
संपादकीय विशेष: “टीडीसी—तराई


उत्तराखण्ड बीज एवं तराई विकास निगम (TDC) कभी इस राज्य की कृषि समृद्धि का प्रतीक था। देश भर में “हल्दी बीज” और “पंतनगर क्वालिटी” के नाम से इसकी पहचान थी। लेकिन आज जो कुछ भी हल्द्वानी-रुद्रपुर के बीच टीडीसी की जमीनों, मशीनों और भवनों के नाम पर चल रहा है, वह एक सुनियोजित ‘भूमि भ्रष्टाचार’ की दास्तान बन चुका है—जिसमें नेता, नौकरशाह और ठेकेदार सभी की हिस्सेदारी है।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
हाल ही में पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल ने गांधी पार्क में धरना देकर टीडीसी में भ्रष्टाचार और अवैध निविदाओं का मुद्दा उठाया, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि उनके पास सबूतों की जगह केवल आरोप थे और राजनीतिक शैली में किए गए घोषणापत्र।
🔍 घोटाला है—लेकिन सबूत कहां हैं?पूर्व विधायक ठुकराल ने आरोप लगाए कि टीडीसी की बहुमूल्य सम्पत्तियाँ कौड़ियों के भाव पर नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से बेची जा रही हैं, खासकर पंतनगर हवाई अड्डे के विस्तार की आड़ में। ये आरोप बेहद गंभीर हैं, लेकिन जिस धरने की बुनियाद ही सूचना के अधिकार के अधूरे जवाबों पर हो—वह जन-विश्वास को न्याय नहीं, सिर्फ राजनीतिक स्कोरिंग लगता है।
क्या एक ग्यारह बार चुनाव जीत चुका जनप्रतिनिधि महज़ “RTI जवाब नहीं मिला” कहकर करोड़ों के भ्रष्टाचार का दावा कर सकता है? अगर हां, तो यह विरोध प्रदर्शन नहीं, राजनीतिक नाटक बन जाता है।
📉 टीडीसी—जहां बीज नहीं, सौदे बोए जा रहे हैं?तराई विकास निगम की पहचान उसके बीजों, अनुसंधान व फार्मिंग एक्सपेरिमेंट्स के लिए थी, लेकिन अब:टीडीसी हल्दी में विधायन संयंत्र टूट रहा है।
- मशीनें और भवन नाम मात्र मूल्य पर बेचने की तैयारी है।
- लोक निर्माण विभाग से कम दरों पर मूल्यांकन कर संपत्ति ठेकेदारों को दी जा रही है।
यह सब हो रहा है नौकरशाहों की सहमति, नेताओं की चुप्पी और एक मौन मिलीभगत के तहत।
🧾 सत्ताधारी नेताओं की चुप्पी—सवालों के घेरे में?पूर्व विधायक ठुकराल ने सत्ता पक्ष के नेताओं पर भी उंगली उठाई, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह “आज का सच” उन्हें तब नजर नहीं आया जब वे खुद सत्ता में थे? क्यों नहीं तब इन घोटालों को उजागर किया गया?
क्या यह विरोध केवल इसीलिए है क्योंकि आज वे विपक्ष की भूमिका में हैं?🔎 नौकरशाही की भूमिका पर सवाल
जिन अधिकारियों ने पहले भी जेल की हवा खाई, आज उन्हीं पर दोबारा “विसर्जन” की जिम्मेदारी डाल दी गई है। टीडीसी जैसे संस्थान का “ध्वंस” किसी दुर्घटना नहीं, बल्कि योजनाबद्ध विनाश लगता है। जिला प्रशासन की भूमिका पर भी नजर रखने की ज़रूरत है।
हालांकि जिलाधिकारी द्वारा हाल में कुछ कार्यवाही कर पारदर्शिता की दिशा में पहल की गई है, लेकिन यह अधूरी और दिखावटी प्रतीत होती है जब तक जांच सीबीआई जैसी निष्पक्ष एजेंसी से न करवाई जाए।
🗣️ धरना—या जिम्मेदार विपक्ष की विफलता??धरने में भीड़ थी, चेहरे थे, भाषण थे—पर दस्तावेज नहीं।
यह दुर्भाग्य है कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर पूर्व विधायक जैसे वरिष्ठ नेता भी सिर्फ भाषणबाज़ी तक सीमित रह गए। उनके द्वारा मांगी गई सूचना के अधिकार की प्रति तक सार्वजनिक नहीं की गई।
क्या धरना प्रदर्शन करने से पहले यह ज़रूरी नहीं था कि:
- RTI का पूरा जवाब सामने रखा जाता?
- निविदाओं की प्रति पब्लिक डोमेन में डाली जाती?
- ज़मीनों का मूल्यांकन रिकॉर्ड मीडिया को उपलब्ध कराया जाता?
🪞 सच्चाई का आईना—राजनीति से परे देखना होगा,?इस पूरे प्रकरण में तीन बातें सामने आती हैं:टीडीसी में घोटाला संभव है, लेकिन उसे साबित करना राजनीतिक नेताओं की नहीं, एक जिम्मेदार समाज और पत्रकारिता की ज़िम्मेदारी है।
- सत्ता पक्ष की चुप्पी, विपक्ष की प्रूफ-रहित चीख, और नौकरशाही की अदृश्य भूमिका, यह सब मिलकर उत्तराखंड की संस्थागत संपत्तियों को बेचने की रणनीति में बदल चुका है।
- राजकुमार ठुकराल जैसे वरिष्ठ नेता को चाहिए कि वे आंदोलन को हवा नहीं, बल्कि दस्तावेज़ों से धार दें**—वरना इतिहास उन्हें भी ‘राजनीतिक अवसरवादी’ के रूप में याद करेगा।
📣 संपादकीय आह्वान
जनता जानती है कि कौन बेजान नारों में है, और कौन सबूतों के साथ मैदान में। अब वक्त आ गया है कि जनता मांग करे—सीबीआई जांच की।सभी निविदाओं और मूल्यांकन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की।
- और राजनेताओं से भी कि धरना देने से पहले होमवर्क पूरा करें।
टीडीसी के बीज अब खेतों में नहीं, भ्रष्टाचार के दस्तावेज़ों में बोए जा रहे हैं। अगर समय रहते नहीं चेते, तो ये संस्थान इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएंगे—और नेता सिर्फ भाषणों में बचे रहेंगे।
