संपादकीय ;फर्जी दस्तावेजों पर सख्ती: मुख्यमंत्री धामी का निर्णायक कदम और उत्तराखंड की अस्मिता की रक्षा”(लेखक – अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार, रुद्रपुर)

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उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐसा कदम उठाया है, जिसने न केवल शासन-प्रशासन में सख़्ती का संदेश दिया है, बल्कि राज्य की अस्मिता और मूल जनसंरचना की रक्षा का भरोसा भी जगाया है। मुख्यमंत्री के विशेष सचिव पराग मधुकर धकाते के आदेशों के तहत अब पूरे प्रदेश में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बने आधार कार्ड, राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, स्थाई निवास प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर प्रविष्टियों और अन्य अभिलेखों की जांच शुरू हो चुकी है।

यह आदेश केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह उस मौन संक्रमण के खिलाफ राज्य की चेतना का प्रतीक है, जो पिछले कुछ वर्षों से जनसांख्यिकीय (demographic) संतुलन को प्रभावित कर रहा था।
डेमोग्राफिक बदलाव का खतरा और सरकार की सतर्कता?देहरादून जिले के पछवादून क्षेत्र के 28 गांवों में हाल ही में सामने आए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। जिन क्षेत्रों में कभी हिंदू आबादी बहुसंख्यक थी, अब वहां मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है। यह बदलाव स्वाभाविक प्रवास का परिणाम हो सकता है, लेकिन जब इसके पीछे फर्जी दस्तावेजों के सहारे नागरिकता या निवास का भ्रम पैदा करने की साज़िश हो, तब यह सिर्फ प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक खतरा बन जाता है।

मुख्यमंत्री धामी का यह कहना कि “किसी भी स्थिति में उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव नहीं होने दिया जाएगा” — इस राज्य की आत्मा की रक्षा का संकल्प है। क्योंकि उत्तराखंड का निर्माण ही इस उद्देश्य से हुआ था कि यहाँ की संस्कृति, जनसंख्या संरचना और भू-संवेदनशीलता की रक्षा हो सके।
फर्जी दस्तावेज़ों का जाल: भ्रष्टाचार और घुसपैठ का संगम

फर्जीवाड़े का दायरा इतना व्यापक हो चुका है कि अब यह केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं रहा।
फर्जी जाति प्रमाण पत्रों से आरक्षण का अनुचित लाभ,
फर्जी EWS प्रमाण पत्रों से नौकरी और शिक्षा में गलत प्रवेश,
फर्जी विश्वविद्यालयों से जारी डिग्रियां,
फर्जी जन्म प्रमाण पत्रों से बनी पहचानें,
स्थायी निवास प्रमाण पत्रों में घुसपैठियों की प्रविष्टियाँ,
बीपीएल कार्ड और पीएम आवास योजना में फर्जी लाभार्थी,
— यह सब उस दीमक की तरह है, जिसने राज्य की सामाजिक न्याय प्रणाली को खोखला कर दिया है।
उत्तराखंड में अनेक मामलों में राज्य के बाहर के लोग झूठे पते और दस्तावेजों के जरिए यहां की नागरिकता और योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल स्थानीय युवाओं के हक़ पर डाका डाल रही है, बल्कि राज्य के संसाधनों पर अनधिकृत कब्ज़े का मार्ग भी खोल रही है।
राज्य बनने के बाद की नियुक्तियों की जांच – जनता की अपेक्षा?लेखक का मानना है कि यदि सरकार वास्तव में इस मुहिम को निर्णायक बनाना चाहती है तो उसे केवल वर्तमान दस्तावेज़ों तक सीमित न रखकर, 2000 से अब तक राज्य बनने के बाद हुई सभी सरकारी नियुक्तियों की जांच करवानी चाहिए।

क्योंकि उत्तराखंड के युवाओं का यह पुराना आरोप रहा है कि विभिन्न विभागों में फर्जी प्रमाण पत्रों और बाहरी दबावों के जरिए अन्य राज्यों के लोगों की नियुक्तियाँ हुईं, जबकि स्थानीय योग्य अभ्यर्थी उपेक्षित रह गए।

यदि मुख्यमंत्री धामी इस दिशा में सीबीआई या एसआईटी जांच का आदेश देते हैं, तो न केवल भ्रष्ट अधिकारियों और फर्जी अभ्यर्थियों की पहचान होगी, बल्कि यह सरकार की पारदर्शिता का सबसे बड़ा प्रमाण भी बनेगा।
फर्जी दस्तावेज़ और अवैध भूमि कब्जे का गठजोड़?उत्तराखंड की भूमि नीति वर्षों से विवाद का विषय रही है। पहाड़ और मैदानी क्षेत्रों में लगातार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां फर्जी स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के आधार पर भूमि खरीदी-बेची गई और स्थानीय लोगों को धीरे-धीरे उनकी जमीन से विस्थापित किया गया।

