसके पास आए, मैगी बनवाई, और जाते-जाते चुपके से उसके असली क्यूआर कोड के ऊपर नकली क्यूआर कोड का स्टिकर चिपका गए। यह काम इतने चतुराई से हुआ कि हरिकिशन को भनक तक नहीं लगी।

इसके बाद जो भी ग्राहक भुगतान करता रहा, वो पैसा सीधे ठगों के खाते में जाता रहा। हरिकिशन के साउंड बॉक्स से कोई आवाज नहीं आई। जब एक ग्राहक ने यह कहा कि पैसे कट गए हैं लेकिन दुकानदार को पैसे नहीं मिले, तो हरिकिशन को शक हुआ। उसने क्यूआर कोड चेक किया और पाया कि वह उसका नहीं है।काफी मशक्कत के बाद उसने पुलिस में शिकायत की। मोबाइल नंबर ट्रेस करने पर सिरसा, मेजा निवासी आकाश बिंद नामक युवक को पकड़ा गया, जिसने कबूल किया कि उसने और उसके साथी ने अब तक शहर के आठ दुकानदारों को इसी तरह ठगा है।

सवाल बड़ा है: क्या उत्तराखंड सुरक्षित है?
रुद्रपुर, हल्द्वानी, देहरादून, कोटद्वार, हरिद्वार और यहां तक कि छोटी कस्बाई अर्थव्यवस्थाएं भी अब डिजिटल भुगतान पर निर्भर हो चुकी हैं। चाहे वह साउंड बॉक्स हो, गूगल पे, फोनपे या पेटीएम — अब ग्राहक कार्ड या कैश नहीं मांगता, बस “क्यूआर कोड दिखाओ” कहता है।

लेकिन क्या उत्तराखंड का दुकानदार जानता है कि:

  • क्यूआर कोड बदला जा सकता है?
  • एक स्टिकर से उसकी पूरी दिन की कमाई गायब हो सकती है?
  • ग्राहक की तरफ से हुई पेमेंट का कोई प्रमाण तब तक नहीं, जब तक साउंड बॉक्स या एसएमएस अलर्ट न आए?

यह चेतावनी केवल प्रयागराज के लिए नहीं, उत्तराखंड के लिए भी है।

क्या है क्यूआर कोड स्कैम?
मॉडस ऑपरेंडी (कार्यप्रणाली):

  • ठग ग्राहक बनकर दुकान पर आते हैं।
  • बिना पूछे, दुकानदार के क्यूआर कोड पर एक फेक क्यूआर स्टिकर चिपका देते हैं।
  • ग्राहक असली समझकर स्कैन करता है और पेमेंट करता है — जो सीधे ठगों के खाते में चला जाता है।

असर:

  • दुकानदार को पता ही नहीं चलता कि उसके नाम से पैसा किसी और के खाते में जा रहा है।
  • ठगी तब पकड़ में आती है जब ग्राहक पैसे देता है लेकिन दुकानदार को कोई अलर्ट नहीं मिलता।

नतीजा:

  • मेहनत की कमाई ठगों की जेब में
  • मानसिक और आर्थिक नुकसान
  • विश्वास में गिरावट और डिजिटल सिस्टम से डर

तकनीक का विकास, अपराधियों का फायदा
भारत ने डिजिटलीकरण की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं, लेकिन इसके साथ अपराधियों ने भी अपने तरीके डिजिटल बना लिए हैं।

यह डिजिटल ठगी पुराने “चेन स्नेचिंग” या “पर्स चोरी” जैसी घटनाओं से कहीं अधिक खतरनाक है क्योंकि:यह आंखों से नहीं दिखती,

  • पुलिस में रिपोर्ट करना मुश्किल होता है,
  • कई बार पीड़ित को यह भी नहीं पता होता कि ठगी कब हुई।

दुकानदारों के लिए चेतावनी और उपाय,यदि आप उत्तराखंड के दुकानदार, ठेलेवाले, चायवाले, या किसी भी प्रकार के छोटे व्यवसायी हैं, तो ये 7 बातें हमेशा याद रखें:

  1. हर सुबह क्यूआर कोड चेक करें: कहीं कोई नया स्टिकर, स्क्रैच या चिपकाई गई परत तो नहीं?
  2. क्यूआर कोड को प्लास्टिक या ट्रांसपेरेंट टेप से कवर करें, ताकि कोई और उस पर स्टिकर न चिपका सके।
  3. साउंड बॉक्स और एसएमएस अलर्ट चालू रखें।
  4. हर ग्राहक से पुष्टि करें कि पेमेंट के समय उसका स्क्रीनशॉट में आपका नाम या नंबर दिख रहा है।
  5. दुकान के पास लगे कैमरे (CCTV) को क्यूआर कोड के ऊपर फोकस करें।
  6. दिन में एक बार अपना बैंक बैलेंस या पेमेंट हिस्ट्री जांचें।
  7. कोई भी संदिग्ध गतिविधि होने पर तुरंत स्थानीय पुलिस या साइबर सेल को रिपोर्ट करें।

प्रशासन और पुलिस की ज़िम्मेदारी
उत्तराखंड पुलिस और जिला प्रशासन को इस विषय में तत्काल गंभीरता दिखानी चाहिए:

  • हर मंडी, बाजार, मेले और सब्ज़ी मंडी में जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
  • साइबर क्राइम हेल्पलाइन (जैसे 1930) को प्रचारित किया जाए।
  • व्यापार मंडलों को साइबर ट्रेनिंग दी जाए।
  • पुलिस चौकियों में विशेष QR कोड निगरानी टीम गठित हो।

मीडिया और समाज की भूमिका

  • स्थानीय अखबारों और चैनलों को ऐसे मामलों को गंभीरता से कवर करना चाहिए।
  • स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल सुरक्षा को एक विषय की तरह पढ़ाया जाए।
  • युवाओं को स्वयंसेवक बनाकर दुकानदारों को जागरूक करने का अभियान शुरू किया जा सकता है।

ठगों से तेज़ बनिए, वरना ठगे जाएंगे
आज जब हर कोना डिजिटल हो रहा है, ठग भी उतने ही डिजिटल और तकनीकी हो गए हैं। अब ठग बाइक से नहीं आते, QR कोड लेकर आते हैं।उत्तराखंड में भी यह खतरा सिर उठाने लगा है। एक छोटी चूक, एक नजरअंदाज किया गया स्टिकर — और आपकी दिनभर की मेहनत हवा हो सकती है।इसलिए, इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है — सतर्कता। जागरूकता। और डिजिटल जिम्मेदारी।

“क्यूआर कोड पर आंख टिकाइए, नहीं तो आंखों से आंसू बह जाएंगे!”


यह खबर आपके लिए है — उत्तराखंड के हर दुकानदार, हर रेहड़ी वाले, हर ग्राहक के लिए।अब भी नहीं जागे, तो अगला नंबर आपका हो सकता है।



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