संपादकीय ,उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय घोटाला: वेतन रोक कर नहीं, जेल भेज कर हो भ्रष्टाचार का इलाज!” ✍️ लेखक: अवतार सिंह बिष्ट

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उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में अचानक 36 अधिकारियों और कर्मचारियों की सैलरी पर लगी रोक एक बड़ी खबर है, लेकिन इससे भी बड़ी बात है – वो सालों से चला आ रहा ‘घोटालों का पंचकर्म’ जिसे अब जाकर शासन ने नोटिस किया है। ऋषिकेश और हरिद्वार के पवित्र परिसर जहां आयुर्वेद की पवित्र शिक्षा दी जाती है, वहां से भ्रष्टाचार की दुर्गंध आना पूरे प्रदेश के लिए शर्म की बात है।

घोटाले का संक्षिप्त इतिहास?इस पूरे प्रकरण की शुरुआत वर्ष 2016 से होती है, जब विश्वविद्यालय में संविदा कर्मियों को नियमों को ताक पर रखकर पदोन्नति दी गई और वेतनमान बढ़ाए गए। इस तरह सरकारी खजाने को वर्षों तक चूना लगाया गया। विश्वविद्यालय की प्रशासनिक मशीनरी ने न केवल सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाईं, बल्कि विभागीय पदोन्नति योजना को भी माखौल बना दिया।

अब जाकर उत्तराखंड शासन की नींद खुली है। कुलपति, कुलसचिव और अन्य 34 कर्मचारियों की सैलरी रोककर शासन ने एक कठोर लेकिन प्रतीकात्मक कदम उठाया है। लेकिन क्या यह काफ़ी है?

नाम, पते और पद – दोषियों की लिस्ट तैयार

सचिव दीपेन्द्र कुमार चौधरी द्वारा जारी आदेश के अनुसार, जिन कार्मिकों की सैलरी रोकी गई है, उनमें उच्च स्तर से लेकर कनिष्ठ स्तर तक के कर्मचारी शामिल हैं:

  • चन्द्रमोहन पैन्यूली (व्यक्तिगत सहायक)
  • विवेक वैभव जोशी (आशुलिपिक ग्रेड-2)
  • अनिल दत्त बेलवाल (सहायक लेखाकार)
  • मिथिलेश मठपाल (कनिष्ठ सहायक)
  • दीपक ज्योति (संविदा कनिष्ठ सहायक)

वहीं शैक्षणिक संवर्ग के 8 सहायक प्रवक्ता – डॉ. उत्तम शर्मा से लेकर डॉ. ऊषा शमा तक, जिनके विनियमितकरण अब समाप्त कर दिए गए हैं, उन पर भी अनुचित सेवा लाभ लेने का आरोप तय हुआ है।

क्या इन लोगों ने यह सब अपनी जानकारी में किया? क्या इनके ऊपर कोई राजनीतिक संरक्षण था? और सबसे बड़ा सवाल – अब तक इनसे वसूली क्यों नहीं की गई?

धरना, प्रदर्शन और शातिर चालें?पिछले पांच महीने से वेतन न मिलने के कारण धरना दे रहे कुछ शिक्षकों और कर्मचारियों की मांग पर शासन ने 13.13 करोड़ रुपये का बजट तो जारी कर दिया, लेकिन दोषियों को इसमें शामिल नहीं किया। यह दर्शाता है कि सरकार ने ‘गेंहूं के साथ घुन पीसने’ की नीति छोड़कर अब ‘साफ-साफ छंटाई’ करने का साहस दिखाया है।

लेकिन यह पहली और आखिरी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की लगातार 5 खबरें बनीं टर्निंग पॉइंट

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ने जब इस पूरे मामले में उत्तराखंड, दिल्ली और यूपी तक खबरों की श्रृंखला चलाई, तब जाकर शासन हरकत में आया। हमने विश्वविद्यालय घोटाले की ए से ज तक रिपोर्टिंग की — संविदा अनियमितताओं से लेकर आंतरिक वित्तीय हेराफेरी, और सत्ता संरक्षण में फर्जी पदोन्नतियों तक।

हमने यह भी उजागर किया कि यह सिर्फ एक संस्थान की कहानी नहीं है – यह एक सिस्टमेटिक भ्रष्टाचार की परंपरा का हिस्सा है जो आयुर्वेद विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को दीमक की तरह खोखला कर रही है।

मुख्यमंत्री धामी को करना होगा निर्णायक वार

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी “भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड” का वादा करते रहे हैं। लेकिन सिर्फ सैलरी रोकना या नोटिस भेजना पर्याप्त नहीं है। अगर सरकार सच में ईमानदार है, तो इन सवालों का जवाब सार्वजनिक करें:

  1. दोषियों के खिलाफ एफआईआर कब दर्ज होगी?
  2. अब तक जितनी भी अनुचित वेतन मद में राशि दी गई, उसकी वसूली कब तक होगी?
  3. क्या संबंधित अधिकारियों और सचिव स्तर के लोगों की जिम्मेदारी तय की जाएगी?
  4. क्या भविष्य में किसी भी विश्वविद्यालय में पारदर्शी पदोन्नति और नियुक्ति प्रणाली लागू होगी?

धामी सरकार को यह समझना होगा कि जनता अब सतर्क है, पत्रकार अब जागरूक हैं और तकनीक अब सब कुछ उजागर कर रही है। अब समय है कि इन घोटालेबाजों को सस्पे हीं, जेल में डाला जाए।

सैलरी रोकना शुरुआत है, लेकिन इसका अंत भ्रष्टाचारियों के जेल में पहुंचने से ही माना जाएगा। उत्तराखंड का नौजवान, शोधार्थी और आम नागरिक चाहता है कि विश्वविद्यालय ज्ञान का मंदिर बने, कोई भ्रष्टाचार का मठ नहीं। मुख्यमंत्री जी, यह कटने वाला नंबर किसी और का नहीं – भ्रष्टाचारियों का होना चाहिए


घोटालेबाजों से सवाल पूछना पत्रकारिता है, और उन्हें सजा दिलाना प्रशासन की जिम्मेदारी।”

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स इस घोटाले पर अगली रिपोर्ट जल्द जारी करेगा – “कौन बनेगा जेलयात्रा विजेता?” सीरीज के तहत।



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