
रुद्रपुर शैल सांस्कृतिक समिति जागर कभी-कभी किसी स्थल का वातावरण ऐसा बन जाता है, मानो देवत्व स्वयं धरती पर अवतरित आहोकर श्रद्धालुओं के बीच बैठा हो। कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला जब शैल सांस्कृतिक समिति (शैल परिषद) के परिसर में स्थित श्री गोल्ज्यू महाराज मंदिर का प्रथम स्थापना दिवस बड़ी श्रद्धा और लोकधर्मी गरिमा के साथ मनाया गया।
यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि उत्तराखंड की लोकआस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना का जीवंत जागरण था। गोल्ज्यू महाराज — न्याय के देवता, जनमानस के आराध्य और कुमाऊं की आत्मा के प्रतीक — जब “जागर” के स्वर में पुकारे जाते हैं, तो लगता है जैसे समय ठहर गया हो और देवत्व स्वयं उतर आया हो।
परंपरा की पुनर्स्थापना का पर्व?कार्यक्रम का शुभारंभ पंडित कैलाश तिवारी जी द्वारा गणेश पूजन से हुआ। वैदिक मंत्रों की गूंज, धूणी की लौ और धूप की महक ने वातावरण को पवित्र बना दिया। विशेष बात यह रही कि अनेक श्रद्धालु जोड़े उत्तराखंड की पारंपरिक वेषभूषा — पांघरूली ओढ़नी, पिछोड़ा और सफेद टोपी में — सहभागी बने।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
गोल्ज्यू महाराज की मूर्ति के समक्ष जब आरती की लौ थरथराई, तो ऐसा लगा मानो देवता स्वयं भक्तों के बीच खड़े हों। पूजा-अर्चना के उपरांत आरंभ हुआ भक्ति का चरम बिंदु — जागर, जो देर रात तक चलता रहा।
जागर केवल पूजा नहीं, यह लोक और देवता के बीच संवाद का पुल है। ढोल-दमाऊं की थाप, भाना की गूंज, और गाथाओं में बुनी आस्था — यही तो उत्तराखंड की आत्मा है। जब किसी मंदिर में इस परंपरा की गूंज उठती है, तो वह स्थान केवल पत्थरों का नहीं, बल्कि श्रद्धा का तीर्थ बन जाता है।
ढोल के थाप के साथ जब “जय गोल्ज्यू देवता की जय” की पुकार उठी, तो ऐसा लगा जैसे धरती और आकाश के बीच का फासला मिट गया हो।
गायकों की आवाज़ों में लोकगाथाओं की गहराई थी —
कहीं देवी-देवताओं का आह्वान, कहीं अन्याय पर न्याय की विजय का स्वर।
गोल्ज्यू महाराज की यह आराधना न केवल लोकविश्वास की शक्ति है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि सत्य और धर्म अंततः विजयी होते हैं।
शैल परिषद: संस्कृति की संवाहक शक्ति?शैल परिषद (शैल सांस्कृतिक समिति) ने इस आयोजन के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि जब संस्कृति और समाज एक साथ खड़े हों, तो आस्था का दीपक और उज्जवल जलता है।
मुख्य उपस्थिति संरक्षक भारत लाल साह, अध्यक्ष गोपाल सिंह पटवाल, महामंत्री दिवाकर पाण्डे, कोषाध्यक्ष डी.के. दनाई, और समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम — जैसे सतीश लोहनी, कीर्ति निधि शर्मा, राजेंद्र बोरा, हरीश दनाई, मोहन उपाध्याय, संजीव बुधोली, हरीश मिश्रा, दान सिंह मेहरा, रमेश चंद्र जोशी, डॉ. एल.एम. उप्रेती, नरेंद्र रावत, पूरन चंद्र जोशी, धीरज गोस्वामी, त्रिभुवन जोशी, मुकुल उप्रेती, बिनीता पांडे, दुर्गा साह, डॉ. अमिता उप्रेती, धीरज पांडे, एड. सर्वेश सिंह, संजय ठुकराल, पार्षद पवन राणा, रमेश चंद्र भट्ट, ललित उप्रेती, सुभाष जोशी, एड. शिव कुमार, लाल सिंह मेहरा आदि — सभी ने गोल्ज्यू महाराज की भक्ति और संस्कृति संरक्षण का संदेश फैलाया।
