संपादकीय:पेपर लीक जांच: प्रोफेसर सुमन, खालिद, हिना, साबिया और बॉबी पंवार जांच के दायरे में

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उत्तराखंड में बार-बार सामने आने वाले पेपर लीक कांड राज्य की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर रहे हैं। हाल ही में स्नातक स्तरीय परीक्षा का पेपर लीक होना और उसमें शिक्षकों, परीक्षार्थियों तथा उनके परिजनों तक का शामिल होना, यह साबित करता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

एसआईटी जांच में सामने आया कि परीक्षा शुरू होने के महज़ 35 मिनट के भीतर प्रश्नपत्र मोबाइल पर पहुँच गए। प्रोफेसर सुमन जैसी शिक्षिका, जिन पर बच्चों को आदर्श शिक्षा देने की जिम्मेदारी थी, वह खुद पेपर साल्विंग गिरोह का हिस्सा बन गईं। खालिद और उसकी बहनों का शामिल होना इस बात की पुष्टि करता है कि अब प्रतियोगी परीक्षाएँ महज़ मेहनत और प्रतिभा पर नहीं, बल्कि जुगाड़ और अपराध पर टिकी हुई हैं। सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब परीक्षा केंद्र से ही पेपर लीक हुआ, तो आखिर सुरक्षा व्यवस्था किसके भरोसे थी?

पुलिस ने प्रोफेसर सुमन और हिना को गिरफ्तार कर लिया है, वहीं खालिद और उसकी दूसरी बहन साबिया को भी हिरासत में लिया गया। लेकिन इस कड़ी में और कितने प्रभावशाली लोग जुड़े हैं, यह जांच का विषय है। खासकर जब उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार तक का नाम जांच में आ रहा है, तो स्पष्ट है कि यह मामला केवल कुछ व्यक्तियों का अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा है।

हरिद्वार के आदर्श बाल सदन इंटर कॉलेज से पेपर का लीक होना इस बात की पुष्टि करता है कि परीक्षा केंद्रों पर कड़ी निगरानी और आधुनिक तकनीक का अभाव है। जैमर और सुरक्षा तंत्र केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री धामी की अध्यक्षता में “महक क्रांति” जैसी योजनाओं पर मुहर लगना तो सकारात्मक कदम है, मगर जब तक राज्य की भर्ती परीक्षाएँ पारदर्शी नहीं होंगी, तब तक युवा भविष्य को लेकर असुरक्षित और सरकार पर अविश्वास से ग्रस्त रहेंगे।

पेपर लीक कांड: संगठित अपराध का जाल

उत्तराखंड में हालिया स्नातक स्तरीय परीक्षा का पेपर लीक होना किसी साधारण अपराध की घटना नहीं, बल्कि संगठित अपराध का हिस्सा प्रतीत होता है। जांच में अब तक प्रोफेसर सुमन, परीक्षार्थी खालिद, उसकी बहनें हिना और साबिया तथा उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार के नाम सामने आ चुके हैं। यह केवल शुरुआत है, क्योंकि इस पूरे गिरोह के तार और भी गहरे तक फैले होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

एसआईटी की जांच से यह साफ हो गया कि परीक्षा शुरू होने के 35 मिनट के भीतर प्रश्नपत्र मोबाइल के जरिए बाहर पहुंच गए थे। इतना तेज और संगठित नेटवर्क तभी संभव है, जब इसमें परीक्षा केंद्र के कर्मचारी, तकनीकी मददगार और राजनीतिक रसूखदार तक शामिल हों। पुलिस ने पहले ही 15 से 18 कर्मचारियों से पूछताछ की है, लेकिन असल मास्टरमाइंड कौन है, यह खालिद की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आएगा।

इस मामले को केवल “कुछ लोगों की गलती” मानकर छोड़ना खतरनाक होगा। उत्तराखंड में पेपर लीक की घटनाएँ लगातार दोहराई जा रही हैं, जो यह साबित करती हैं कि यहां एक संगठित पेपर माफिया सक्रिय है। यह माफिया बेरोजगार युवाओं के सपनों के साथ खिलवाड़ करता है और उनकी मेहनत पर पानी फेर देता है।

पेपर लीक प्रकरण में सामने आए खुलासे में प्रोफेसर सुमन और बॉबी पंवार का नाम गंभीर सवाल खड़े करता है। जांच में पाया गया कि सुमन को सुबह 7:55 बजे खालिद मलिक का संदेश मिला, जिसमें बहन के पेपर में मदद करने की बात कही गई। सुमन ने शुरुआती सहमति जताई, लेकिन बाद में शक होने पर अपनी बहन सीमा से चर्चा की। सीमा ने बॉबी पंवार का संपर्क नंबर दिया। इसके बाद 12:21 बजे सुमन और बॉबी पंवार के बीच फोन पर बातचीत हुई और मात्र सात मिनट बाद, 12:28 बजे पेपर के पेज और उत्तर बॉबी पंवार को व्हाट्सएप पर भेज दिए गए।

यह घटनाक्रम साफ करता है कि बॉबी पंवार केवल एक रिसीवर नहीं, बल्कि लीक हुई सामग्री को आगे प्रसारित करने की कड़ी बन सकते हैं। पेपर लीक जैसे मामलों में इस प्रकार के नेटवर्क का खुलासा होना बताता है कि संगठित गिरोह किस तरह शिक्षा व्यवस्था को खोखला कर रहे हैं। बॉबी पंवार का नाम सामने आने से जांच एजेंसियों के लिए यह अहम सुराग बन गया है कि पेपर किन चैनलों से लीक हुआ और किसने इसका लाभ उठाया। अब जिम्मेदारी जांच तंत्र पर है कि वह बॉबी पंवार सहित पूरे नेटवर्क की परतें उधेड़े और दोषियों को कड़ी सजा दिलाए, ताकि भविष्य में शिक्षा व्यवस्था को इस तरह की साजिशों से बचाया जा सके।

जरूरत है कि सरकार ऐसे अपराधों को केवल परीक्षा घोटाले के रूप में न देखे, बल्कि संगठित अपराध की श्रेणी में रखकर कठोरतम कार्रवाई करे। कड़ी सजा, वित्तीय जाँच और नेटवर्क का पूरी तरह सफाया ही इस बीमारी का इलाज है। वरना हर परीक्षा में नए नाम सामने आएंगे और युवा फिर से ठगे जाएंगे।

यह समय है जब सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे—

  • पेपर लीक मामलों में सख्त सजा तय हो।
  • परीक्षा केंद्रों पर तकनीकी सुरक्षा बढ़ाई जाए।
  • दोषियों की राजनीतिक या सामाजिक हैसियत देखकर कार्रवाई न रोकी जाए।

क्योंकि आज उत्तराखंड का युवा यही सवाल पूछ रहा है—क्या मेहनत करने वालों को न्याय मिलेगा या पेपर माफिया हमेशा उनकी मेहनत पर पानी फेरते रहेंगे?



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