प्रधानमंत्री आवास योजना से लेकर सस्ते प्लॉट तक — हर योजना में फर्जीवाड़े की जड़ें मौजूद हैं। यही नहीं, कुछ मामलों में इन फर्जी लाभार्थियों ने स्थानीय स्तर पर मतदाता सूची में भी नाम दर्ज करवा लिए, जिससे उनका प्रभाव चुनावी राजनीति में भी बढ़ गया। यह किसी भी राज्य के लिए खतरे की घंटी है।

मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल पर मिली शिकायतों के बाद शासन ने यह कार्रवाई शुरू की है। यह मॉडल ई-गवर्नेंस और नागरिक सहभागिता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अब हर जिला अधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वह सत्यापन, निरस्तीकरण और दंडात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया को त्वरित गति से पूरा करें।

इस आदेश का एक और सकारात्मक पहलू यह है कि अब “शिकायतें केवल फाइलों में दबाई नहीं जाएंगी”, बल्कि उनकी वास्तविक जांच होगी। शासन-प्रशासन की यह जवाबदेही, जनता में सरकार की साख को मज़बूत करती है।
आवश्यक सुधार: स्थायी समाधान की दिशा में

यह कदम सराहनीय है, परंतु स्थायी सुधार के लिए कुछ ठोस कदम अनिवार्य हैं—

  1. डिजिटल सत्यापन प्रणाली : सभी प्रमाणपत्रों को आधार और एनआईसी सर्वर से जोड़ा जाए, ताकि फर्जीवाड़ा असंभव हो।
  2. निवास अवधि का सत्यापन : स्थायी निवास प्रमाण पत्र केवल उन्हीं को मिले, जिन्होंने कम से कम 15 वर्ष राज्य में लगातार निवास किया हो।
  3. संयुक्त जांच तंत्र : जिलाधिकारी, एसएसपी, तहसीलदार और स्थानीय निकायों की संयुक्त टीम बने।
  4. राज्य पहचान आयोग का गठन : जो उत्तराखंड की जनसंख्या, प्रवास और नागरिक पहचान के मुद्दों पर सतत निगरानी रखे।
  5. सख्त दंड व्यवस्था : फर्जी दस्तावेज बनाने या कराने वालों पर आर्थिक दंड और जेल दोनों का प्रावधान हो। उत्तराखंड की आत्मा की रक्षा का प्रश्न?उत्तराखंड केवल एक भौगोलिक राज्य नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सांस्कृतिक क्षेत्र है — जहां लोक परंपराएं, देवी-देवता, जल-स्रोत और भूमि एक साझा जीवनधारा का प्रतीक हैं। जब बाहरी तत्व फर्जी दस्तावेजों के सहारे इस भूमि में अपनी पकड़ बनाते हैं, तो यह केवल प्रशासनिक अनियमितता नहीं, बल्कि संस्कृति पर हमला होता है।

मुख्यमंत्री धामी का यह कदम इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि यह उस मौलिक विचार को पुनर्स्थापित करता है, जिसके लिए यह राज्य बना था — “अपने लोगों के लिए, अपनी पहचान के लिए, अपनी धरती के लिए।”
फर्जी दस्तावेजों पर सरकार की कार्रवाई एक सही शुरुआत है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब किसी स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रशासनिक ढील न दी जाए।
यह अभियान केवल “घोषणा” न बनकर एक संवेदनशील और कठोर जन-जांच प्रक्रिया के रूप में उभरे — यही जनता की अपेक्षा है।

यदि मुख्यमंत्री धामी इस दिशा में निरंतरता बनाए रखते हैं, तो यह अभियान न केवल भ्रष्टाचार पर चोट करेगा, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा को सशक्त करेगा।
यह वही उत्तराखंड होगा जिसकी कल्पना 1990 के दशक में राज्य आंदोलनकारियों ने की थी — “जहां हर नागरिक सच्चे दस्तावेजों से, सच्चे हक से, सच्चे मन से जुड़ा हो।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की यह पहल उत्तराखंड के लिए एक जन-जागरण है।
यह अभियान प्रशासनिक नहीं, बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कदम है।
यदि यह अभियान बिना किसी दबाव और भेदभाव के सफल हुआ, तो यह राज्य के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा —
जहां “फर्जीवाड़े के राज्य से सत्य के उत्तराखंड” की ओर यात्रा शुरू होगी

(लेखक – अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार, रुद्रपुर, उत्तराखंड)


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