आध्यात्मिक नेतृत्व के स्वर?इस आयोजन में शैल परिषद अध्यक्ष भोपाल सिंह पटवाल का वक्तव्य विशेष उल्लेखनीय रहा। उन्होंने कहा —गोल्ज्यू महाराज केवल हमारे आराध्य नहीं, बल्कि उत्तराखंड के आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। जब अन्याय बढ़ता है, तब न्याय के देवता गोल्ज्यू स्वयं सामने आते हैं। हमें इस आस्था को केवल पूजा तक सीमित नहीं रखना, बल्कि इसे जीवन की नीति बनाना चाहिए।”
महासचिव एडवोकेट दिवाकर पांडे ने अपने आध्यात्मिक उद्बोधन में कहा —जागर केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह लोक की चेतना का स्पंदन है। जब हम गोल्ज्यू महाराज का जागर करते हैं, तब हम अपने पूर्वजों, अपनी भूमि और अपनी अस्मिता से जुड़ते हैं। यही उत्तराखंड की वास्तविक पहचान है।”
भक्ति में समरसता का संदेश?इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने भक्ति को केवल धर्म तक सीमित न रखकर समरसता और एकता का प्रतीक बनाया।
जहां एक ओर ढोल-दमाऊं की धुन पर श्रद्धालु झूम रहे थे, वहीं दूसरी ओर महिलाओं ने पारंपरिक लोकगीतों से भक्ति को मधुरता दी।
हर ओर एक ही संदेश था —गोल्ज्यू महाराज सबके हैं — गरीब के, अमीर के, ऊँच केनीच के नहीं; जो सच्चा है, वही उनका अपना है।”
आधुनिकता में आध्यात्मिकता की लौ?आज जब आधुनिकता की दौड़ में समाज अपनी जड़ों से कटता जा रहा है, ऐसे में शैल परिषद का यह आयोजन केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि आत्म-चेतना का जागरण था।
गोल्ज्यू महाराज के मंदिर की स्थापना का यह पहला वर्ष — एक प्रतीक बन गया है कि परंपरा और प्रगति साथ-साथ चल सकती हैं।यह वह धरती है जहां भक्ति और विद्रोह दोनों एक साथ जन्म लेते हैं।
जहां न्याय के लिए गोल्ज्यू महाराज की आराधना होती है, वहीं अन्याय के विरुद्ध लोक उठ खड़ा होता है।
गोल्ज्यू महाराज: न्याय के देवता, लोक के भगवान?कुमाऊं अंचल में गोल्ज्यू महाराज को “न्याय के देवता” कहा जाता है।
लोकविश्वास है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इनके दरबार में अपनी फरियाद रखता है, उसे न्याय अवश्य मिलता है।
इस स्थापना दिवस पर श्रद्धालुओं ने अपने मन की बात महाराज के समक्ष रखी — किसी ने पुत्र प्राप्ति की मनौती मांगी, किसी ने घर की शांति, तो किसी ने अन्याय के विरुद्ध साहस की शक्ति।सांप्रदायिक सौहार्द और भक्ति का समन्वय?यह आयोजन इस बात का प्रमाण था कि सच्ची भक्ति कभी सांप्रदायिक नहीं होती।
भक्ति का यह दीपक सदा जलता रहे?श्री गोल्ज्यू महाराज मंदिर की यह स्थापना केवल एक मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि जनविश्वास की पुनर्स्थापना है।
शैल परिषद ने यह सिद्ध कर दिया कि जब समाज अपनी संस्कृति को पुनर्जीवित करता है, तो वह केवल इतिहास नहीं रचता — वह आने वाली पीढ़ियों को दिशा देता है।
जागर की वह रात भले समाप्त हो गई हो,
पर गोल्ज्यू महाराज की कृपा से भक्ति की वह लौ अब हर हृदय में जल उठी है।
जय गोल्ज्यू देवता की जय!


