
उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए यह सप्ताह नई उम्मीदों और विश्वास का प्रतीक बन गया है। मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी से आज शासकीय आवास में उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ और तकनीकी डिप्लोमा प्राप्त छात्रों के प्रतिनिधिमंडल की भेंट केवल एक औपचारिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि यह संवाद राज्य के भविष्य के निर्माण की दिशा में एक निर्णायक पहल साबित हो रही है।

राज्य में बीते कुछ समय से भर्ती परीक्षाओं में कथित अनियमितताओं और नकल के मामलों ने युवाओं के मन में गहरी निराशा पैदा कर दी थी। लेकिन जिस प्रकार मुख्यमंत्री धामी ने इन शिकायतों पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए संबंधित परीक्षा को निरस्त करने का निर्णय लिया — वह एक सशक्त संदेश है कि उत्तराखण्ड में अब कोई भी भर्ती भ्रष्टाचार की छाया में नहीं होगी। यह निर्णय न केवल प्रशासनिक ईमानदारी का उदाहरण है, बल्कि यह युवाओं के प्रति संवेदनशील शासन की सजीव झलक भी प्रस्तुत करता है।
मुख्यमंत्री धामी का यह स्पष्ट वक्तव्य कि “उत्तराखण्ड में किसी भी भर्ती परीक्षा में भ्रष्टाचार, नकल या अनुचित साधनों के लिए शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी” — राज्य की युवा नीति को एक नई परिभाषा देता है। यह वही नीति है जिसकी मांग उत्तराखण्ड आंदोलन के समय से होती रही थी — पारदर्शिता, समान अवसर और योग्यता का सम्मान।
राज्य सरकार द्वारा लागू किया गया नकल विरोधी कानून इसी प्रतिबद्धता का परिणाम है। इस कानून के अंतर्गत अब कोई भी व्यक्ति, गिरोह या संस्था यदि परीक्षा प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का प्रयास करेगा, तो उसे कठोरतम दंड भुगतना होगा। यह व्यवस्था न केवल डर पैदा करती है बल्कि विश्वास भी जगाती है — कि अब मेहनत करने वाले युवाओं की प्रतिभा को कोई नकार नहीं सकेगा।
इस भेंट के दौरान बेरोजगार संघ के अध्यक्ष श्री राम कंडवाल और उनके साथियों ने जिस परिपक्वता के साथ मुख्यमंत्री को युवाओं की भावना से अवगत कराया, वह भी सराहनीय है। संघ का यह आग्रह कि “भविष्य की परीक्षाओं में नकल-रोधी प्रावधानों को और अधिक सुदृढ़ किया जाए तथा भर्ती प्रक्रिया को समयबद्ध रूप से संचालित किया जाए”, राज्य प्रशासन के लिए एक रचनात्मक सुझाव है। मुख्यमंत्री द्वारा इन सुझावों की सराहना करना यह दर्शाता है कि सरकार संवाद और सहयोग की भावना से काम कर रही है, न कि दूरी बनाकर।
आज जब देश के अनेक राज्यों में भर्ती घोटालों के कारण युवाओं का विश्वास डगमगा रहा है, तब उत्तराखण्ड ने यह दिखाया है कि ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति से परिवर्तन संभव है। मुख्यमंत्री धामी का यह कदम प्रशासनिक पारदर्शिता और सुशासन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
उत्तराखण्ड की युवा शक्ति राज्य की रीढ़ है। इन युवाओं की मेहनत, लगन और ईमानदारी ही भविष्य का आधार है। यदि सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ती रही, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखण्ड न केवल रोजगार के अवसरों में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि अन्य राज्यों के लिए आदर्श शासन मॉडल प्रस्तुत करेगा।
मुख्यमंत्री धामी का यह निर्णय एक संदेश भी है — कि “उत्तराखण्ड का भविष्य अब योग्यता पर चलेगा, सिफारिश पर नहीं।” यह वक्त है जब हर युवा को अपने परिश्रम और प्रतिभा पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि सरकार अब उसी के साथ खड़ी है जो ईमानदारी से आगे बढ़ना चाहता है।
अंततः यह कहा जा सकता है कि जिस तरह से राज्य सरकार ने बेरोजगार संघ के प्रतिनिधियों की बात सुनी, उनकी चिंताओं को गंभीरता से लिया और कार्रवाई की — वह उत्तराखण्ड के प्रशासनिक इतिहास में एक सकारात्मक मोड़ है। यह केवल एक परीक्षा निरस्त होने का प्रसंग नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार पर नैतिक विजय का प्रतीक है।
जब शासन संवेदनशील होता है, तो संघर्ष सार्थक बन जाते हैं।”
उत्तराखण्ड के युवाओं ने वर्षों तक जिस पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती व्यवस्था का सपना देखा था, वह अब धीरे-धीरे साकार होता दिख रहा है — और इसका श्रेय उस नेतृत्व को जाता है जो सुनता भी है, समझता भी है, और निर्णय भी लेता है।
जय उत्तराखण्ड, जय युवा शक्ति!


