संपादकीय: निलम्बन नहीं, बर्खास्तगी चाहिए—यही है उत्तराखंड की मूल अवधारणा

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उत्तराखंड राज्य के गठन की मूल भावना केवल भौगोलिक सीमाओं का निर्माण नहीं था, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना था जिसमें पारदर्शिता, जवाबदेही और जनता के हितों की रक्षा सर्वोपरि रहे। राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान जो नारे गूंजे थे—”हमारा राज, हमारी बात”—उनमें भ्रष्टाचार और लापरवाही से मुक्त एक नयी प्रशासनिक संस्कृति की कल्पना निहित थी।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

लेकिन आज की वास्तविकता दुखद है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की परीक्षाओं में बार-बार लापरवाही और पेपर लीक की घटनाएं हो रही हैं। हाल ही में 21 सितंबर 2025 को हुई स्नातक स्तरीय परीक्षा में हरिद्वार के एक परीक्षा केंद्र पर प्रश्नपत्र की तस्वीरें बाहर भेजे जाने का मामला सामने आया। यह केवल एक छात्र का अपराध नहीं था, बल्कि उस व्यवस्था की नाकामी थी जिसे पारदर्शी परीक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

सेक्टर मजिस्ट्रेट के रूप में ड्यूटी पर तैनात श्री के.एन. तिवारी जैसे वरिष्ठ अधिकारी का निलम्बन केवल एक औपचारिक कार्यवाही है। यह प्रश्न उठता है—क्या मात्र निलम्बन जैसी हल्की कार्यवाही उत्तराखंड की जनता को न्याय दिला सकती है?

निलम्बन बनाम बर्खास्तगी: जनता की अपेक्षा

  • निलम्बन का अर्थ है कि अधिकारी वेतन का हिस्सा और भत्ते लेता रहेगा, केवल अपनी सीट से अस्थायी रूप से हटेगा।
  • बर्खास्तगी का अर्थ है जवाबदेही की कठोर स्थापना, ताकि आने वाली पीढ़ियों के अधिकारियों को यह संदेश मिले कि जनता की उम्मीदों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा।
  • जब लाखों बेरोजगार युवा अपने भविष्य के लिए ईमानदार मेहनत कर रहे हों, तब एक अधिकारी की लापरवाही उनका भविष्य नष्ट कर सकती है। यह अपराध किसी भी तरह “निलम्बन” तक सीमित नहीं रह सकता।

उत्तराखंड की मूल अवधारणा क्या कहती है?

उत्तराखंड आंदोलन की जड़ें भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ संघर्ष में थीं। यह राज्य उन युवाओं की शहादत से बना, जिन्होंने निष्पक्ष शासन की मांग की। यदि आज भी लापरवाह अधिकारियों को केवल निलम्बन देकर बचा लिया जाता है, तो यह राज्य की आत्मा के साथ धोखा है।

निदान: कठोर कार्रवाई ही समाधान

  • परीक्षा में लापरवाही के दोषी अधिकारियों को तत्काल सेवा से बर्खास्त किया जाना चाहिए।
  • आयोग और संबंधित विभाग की कार्यप्रणाली की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो।
  • राज्य सरकार को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि जनता की उम्मीदों से खिलवाड़ करने वाले अधिकारी किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की जनता अब केवल दिखावटी निलम्बन नहीं, बल्कि वास्तविक न्याय चाहती है। श्री के.एन. तिवारी जैसे मामले यदि केवल कागजी खानापूर्ति बनकर रहेंगे तो राज्य का भविष्य और युवाओं का विश्वास दोनों दांव पर लग जाएंगे। राज्य की मूल अवधारणा यही है कि लापरवाह और भ्रष्ट अधिकारियों को तुरंत बर्खास्त कर, व्यवस्था को ईमानदार और जवाबदेह बनाया जाए। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन शहीदों को, जिनके बलिदान पर यह राज्य खड़ा है।



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